तीसरा पक्ष डेस्क : बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है लेकिन आज एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार वजह न तो कोई सांस्कृतिक उत्सव है और न ही कोई विकास का नया कीर्तिमान.वजह है सड़कों पर उतरे हज़ारों युवा, उनके हाथों में तख्तियां, और आवाज़ में एक ही मांग—रोज़गार, न्याय और बेहतर भविष्य का. नीतीश कुमार के अगुवाई वाला सरकार के खिलाफ यह उबाल सिर्फ़ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक गहरे असंतोष का प्रतीक है. क्या यह आंदोलन नीतीश सरकार के कुर्सी को हिला देगा? तो आइए, इस विषय के गहराई में उतरते हैं.
युवाओं का गुस्सा: रोज़गार की मांग और लाठीचार्ज का जवाब
पिछले कुछ समय से बिहार के युवा अपने मांगो को लेकर सड़कों पर हैं.उनकी मांग साफ है— मुझे नौकरियां चाहिए, सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता होना चाहिए, और भ्रष्टाचार पर लगाम चाहिए. बिहार में बेरोज़गारी का दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है, और बिहार के युवा इस बात से त्रस्त हैं कि नीतीश सरकार ने उनके भविष्य के लिए ठोस कदम नहीं उठाया है.
हाल ही में, शांतिपूर्ण ढ़ग से कर रहे प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया जो अब चर्चा का विषय बना हुआ है. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में युवाओं को दौड़ा-दौड़ा कर पीटते हुए देखा गया है. यह घटना न केवल युवाओं के आक्रोश को और भड़का रहा है बल्कि विपक्ष को भी नीतीश सरकार पर हमला बोलने का मौका मिल गया है. विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इसे लाठी-डंडों की सरकार बताया है तो वहीं अन्य नेताओं ने इसे फासीवादी रवैया बताया है.
नीतीश सरकार: उपलब्धियां या खोखले वादे?
नीतीश कुमार को बिहार की जनता उनको “सुशासन बाबू” जानते थे लेकिन आज यही जनता उनके छवि पर सवाल उठ रहे हैं.उनकी सरकार ने सड़क, बिजली और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में विकास करने का दावा करता है वही दूसरी तरफ बिहार के युवाओं का कहना है कि ये दावे ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं.
रोज़गार के अवसर: सरकार का दावा है कि उसने लाखों नौकरियां दिया है. लेकिन हकीकत में सरकारी भर्ती की जो प्रक्रियाएं है वह कछुआ के गति से चल रहा हैं.
शिक्षा और प्रशिक्षण: बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्थिति भी बदहाल है.युवाओं का कहना है कि बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के, नौकरी की बातें करना बेमानी हैं.
पलायन का दर्द: बिहार से हर साल लाखों युवा अपने रोज़गार के तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करने पर मजबूर है. यह स्थिति नीतीश सरकार के नीतियाँ पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है.
इन सबो के बीच, नीतीश सरकार के गठबंधन सहयोगी बीजेपी भी असहज स्थिति में है. युवाओं का गुस्सा केवल नीतीश पर ही नहीं है बल्कि पूरी डबल इंजन के सरकार पर उतार रहा है.

विपक्ष के दांव: आंदोलन को मिल रहा हवा
विपक्षी दल की बात करे तो खासकर राष्ट्रीय जनता दल इस आंदोलन को अपने पक्ष में भुनाने के कोशिश में लगे हुये हैं. तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार को 20 साल पुरानी खटारा सरकार कहकर तंज कसा और उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार में 4.5 लाख से ज़्यादा नौकरियां दिया गया.
दूसरी तरफ चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा मोर्चा खोले हुये है.उनकी नई रणनीति और जनसुराज अभियान बिहार के सियासत में नया रंग ला सकता हैं. विपक्ष जिस तरह से आक्रामक रवैया अपनाया हुआ है यह नीतीश सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है, खासकर तब जब 2025 में विधानसभा चुनाव काफी नज़दीक हैं.
क्या है युवाओं की मांग?
बिहार के युवा केवल नौकरी ही नहीं चाहता है बल्कि एक ऐसा सिस्टम चाहता हैं जो उनके सपनों को पंख दे. उनकी प्रमुख मांगें हैं:
सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी होना चाहिये.
निजी क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिए निवेश और औद्योगीकरण.
शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स को मज़बूत करना चाहिए .
पुलिस और प्रशासन के दमनकारी रवैये पर रोक लगनी चाहिये
यह मांग नया नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से युवा सड़कों पर उतर रहा हैं, वह साफ संदेश देता है कि अब वे और इंतज़ार करने के मूड अब में नहीं हैं.
नीतीश सरकार का भविष्य: कुर्सी बचेगी या जाएगी?
नीतीश कुमार के सियासी चतुराई और गठबंधन के ताकत ने उनको लंबे समय तक बिहार के सत्ता में बनाए रखा है. लेकिन इस बार का चुनौती काफी अलग
दिख रहा है. युवा वर्ग, जो बिहार के आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, अब सीधे तौर पर उनकी नीतियों को चुनौती दे रहा है.
सियासी समीकरण: नीतीशके के एनडीए के साथ साझेदारी और बीजेपी का समर्थन अभी भी उनकी सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन अगर युवाओं का गुस्सा मतदाताओं तक पहुंचा गया तो यह गठबंधन के लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है.
विपक्ष के रणनीति: राजद के साथ साथ और भी अन्य विपक्षी दल इस आंदोलन को हवा देकर नीतीश को घेरने के कोशिश में लगा हुआ हैं.अगर यह आंदोलन और बिस्तार रूप से बड़ा हुआ, तो यह 2025 के चुनाव में बड़ा फैक्टर बनकर सावित हो सकता है.
नीतीश का जवाब: नीतीश सरकार ने अभी तक इस मामले पर ठोस बयान या कार्रवाई से परहेज करते आया है. अगर सरकार जल्द ही युवाओं के मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो यह आंदोलन और उग्र रूप धारण कर सकता है.
निष्कर्ष: बिहार का भविष्य युवाओं के हाथों में
बिहार के युवा आज केवल सड़कों पर नहीं ही नहीं खड़ा है बल्कि एक नए बदलाव के दहलीज़ पर खड़ा हैं नीतीश सरकार के लिए यह समय आत्ममंथन का है. क्या वे युवाओं के आवाज़ सुनेंगे, या फिर लाठी और सत्ता के दम पर इस आंदोलन को दबाने की कोशिश करेंगे? यह सवाल न केवल नीतीश सरकार के भविष्य को तय करेगा, बल्कि बिहार के सियासत को भी नई दिशा देगा.
बिहार के नौजवान अब चुप नहीं रहने वाला है. वह हिसाब मांग रहा है, और यह हिसाब नीतीश सरकार को देना ही पड़ेगा.क्या नीतीश इस चुनौती से पार पाएंगे, या बिहार के सत्ता में कोई नया चेहरा उभरेगा? यह आने वाला समय ही बताएगा.

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