कानपुर में कुर्मी समाज का पलायन: शासन की चुप्पी पर उठे सवाल

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kmSudha

भारततीसरा पक्ष आलेख
कानपुर में कुर्मी समाज का पलायन: शासन की चुप्पी पर उठे सवाल

जब गाँव छोड़ने पर मजबूर हुए कुर्मी समाज: अरोल खासपुर से उठती एक दर्दनाक पुकार

तीसरा पक्ष डेस्क,कानपुर, उत्तर प्रदेश — योगी आदित्यनाथ सरकार में सामाजिक न्याय को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं. कानपुर जिले की बिल्हौर तहसील स्थित अरोल खासपुर गाँव में कुर्मी समाज के करीब 35 परिवार अपनी ज़मीन-जायदाद बेचकर दूसरे जगहों में पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं. यह मामला न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोरता है, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी सवाल उठाता है.

पीड़ितों का आरोप है कि उन्हें लगातार सामाजिक दबाव, प्रशासनिक उपेक्षा और स्थानीय उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. हालात ऐसे बन गए कि उन्हें अपने घर-द्वार छोड़ने का कठोर निर्णय लेना पड़ा. यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 — “जीवन जीने के अधिकार” — का भी सीधा उल्लंघन है.

“हमने कुछ नहीं माँगा — सिर्फ सम्मान से जीने की जगह, पर वो भी नहीं मिली…”

— यह शब्द हैं कानपुर के बिल्हौर तहसील के अरोल खासपुर गाँव के एक बुज़ुर्ग किसान के, जो अब अपने पूरे परिवार के साथ गाँव छोड़ने की तैयारी में है.

35 बहुजन परिवारों का सामूहिक पलायन — क्या यही ‘रामराज्य’ है?
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में “सबका साथ, सबका विकास” का नारा गूंजता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट दिखाई दे रही है. कानपुर जिले के अरोल खासपुर गाँव में कुर्मी समाज के लगभग 35 परिवार अपनी पुश्तैनी ज़मीनें बेचकर राज्य से बाहर जाने को मजबूर हैं. यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय और प्रशासनिक उपेक्षा का नतीजा है.

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सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप

X (पूर्व ट्विटर) पर भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद द्वारा किए गए एक पोस्ट में इस घटना को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “रामराज्य” की विफलता बताया गया है.चंद्रशेखर द्वारा सवाल उठाया गया कि क्या कुर्मी समाज का दर्द शासन के लिए कोई मायने नहीं रखता?

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क्या है मामला?

गाँव के लोगों का कहना है कि उन्हें वर्षों से उत्पीड़न, भेदभाव और डर का माहौल झेलना पड़ रहा है. वे थानों और दफ्तरों के चक्कर काटते रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि ये परिवार अपना सब कुछ छोड़कर पलायन कर रहे हैं — एक ऐसे प्रदेश से जो खुद को “रामराज्य” कहता है.

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संविधान का उल्लंघन: अनुच्छेद 21 की अनदेखी

भारत का संविधान हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है (अनुच्छेद 21). तो सवाल उठता है —जब कोई नागरिक अपने ही राज्य में असुरक्षित महसूस करे और उसे पलायन करना पड़े, तो उस संविधान का क्या मतलब रह जाता है?

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चंद्रशेखर ने उठाई आवाज़ — माँगे भी रखी गईं:

सोशल मीडिया X पर वायरल हुए एक पोस्ट में मुख्यमंत्री को टैग करते हुए @myogiadityanath से चंद्रशेखर द्वारा सीधा सवाल पूछा गया है —“क्या कुर्मी समाज का दर्द आपके लिए कोई मायने नहीं रखता?”

माँगें इस प्रकार हैं:
  • पीड़ित परिवारों को तुरंत राज्य संरक्षण दिया जाए.
  • उत्पीड़न करने वालों पर BNS की सख़्त धाराओं में FIR और गिरफ्तारी हो.
  • गाँव में फोर्स की तैनाती कर हालात सामान्य बनाए जाएँ.
  • पुलिस व प्रशासन की भूमिका की स्वतंत्र जांच कर दोषियों पर कार्रवाई हो.
समाज में आक्रोश

यह घटना सिर्फ कानपुर की नहीं रही — यह पूरे समाज के आत्मसम्मान का सवाल बन चुकी है.कई सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस घटना को “सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ “ बताया है और विरोध की तैयारी में हैं.

आप क्या सोचते हैं?

क्या समाज की सभी ब्यक्तियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए सरकार को और जवाबदेह होना चाहिए?

2025 में जब भारत नई ऊँचाइयों की बात कर रहा है, तब एक पूरा समाज अपने ही राज्य से पलायन कर रहा है — यह लोकतंत्र के लिए गंभीर चेतावनी है.अब वक्त आ गया है कि सरकार संवेदनशीलता दिखाए, सिर्फ़ ट्वीट नहीं, ज़मीनी कार्रवाई करे.क्योंकि अगर आज इन आवाज़ों को अनसुना किया गया, तो कल यही समस्या पूरे देश और समाज को कमजोर करेगा.


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