आदेश के बाद भी आदेश नहीं! सुप्रीम कोर्ट पर EC की चुप्पी पर उठे सवाल
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 23 अगस्त 2025:बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है.इस बार सीधे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठया गया हैं.राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने आयोग पर देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया है.जानिए, पूरा मामला क्या है और इसके राजनीतिक मायने क्या हो सकता हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को मान्यता देने का दिया था आदेश
राजद प्रवक्ता ने बताया कि 22 अगस्त 2025 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णायक आदेश जारी करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि मतदाता पहचान के लिए आधार कार्ड को भी वैध प्रमाणपत्र के रूप में मान्यता दिया जाये. यह आदेश राज्य के 12 प्रमुख राजनीतिक दलों को भी निर्देशित करता है कि वे अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) को मतदाताओं की मदद के लिए निर्देशित करें.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 9 में स्पष्ट लिखा गया है कि मतदाता सूची अद्यतन के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा एसआईआर अधिसूचना में उल्लिखित 11 दस्तावेजों के अलावा आधार कार्ड भी प्रस्तुत किया जा सकता है. यह आदेश मतदाता सत्यापन प्रक्रिया को अधिक समावेशी और सरल बनाने के लिए दिया गया था.
चुनाव आयोग अब तक नहीं दे सका दिशा-निर्देश, मचा भ्रम
चित्तरंजन गगन का कहना है कि कोर्ट के आदेश के 24 घंटे से अधिक समय बीत जाने के बाद भी चुनाव आयोग की ओर से किसी प्रकार का आधिकारिक दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया है. इस कारण से बीएलए द्वारा जब मतदाता आधार कार्ड के साथ फॉर्म भरवा रहे हैं. तो बीएलओ उसे स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं.
इस स्थिति ने मतदाताओं के बीच भ्रम और असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दिया है.जिससे ना केवल मतदाता बल्कि राजनीतिक कार्यकर्ता भी परेशान हैं.
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शुद्धिकरण की आड़ में गड़बड़ी की आशंका: राजद
राजद प्रवक्ता ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग जानबूझकर प्रक्रिया को जटिल बनाया जा रहा है ताकि मतदाता सूची शुद्धिकरण की आड़ में हेराफेरी किया जा सके .उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को एक राजनीतिक साजिश करार दिया है.जिसका मकसद संभावित रूप से कुछ वर्गों के मतदाताओं को सूची से बाहर करना हो सकता है.
उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश की सर्वोच्च अदालत ने आधार कार्ड को वैध दस्तावेज मान लिया है. तो आयोग किस आधार पर उसे अस्वीकार कर रहा है?
लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी?
राजद का मानना है कि चुनाव आयोग की यह निष्क्रियता और अनदेखी भारतीय लोकतंत्र की निष्पक्षता पर गहरी चोट है.मतदाता सूची में पारदर्शिता और समानता सबसे ज़रूरी शर्तें हैं. और अगर किसी वर्ग या समुदाय को जानबूझकर भ्रमित किया जाता है या बाहर किया जाता है. यह न केवल नैतिक मूल्यों को ठेस पहुंचाता है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्था को भी कमज़ोर करता है.यह संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन भी है.
अब आगे क्या? चुनाव आयोग की अगली कार्रवाई पर सबकी नजर
इस पूरे घटनाक्रम के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गया है. सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगा या स्थिति को और उलझाएगा?
वहीं, राजद सहित अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को और जोर-शोर से उठाने की तैयारी में हैं.अगर जल्द ही स्थिति स्पष्ट नहीं हुआ. तो यह मामला एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. जो आगामी चुनावों की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है.
निष्कर्ष
यह प्रकरण एक बार फिर साबित करता है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता, न्याय और संवैधानिक आदेशों का सम्मान अत्यंत आवश्यक है. अगर चुनाव आयोग जैसी संस्था ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी करने लगे तो फिर आम नागरिक किससे उम्मीद करे?
यदि आप इस मुद्दे पर अपनी राय देना चाहते हैं या अपने क्षेत्र में ऐसी ही कोई समस्या सामने आई है, तो कमेंट में साझा करें.

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