तेजस्वी गरजे: वोटर लिस्ट में साजिश, लोकतंत्र पर वार!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, जुलाई 2025 – बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य में वोट नहीं, बल्कि पहचान की परीक्षा ली जा रही है. उन्होंने दावा किया कि वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ियां और योजनाबद्ध साजिश की जा रही है, जिससे लोकतंत्र पर सीधा प्रहार हो रहा है.
क्या है तेजस्वी का आरोप?
तेजस्वी यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा
हजारों की संख्या में अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और गरीब तबकों के नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिए गए हैं. यह सिर्फ एक प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश है. यह लोकतंत्र की हत्या है.
उनका कहना है कि इस बार का चुनाव वोट से ज़्यादा, पहचान की लड़ाई बन गया है. उन्होंने निर्वाचन आयोग पर भी सवाल उठाते हुए निष्पक्षता की मांग की.
वोटर लिस्ट में अनियमितताएं
बिहार के कई जिलों से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि लोगों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं हैं, जबकि उन्होंने समय रहते नाम दर्ज कराया था. कुछ जगहों पर तो यह भी देखा गया कि एक ही परिवार के कुछ सदस्य सूची में हैं, और कुछ पूरी तरह गायब.
तेजस्वी ने दावा किया कि
कुछ इलाकों में 30% तक नाम गायब हैं
विशेष समुदायों को टारगेट किया जा रहा है
बिना कारण नाम हटाए जा रहे हैं
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जनता का गुस्सा और निराशा
बिहार के मधुबनी, समस्तीपुर, दरभंगा, और पटना जैसे इलाकों से सामने आए जमीनी रिपोर्ट में दिखा कि बुजुर्ग, महिलाएं और युवा – सभी वोटर लिस्ट से गायब नामों को लेकर परेशान हैं। कई ने यह भी कहा कि वोट देने का अधिकार छिन जाना बहुत अपमानजनक अनुभव है.
एक स्थानीय निवासी ने कहा,
मैं पिछले 30 सालों से लगातार वोट डाल रहा हूँ, लेकिन इस बार मेरा नाम ही नहीं है. क्या अब हमें अपनी नागरिकता भी साबित करनी होगी?
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लोकतंत्र पर संकट?
तेजस्वी यादव का यह आरोप सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि व्यापक बहस की शुरुआत मानी जा रही है. अगर वोटर लिस्ट में इस प्रकार की गड़बड़ी होती है, तो यह चुनाव की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है.
उन्होंने कहा,
अगर जनता का भरोसा ही खत्म हो गया, तो चुनाव सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएगा.हम इसके खिलाफ सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ेंगे.
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सरकार और आयोग का पक्ष
राज्य सरकार और चुनाव आयोग ने फिलहाल इन आरोपों को राजनीतिक बयानबाजी बताया है. आयोग ने यह भी कहा है कि नाम हटाने की प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ होती है, और अगर किसी को शिकायत है तो वे आवेदन कर सकते हैं.
हालांकि, तेजस्वी और उनके समर्थकों का कहना है कि शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया इतनी जटिल और लंबी है कि आम आदमी उसमें उलझकर रह जाता है.
निष्कर्ष
बिहार में इस समय सिर्फ चुनाव की तैयारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणा – “समानता और भागीदारी” – पर बहस हो रही है. तेजस्वी यादव का बयान सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि उस वर्ग की आवाज बनता जा रहा है, जो खुद को हाशिए पर पाता है.
अब देखना यह है कि क्या चुनाव आयोग और राज्य सरकार इन आरोपों की गंभीरता को समझते हुए कार्रवाई करती है या फिर यह मुद्दा भी महज़ चुनावी शोर में दबकर रह जाएगा.

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