जब गुजरात को मिलता है उद्योग तो बिहार को क्यों दिया जा रहा है पूजन-पथ?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 10 अगस्त, 2025 — राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिवानंद तिवारी ने केंद्र सरकार और विशेष रूप से गृहमंत्री अमित शाह पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाया है कि बिहार को धार्मिक अनुष्ठानों में उलझाकर यहां के ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश किया जा रहा है. जबकि गुजरात में विकास का पहिया औद्योगीकरण के माध्यम से तेजी से घूम रहा है.
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के ज़रिए शनिवार को तिवारी ने सवाल उठाया कि,जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गुजरात जाते हैं. तो किसी न किसी बड़े उद्योग की आधारशिला रखते हैं या नए प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते हैं.लेकिन वहीं बिहार में मंदिर निर्माण को ‘भाग्योदय’ बताया जा रहा है.क्या बिहार के लिए विकास का रास्ता केवल धार्मिक शिलान्यासों से होकर ही जाएगा?
उन्होंने इसे ,धार्मिक तुष्टिकरण द्वारा वोट जुटाने की एक गुजराती रणनीति, बताया और आरोप लगाया कि बिहार के लोगों की पीड़ा को नजरअंदाज कर धर्म आधारित राजनीति किया जा रहा है.राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिवानंद तिवारी ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए पूछा है कि,क्यों हर बार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री गुजरात में औद्योगिक परियोजनाओं का उद्घाटन करते हैं, जबकि बिहार में केवल धार्मिक शिलान्यास होते हैं?
गुजरात में हर दौरे के साथ नए उद्योग पनपते हैं.रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं. और निवेशकों की कतार लगती है. वहीं बिहार को,भाग्योदय,के नाम पर मंदिर थमा दिया जाता है.क्या बिहार को केवल धार्मिक एजेंडे का मैदान मान लिया गया है? तिवारी के शब्दों में, यह गुजराती चालबाज़ी है — विकास की नहीं, वोट की राजनीति.
शिवानंद तिवारी ने बिहार की मौजूदा स्थिति पर भी चिंता जताया है. उन्होंने कहा कि राज्य के कई हिस्से गंगा और अन्य नदियों की कटाव की चपेट में हैं. गांव के गांव जलसमाधि की ओर बढ़ रहा हैं.तटीय कटाव और बाढ़ की समस्या से राज्य का 70% हिस्सा प्रभावित है. लाखों लोग विस्थापन और आजीविका संकट का सामना कर रहे हैं.
इन त्रासदियों से लड़ने की बजाय, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री धार्मिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं. तिवारी ने लिखा “क्या यही राजधर्म है?
उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार दोनों से सवाल किया कि आखिर बिहार के लिए ठोस विकास योजनाएं कब आएंगी? उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर की योजनाओं की बजाय, धार्मिक आयोजन क्या बिहार की बदहाली का इलाज हो सकते हैं?
शिवानंद तिवारी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब हाल ही में बिहार के एक जिले में भव्य मंदिर निर्माण का शिलान्यास हुआ, जिसमें अमित शाह ने इसे बिहार के भाग्य को बदलने वाला कदम” बताया था.तो आइये तथ्य को बिस्तार से विश्लेषण करते है और एक एक परत को खोलते है….
बाढ़ में बहते घर, कटते गाँव: बिहार की त्रासदी पर मौन क्यों है सत्ता?
शिवानंद तिवारी ने सरकार को सीधे कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि बिहार का 70 प्रतिशत भूभाग हर साल बाढ़ की चपेट में आता है.गंगा और अन्य नदियों की कटाव प्रक्रिया ने सैकड़ों गांवों को निगल लिया है. लाखों लोग बेघर हो रहे हैं. खेती तबाह हो रहा है.स्कूल-स्वास्थ्य केंद्र डूब रहा हैं.
लेकिन सत्ता के शीर्ष पुरुष या तो धार्मिक आयोजनों में व्यस्त हैं या फिर बिहार की त्रासदी पर चुप्पी साधे हुए हैं. क्या यही है उनका राजधर्म? — यह सवाल बिहार के हर बाढ़ पीड़ित नागरिक की ओर से पूछा जा रहा है.
धार्मिक आयोजन से नहीं, उद्योग और रोज़गार से बदलता है भाग्य
तिवारी का यह भी तर्क है कि विकास का वास्तविक रास्ता मंदिरों से नहीं, मशीनों और मज़दूरों से होकर गुजरता है. गुजरात में जहां लगातार टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, केमिकल और फार्मा उद्योगों का विस्तार हो रहा है.वहीं बिहार को सिर्फ आश्वासनों और धार्मिक आयोजनों का लोलीपॉप पकड़ाया जा रहा है.
क्या बिहार के युवा सिर्फ पुजारियों के सहारे अपना करियर बनाएंगे? क्या यहां की लड़कियां अस्पताल की जगह प्रसाद की लाइन में खड़ी होंगी? यह सवाल सिर्फ विपक्ष के नहीं, हर जागरूक नागरिक के हैं.
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तुष्टिकरण की नई परिभाषा: बिहार की आस्था से वोट, लेकिन ज़मीनी मुद्दों पर चुप्पी
शिवानंद तिवारी ने केंद्र पर धार्मिक तुष्टिकरण का सीधा आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि बिहार के लोगों की आस्था को वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. मंदिरों की राजनीति से भावनाओं को भुनाया जा रहा है.लेकिन जब बात विकास का आता है.तो बिहार को दूसरे दर्जे का राज्य मान लिया जाता है.
यह राजनीति बिहार को भिखारी नहीं, भक्त बनाने की दिशा में ले जा रहा है — जहां रोज़गार नहीं, रिवाज मिलेगा.जहां सड़क नहीं, सजदा होगा.
अब जनता पूछेगी सवाल: मंदिर कब तक ढक पाएगा बाढ़ और भूख की सच्चाई?
बिहार की जनता अब सवाल कर रहा है कि — क्या मंदिर की नींव से पुल बनेगा? क्या शंख की आवाज़ से खेतों में हरियाली आएगी? क्या घंटी की ध्वनि से स्कूल खुलेंगे?
शिवानंद तिवारी की पोस्ट सिर्फ एक नेता की टिप्पणी नहीं, बल्कि उस करोड़ों बिहारी की आवाज़ है जो हर साल प्रकृति की मार और सरकार की बेरुख़ी से जूझ रहा है. अब धार्मिक दिखावे से जनता का भरोसा नहीं जीता जा सकता — अब जवाब देना पड़ेगा.
निष्कर्ष:
बिहार को मंदिर नहीं, मज़बूत नीति चाहिए. आरती की लौ से अंधेरा नहीं हटता है. उसके लिए बिजली चाहिये. विकास की गंगा सिर्फ आरती से नहीं बहेगी. उसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, निवेश और विजन चाहिये . सरकार को तय करना होगा कि — क्या वह बिहार के भविष्य को वोटबैंक की राजनीति में गिरवी रखेगा. या उसे विकास की मुख्यधारा में जोड़ेगा ?

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