चिराग पासवान की हुंकार से एनडीए में पेंच: कुशवाहा-मांझी की सियासी जमीन पर मंडराया संकट!
तीसरा पक्ष डेस्क,पटना | चिराग पासवान की 243 सीटों के दावे से बिहार की सियासत में गर्मी बढ़ गई है. विधानसभा चुनाव 2025 से पहले लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने ऐसा सियासी तीर छोड़ा है, जिसने एनडीए गठबंधन की एकता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. आरा में 8 जून 2025 को आयोजित ‘नव संकल्प महासभा‘ में उन्होंने एलान किया कि उनकी पार्टी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है. इस घोषणा ने जदयू के साथ ही गठबंधन में शामिल अन्य दलों—राष्ट्रीय लोक जनता पार्टी (उपेंद्र कुशवाहा) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (जीतन राम मांझी)—के लिए ऐसा लगता है कि मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
आरा से भरी चिराग ने हुंकार: “हर सीट पर हमारी पकड़”
आरा में आयोजित सभा में चिराग पासवान ने कहा, “मेरे चुनाव लड़ने से मेरी पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहतर होगा, जिससे एनडीए को मजबूती मिलेगी.” सभा में चिराग ने दावा किया कि, “अगर हम सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, तो एनडीए को ज़्यादा मजबूती मिलेगी, क्योंकि हमारी पार्टी का स्ट्राइक रेट सबसे बेहतर रहा है.”

हालांकि उनके इस बयान को लेकर दो राय हैं — कुछ इसे पूर्ण रूप से 243 सीटों पर लड़ने का ऐलान मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे गठबंधन के लिए सीटें जीतने की प्रतिबद्धता के रूप में देख रहे हैं. कुछ कार्यकर्ताओं और विश्लेषकों ने उनके बयान को सभी 243 सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशी उतारने की घोषणा के रूप में देखा. इस बयान ने गठबंधन में सीट बंटवारे की चर्चाओं को और जटिल कर दिया है. कुछ सूत्रों का कहना है कि चिराग की पार्टी 25-28 सीटों की मांग कर रही है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा 20-30 सीटों की उम्मीद कर रहे हैं.
चिराग की चाल: दबाव या दांव?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चिराग पासवान का यह ऐलान सीधे तौर पर बीजेपी-जेडीयू नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति है. इससे उन्हें सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद मिल सकती है. कुछ विश्लेषक इसे चिराग की भविष्य की मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा से भी जोड़ कर देख रहे हैं.
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गठबंधन की एकता पर संकट के बादल
एनडीए में सीटों को लेकर जारी यह टकराव एक साफ संकेत है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो बिहार में गठबंधन टूट सकता है या फिर अंदरूनी असंतोष बढ़ सकता है. ऐसे में भाजपा और जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व को सूझबूझ से काम लेना होगा.
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उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की स्थिति
एनडीए के अन्य घटक दलों, जैसे उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता पार्टी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, ने भी अपनी-अपनी दावेदारी लगभग ठोक दी है. कुशवाहा ने मुजफ्फरपुर में 8 जून को एक रैली आयोजित की, जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी की चुनावी तैयारियों को प्रदर्शित किया. दूसरी ओर, मांझी ने लोकसभा चुनाव के समय दो सीटों और एक राज्यसभा सीट के वादे का हवाला देते हुए अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक हिस्सेदारी की मांग की है.
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छोटे दलों का संतुलन बिगड़ने की आशंका
इस घटनाक्रम से सबसे अधिक असहज स्थिति में हैं—उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी.
कुशवाहा ने 8 जून को मुजफ्फरपुर में रैली कर 20-30 सीटों की दावेदारी जताई.
वहीं मांझी ने पुराने लोकसभा वादों की याद दिलाते हुए कहा है कि विधानसभा में उन्हें “सम्मानजनक हिस्सेदारी” चाहिए.
दोनों नेताओं को डर है कि चिराग की आक्रामक रणनीति के चलते उनके हिस्से की सीटों पर कटौती हो सकती है.
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चुनाव से पहले क्या दरक जाएगा एनडीए का ढांचा?
बिहार में चुनाव नजदीक है और एनडीए के लिए यह वक्त संगठन मजबूत करने का है, लेकिन अंदरूनी संघर्ष और सीटों की जंग ने एकता की तस्वीर को धुंधला कर दिया है.
अब देखना ये है कि चिराग पासवान का यह दांव उन्हें लाभ देगा या एनडीए के लिए मुसीबत बन जाएगा.

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