बिहार सरकार का ऐतिहासिक निर्णय
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,1 जुलाई :बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संजीवनी देने की दिशा में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया गया है. राज्य मंत्रिमंडल द्वारा मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना और मुख्यमंत्री गुरू-शिष्य परम्परा योजना को स्वीकृति मिलने के बाद कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री श्री मोती लाल प्रसाद ने इसे राज्य के कलाकारों के लिए एक नई उम्मीद करार दिया है.
कलाकार पेंशन योजना: जीवन में लाएगी स्थायित्व
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वर्षों से परंपरागत, शास्त्रीय, चाक्षुष (दृश्य) एवं प्रदर्श कलाओं से जुड़े हजारों कलाकार अब सरकार की इस नई पहल के तहत सीधे लाभान्वित होंगे। योजना के अंतर्गत चयनित कलाकारों को हर महीने ₹3000 की पेंशन दी जाएगी. इस योजना के अंतर्गत पहले चरण में जिला स्तर पर आवेदनों की समीक्षा की जाएगी और फिर अंतिम निर्णय राज्य स्तरीय समिति द्वारा लिया जाएगा.
श्री प्रसाद के अनुसार इस योजना से कलाकारों की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा और उन्हें सम्मानजनक जीवन यापन का अवसर मिलेगा।
गुरू-शिष्य परम्परा योजना: लोक कला को मिलेगा नया जीवन
लोक परंपरा और कलाओं को बचाने के लिए दूसरी योजना “मुख्यमंत्री गुरू-शिष्य परंपरा योजना” को भी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। इसके तहत लगभग विलुप्त हो चुकी लोक गाथा, लोक नाट्य, लोक नृत्य, संगीत, लोक वाद्य, चित्रकला एवं शास्त्रीय कलाओं के पुनर्जीवन का प्रयास किया जाएगा।
इस योजना के अंतर्गत:
गुरुओं को ₹15,000/माह
संगीतकारों को ₹7,500/माह
शिष्यों को ₹3,000/माह
का मासिक मानदेय दिया जाएगा.
श्री प्रसाद ने कहा, यह योजना न केवल लोक कला के संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी करेगी.
सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर एक मजबूत कदम
इस ऐतिहासिक घोषणा के अवसर पर भाजपा कला संस्कृति विभाग के प्रदेश संयोजक वरुण कुमार सिंह, सह-संयोजक डॉ. विश्वनाथ शरण सिंह और भाजपा प्रदेश मीडिया सह प्रभारी अमित प्रकाश ‘बबलू’ भी उपस्थित थे.उन्होंने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इससे हजारों कलाकारों को स्थायित्व और पहचान मिलेगी.
निष्कर्ष
बिहार सरकार का यह सांस्कृतिक हस्तक्षेप न सिर्फ कलाकारों के वर्तमान को सुरक्षित करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध कलात्मक भविष्य भी सुनिश्चित करेगा। यह कदम वास्तव में न केवल सामाजिक न्याय की ओर, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर भी एक साहसिक यात्रा की शुरुआत है.

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