गोपाल खेमका हत्याकांड: क्या बिहार में अब सुरक्षित कोई नहीं?

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Ajit Kumar

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गोपाल खेमका हत्याकांड: क्या बिहार में अब सुरक्षित कोई नहीं?

पटना में खून, सन्नाटा और सवाल: कौन बचाएगा बिहार के व्यापारियों को?

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 5 जुलाई:राजधानी पटना में प्रतिष्ठित व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या ने एक बार फिर बिहार में बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस सनसनीखेज घटना को लेकर राजनीतिक हलकों से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है. शहर के प्रतिष्ठित कारोबारी की दिनदहाड़े हुई हत्या केवल एक अपराध नहीं, बल्कि बिहार की बदहाल कानून व्यवस्था की एक और मिसाल बन गई है.

भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल और आरा से सांसद एवं व्यवसायी संघ के राज्य संरक्षक सुदामा प्रसाद ने खेमका की हत्या पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए राज्य की स्थिति को पूरी तरह अपराधियों के चंगुल में फंसा हुआ बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि आज बिहार में सरकार जैसी कोई चीज बची ही नहीं है. अपराधी इतने बेखौफ हो गए हैं कि वे दिनदहाड़े शहरों और गांवों में हत्या जैसी जघन्य घटनाओं को अंजाम देने से भी नहीं डरते.

अपराधियों के हौसले बुलंद, पुलिस बेपरवाह?

माले नेताओं ने यह भी जानकारी दी कि खेमका की हत्या के बाद पुलिस काफी देर से मौके पर पहुंची, जिससे आम लोगों में गहरा असंतोष व्याप्त है. इससे पहले सिवान में तीन लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी, जो इस बात का प्रमाण है कि राज्य में अब किसी की भी जान सुरक्षित नहीं है.

कुणाल और सुदामा प्रसाद ने भाजपा-जदयू सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि जब राज्य में दलित और गरीब सुरक्षित नहीं हैं, तो अब व्यवसायी वर्ग भी निशाने पर आ गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यहां तक कि भाजपा से जुड़े व्यवसायी भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं.

पीड़ित परिवार से मिले माले नेता

इस दुखद घटना के बाद भाकपा-माले का प्रतिनिधिमंडल खेमका परिवार से मिलने उनके आवास पहुंचा और परिजनों को सांत्वना दी. प्रतिनिधिमंडल में मीना तिवारी, महबूब आलम, शशि यादव, गोपाल रविदास और अभ्युदय जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे. सभी ने पीड़ित परिवार के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए न्याय की मांग की.

गोपाल खेमका की हत्या ने न केवल व्यापारिक समुदाय में भय का माहौल पैदा किया है, बल्कि आम जनता के बीच भी गहरी चिंता की लहर दौड़ा दी है. सवाल यही है—क्या बिहार में अब कोई सुरक्षित है?

राज्य सरकार की भूमिका पर उठ रहे इन तीखे सवालों के बीच लोगों की निगाहें अब इस ओर टिकी हैं कि क्या शासन-प्रशासन इस अराजकता पर काबू पाने में कोई ठोस कदम उठाएगा या हालात और बिगड़ते जाएंगे.

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