बिहार में शासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी: 10 साल की दलित बच्ची की मौत का जिम्मेदार कौन?

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Ajit Kumar

बिहार
बिहार में शासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी: 10 साल की दलित बच्ची की मौत का जिम्मेदार कौन?

विशाखा कुमारी की मौत ने बिहार की व्यवस्था की पोल खोल दी है!

तीसरा पक्ष ब्यरो पटना :बिहार में शासन-प्रशासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता एक बार फिर सुर्खियों में है. मुजफ्फरपुर में 10 वर्षीय दलित बच्ची विशाखा कुमारी के साथ हुए बर्बर बलात्कार और इलाज में लापरवाही के कारण उसकी मौत ने पूरे राज्य की व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं. भाकपा (माले) ने इसे सरकार की दोहरी नाकामी करार दिया है. आइए, इस मामले को विस्तार से समझें.

मुजफ्फरपुर की दिल दहलाने वाली घटना

मुजफ्फरपुर के कुढ़नी प्रखंड के जगन्नाथपुर गांव में 10 साल की दलित बच्ची विशाखा के साथ यौन हिंसा की घटना ने सबको झकझोर दिया. भाकपा (माले) के राज्य सचिव कुणाल ने इस घटना को बिहार की बिगड़ती कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का सबूत बताया. बच्ची की मौत के लिए उन्होंने सीधे तौर पर सरकार को जिम्मेदार ठहराया.

स्वास्थ्य व्यवस्था की लचर स्थिति

विशाखा को इलाज के लिए पहले मुजफ्फरपुर के अस्पताल में भर्ती किया गया, फिर पीएमसीएच रेफर किया गया.लेकिन दोनों जगह समय पर इलाज शुरू न होने से उसकी जान चली गई. कुणाल ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से तत्काल इस्तीफे की मांग की है. उनका कहना है कि पीएमसीएच जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में ऐसी लापरवाही निंदनीय और आपराधिक है. यह बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की असंवेदनशीलता को दर्शाता है, खासकर गरीब और दलित समुदाय के लिए.

बिहार में शासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी: 10 साल की दलित बच्ची की मौत का जिम्मेदार कौन?

माले-ऐपवा जांच दल की सक्रियता

घटना के बाद भाकपा (माले) और ऐपवा का एक जांच दल पीड़िता के गांव पहुंचा. इस दल में विधायक गोपाल रविदास, ऐपवा की अनिता सिन्हा और पूर्व विधायक मनोज मंजिल शामिल थे. दल ने पीड़ित परिवार से मुलाकात कर उन्हें हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया.परिवार अत्यंत गरीब है, पिता का दो साल पहले देहांत हो चुका है, और मां मजदूरी कर बच्चों का पालन-पोषण करती है.

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प्रशासन की लापरवाही उजागर

जांच दल ने पाया कि प्रशासन ने इस मामले में पूरी तरह उदासीनता दिखाई. सामान्यतः ऐसी घटनाओं में मजिस्ट्रेट की नियुक्ति होती है, लेकिन पीएमसीएच तक कोई प्रशासनिक प्रतिनिधि मौजूद नहीं था. रेफर करने में देरी और इलाज शुरू न होने की वजह से बच्ची की जान गई. हालांकि, माले-ऐपवा के गांव पहुंचते ही प्रशासन हरकत में आया. बीडीओ ने पीड़िता की मां को 4 लाख रुपये का मुआवजा, मासिक पेंशन, इंदिरा आवास और बच्चों की पढ़ाई के लिए आंबेडकर स्कूल में दाखिले का वादा किया.

स्थानीय विधायक की निष्क्रियता

जांच दल ने स्थानीय भाजपा विधायक की चुप्पी और निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए. इस घटना ने गांव की बच्चियों में डर पैदा कर दिया है, जो अब स्कूल जाने से कतरा रही हैं. यह बिहार के तथाकथित “सुशासन” पर एक जोरदार तमाचा है.

4 जून को राज्यव्यापी विरोध

भाकपा (माले) और ऐपवा ने इस घटना के खिलाफ 4 जून को पूरे बिहार में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. पार्टी ने स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे और दोषी के खिलाफ त्वरित सुनवाई (स्पीडी ट्रायल) की मांग की है.साथ ही, सभी लोकतांत्रिक संगठनों और नागरिकों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है.

आगे की चेतावनी

पार्टी ने सरकार को चेताया है कि यदि त्वरित कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा. यह मामला न केवल एक बच्ची की दर्दनाक मौत का है, बल्कि बिहार में शासन और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का भी प्रतीक है.

निष्कर्ष

विशाखा कुमारी की मौत ने बिहार की व्यवस्था की पोल खोल दी है. यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या गरीब और दलित समुदाय के लिए बिहार में न्याय और सुरक्षा का कोई स्थान है? भाकपा (माले) का यह आंदोलन न केवल एक बच्ची को न्याय दिलाने की लड़ाई है, बल्कि पूरे सिस्टम को जवाबदेह बनाने की कोशिश भी है.

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