नीतीश सरकार पर मदरसा शिक्षकों की उपेक्षा का आरोप

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Ajit Kumar

बिहार
नीतीश सरकार पर मदरसा शिक्षकों की उपेक्षा का आरोप

राजद ने उठाया राजनीतिक फायदा उठाने का मुद्दा

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 21 अगस्त 2025:राज्य की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है. इस बार मुद्दा है बिहार मदरसा बोर्ड द्वारा आयोजित शताब्दी समारोह का है, जिसे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने फर्जी उत्सव’ बताते हुए जमकर निशाना साधा है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि यह पूरा कार्यक्रम मदरसा शिक्षकों की समस्याओं को अनदेखा कर सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेताओं की छवि चमकाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया.

राजद ने उठाया राजनीतिक फायदा उठाने का मुद्दा

राजद के युवा राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एवं विधायक कारी मोहम्मद सोहैब, पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद, और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने पटना स्थित कर्पूरी सभागार में आज संयुक्त प्रेस वार्ता कर सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि यह शताब्दी समारोह पूर्णत: राजनीतिक एजेंडा था. जिसमें मदरसा से जुड़े असल मुद्दों को नजरअंदाज कर सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन की वाहवाही कराया गया.

शताब्दी समारोह पर सवाल

राजद नेताओं ने बताया कि मदरसा बोर्ड की स्थापना के 100 वर्ष वर्ष 2022 में ही पूरे हो गए थे. लेकिन सरकार ने 2025 में यह कार्यक्रम आयोजित कर इसे शताब्दी समारोह का नाम दिया.उन्होंने आरोप लगाया कि समारोह में करोड़ों रुपये खर्च किये गये लेकिन उर्दू मीडिया को विज्ञापन मुफ्त में छपवाने के लिए बाध्य किया गया. वह भी धमकी भरे पत्राचार के माध्यम से.

शिक्षकों की उपेक्षा और शोषण के आरोप

कारी सोहैब ने कहा कि बिहार के सभी सरकारी मदरसों में जबरन छुट्टी की घोषणा कर शिक्षकों को पटना बुलाया गया और उन्हें जदयू की रैलीनुमा इस समारोह में शामिल होने को मजबूर किया गया. उन्होंने दावा किया कि यह सीधा-सीधा प्रशासनिक दबाव था. जो मदरसा शिक्षकों के साथ नाइंसाफी है.

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उन्होंने यह भी बताया कि लालू-राबड़ी सरकार के समय से मिल रहा वार्षिक इंक्रीमेंट 2013 से बंद कर दिया गया है. न तो मेडिकल सुविधाएं दी जा रही हैं.और न ही नियमित वेतन. खास तौर पर 205 कोटी और 609 कोटी मदरसों के शिक्षकों को बार-बार जांच के नाम पर परेशान किया जा रहा है. जिससे 125 मदरसों के शिक्षकों को बीते दो वर्षों से वेतन नहीं मिल पाया है.

EPF, बहाली और वेतन में भेदभाव

राजद नेताओं ने बताया कि 1128 कोटी के पुराने शिक्षकों को EPF का लाभ नहीं दिया जा रहा है. और 1138 कोटी के तहत बहाल हाफ़िज़ शिक्षकों को चपरासी से भी कम वेतन मिल रहा है. इतना ही नहीं वर्ष 2020 से मदरसों में नई बहालियाँ पूरी तरह ठप हैं. जिससे सैकड़ों मदरसे बंद होने की कगार पर हैं.

धार्मिक स्वायत्तता पर हमला?

नेताओं ने संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 का हवाला देते हुए कहा कि मदरसा प्रबंध समितियों को जो अधिकार मिला हैं. उन्हें सरकार छीनने की कोशिश कर रहा है. 2022 के मदरसा एक्ट में बदलाव की लगातार मांग किया जा रहा है.लेकिन सरकार उसे नजरअंदाज कर रही है. साथ ही मैथ और साइंस जैसे विषयों के लिए योग्य शिक्षकों की बहाली भी नहीं की जा रही है.

नीतीश भाजपा-आरएसएस के एजेंडे पर

कारी सोहैब ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि नीतीश कुमार अब भाजपा और आरएसएस के,ब्रांड एंबेसडर की भूमिका में नजर आ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री की उपस्थिति वाले इस समारोह में न तो मदरसा शिक्षकों की समस्याओं की चर्चा हुई और न ही उनकी मांगों को कोई तवज्जो दी गई.

राजद नेताओं ने साफ किया कि यह समारोह दरअसल सेकुलरिज्म की आड़ में साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश है. नीतीश कुमार न पहले सेक्युलर थे. न अब हैं और न ही भविष्य में होंगे. ऐसा बयान देकर उन्होंने मुख्यमंत्री की मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा किया गया है.

संघर्ष और आंदोलन की चेतावनी

राजद ने एलान किया है कि वह इस तानाशाही रवैये और धार्मिक संस्थाओं की उपेक्षा के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष करेगा. पार्टी ने मदरसा बोर्ड की कार्यशैली और सरकार की नीतियों की जांच की मांग करते हुए राज्यव्यापी आंदोलन का संकेत दिया है.

इस संवाददाता सम्मेलन में पूर्व विधायक लाल बाबूराम, उपेंद्र चंद्रवंशी, अमजद कमाल, आकिब खान, रहमत अली और विक्रांत राय भी मौजूद रहे.

निष्कर्ष

राजद के इस तीखे तेवर ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं के दायरे में सरकार की भूमिका को कटघरे में खड़ा कर दिया है.आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक हलकों में और गर्मा सकता है.

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