भारत की विदेश नीति दिशाहीन? – मल्लिकार्जुन खड़गे

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kmSudha

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भारत की विदेश नीति दिशाहीन? – मल्लिकार्जुन खड़गे

गाज़ा संघर्ष पर भारत की चुप्पी पर खड़गे का तीखा हमला: क्या विदेश नीति रास्ता भटक चुकी है?

तीसरा पक्ष डेस्क,नई दिल्ली: गाज़ा संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में हुए मतदान में भारत के “एब्सटेन” (मतदान से दूरी) रखने के फैसले पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर तीखा वार किया है –उन्होंने सरकार से पूछा है “भारत की विदेश नीति बिखराव की स्थिति में है, गाज़ा संकट पर एब्सटेन क्यों?”. क्या भारत ने अपनी नैतिक कूटनीति छोड़ दी? आगे पढ़ें पूरा विश्लेषण पढ़ें.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X (पूर्व ट्विटर) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि:
“अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि हमारी विदेश नीति बिखराव की स्थिति में है. प्रधानमंत्री मोदी को अपने विदेश मंत्री की बार-बार की भूलों पर अब फैसला लेना चाहिए और जवाबदेही तय करनी चाहिए.”

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क्या भारत ने अपने सिद्धांतों से मुँह मोड़ लिया है?

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खड़गे का यह बयान ऐसे समय में आया है जब 149 देशों ने गाज़ा में युद्धविराम के पक्ष में मतदान किया, लेकिन भारत उन 19 देशों में शामिल रहा जिन्होंने मतदान से दूरी बनाई. इसने भारत की नैतिक और संतुलित विदेश नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

खड़गे ने याद दिलाया कि 8 अक्टूबर 2023 को कांग्रेस ने इज़राइल पर हमास के हमलों की निंदा की थी. लेकिन, उसी के साथ, 19 अक्टूबर 2023 को पार्टी ने गाज़ा पट्टी पर हो रहे बमबारी और मानवीय संकट की भी कड़ी आलोचना करते हुए तत्काल युद्धविराम और मानवीय सहायता की मांग की थी.

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भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर धूमिल?

कांग्रेस अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि :”क्या हमने अब उस ऐतिहासिक और संतुलित दृष्टिकोण को छोड़ दिया है, जो भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और नैतिक कूटनीति की पहचान रहा है?” उन्होंने कहा कि गाज़ा में 60,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और एक व्यापक मानवीय त्रासदी सामने है, ऐसे समय में भारत का चुप रहना निंदनीय है।राजनीतिक दबाव या कूटनीतिक चूक?

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राजनीतिक दबाव या कूटनीतिक चूक?

विश्लेषकों का मानना है कि भारत की विदेश नीति पिछले कुछ वर्षों में स्पष्ट नैतिक दिशा की बजाय सामयिक रणनीतिक गठबंधनों और व्यक्ति विशेष पर केंद्रित रही है. पश्चिम एशिया जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारत को स्पष्ट और साहसी रुख अपनाना चाहिए, न कि बहुमत की भावना के खिलाफ जाकर खुद को अलग-थलग करना चाहिए.

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खड़गे की चेतावनी: अब और चुप्पी नहीं

खड़गे ने कहा कि भारत केवल मूकदर्शक नहीं बना रह सकता. इस समय जब मध्य पूर्व क्षेत्र हिंसा, मानवीय संकट और अस्थिरता से जूझ रहा है, तब भारत का कर्तव्य है कि वह अपने ऐतिहासिक और नैतिक रुख के साथ खड़ा हो.

निष्कर्ष

मल्लिकार्जुन खड़गे की यह टिप्पणी केवल सरकार की आलोचना नहीं, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और मूल्यों को लेकर गंभीर चेतावनी भी है. अब यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निर्भर करता है कि वह इस “एब्सटेन” नीति पर पुनर्विचार कर भारत को उसकी नैतिक नेतृत्व की भूमिका में वापस ले जाते हैं या यथास्थिति पर कायम रहते हैं.

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