बिहार को 14 लाख करोड़? पीएम के दावे और जमीनी हकीकत में फर्क क्यों?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना 18 जुलाई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुक्रवार को हुई बिहार यात्रा ने एक बार फिर वही पुरानी बातें दोहराया गया जो पिछले कई दौरों में सुनने को मिलता रहा है. यह उनकी 53वीं बिहार यात्रा था लेकिन इस बार भी कोई नया विज़न या ठोस योजना सामने नहीं है सिवाय एक बड़े आर्थिक दावे के जिसने न सिर्फ राजनीतिक हलकों में बल्कि आम जनता के बीच भी बहस छेड़ दिया है.
मोतीहारी की शुगर फैक्ट्री से वादे तक की कहानी अधूरी
पीएम मोदी ने अपने भाषण में मोतीहारी का ज़िक्र तो किया लेकिन वह वादा भूल गए जो उन्होंने 11 साल पहले किया था.मोतीहारी शुगर फैक्ट्री की चाय को लेकर 2014 में उन्होंने दावा किया था कि यहां बनने वाली चीनी से देशभर में मोदी की चाय मिलेगी पर आज तक यह सपना कागज़ों में ही सिमटा हुआ है.
2 लाख करोड़ बनाम 14 लाख करोड़: असली मुद्दा क्या है?
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में यह स्वीकार किया कि यूपीए सरकार के कार्यकाल (2004-2014) के दौरान बिहार को दो लाख करोड़ रुपए केंद्र से मिला था. यह वही समय था जब बिहार में बुनियादी विकास तेज़ी से हुआ सड़कें बनीं, बिजली पहुंची, पुल-पुलिया बने, स्कूल-कॉलेजों का विस्तार हुआ. इस विकास की गूंज पूरे देश ने भी सुना था.
लेकिन इसी मंच से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने एक और चौंकाने वाला दावा कर दिया कि एनडीए सरकार ने 2014 से 2025 के बीच बिहार को 14 लाख करोड़ रुपये दिया है. प्रधानमंत्री ने भी इस आंकड़े का समर्थन किया.
अब सवाल यह उठता है कि अगर 2 लाख करोड़ में इतना विकास हुआ तो 14 लाख करोड़ खर्च होने के बाद बिहार की स्थिति जैसी की तैसी क्यों है?
विपक्ष का सवाल: पैसा गया कहां?
राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दिया है. उन्होंने कहा कि अगर 14 लाख करोड़ सच में बिहार को मिला है तो यह रकम कहां और कैसे खर्च हुआ इसका जवाब जनता को मिलना चाहिए.
उन्होंने याद दिलाया कि 2023 में तत्कालीन वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने नीति आयोग की बैठक में खुलकर कहा था कि केंद्र बिहार की बकाया राशि तक नहीं दे रहा. यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी 2024 तक केंद्र पर उपेक्षा के आरोप लगाते रहे हैं.
आंकड़े हैं या केवल चुनावी बयानबाज़ी?
अर्थशास्त्रियों की राय में यदि बिहार को सचमुच 14 लाख करोड़ रुपए मिले होते और उनका वास्तविक और पारदर्शी उपयोग हुआ होता तो राज्य की तस्वीर ही बदल जाती. लेकिन न तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था बदली, न स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा सुधार दिखा, और न ही बेरोजगारी या पलायन पर लगाम लगा .
जनता को चाहिए जवाब, न कि जुमले
बिहार की जनता अब आंकड़ों से आगे बढ़कर जवाब मांग रहा है .
क्या 14 लाख करोड़ की यह राशि सिर्फ कागजों पर है?
या इसका बड़ा हिस्सा किसी अदृश्य योजना में लुप्त हो गया है?
अगर प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी इस दावे पर कायम हैं तो उन्हें चाहिए कि इस धनराशि का विवरण सार्वजनिक करें कि किस योजना पर, कब और कितना खर्च हुआ है.
अंत में सवाल वही है:अगर इतना पैसा आया, तो विकास कहां है?
यह मुद्दा अब सिर्फ राजनीतिक बहस तक सीमित नहीं है. यह जनता की आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी जरूरतों से जुड़ा सवाल बन चुका है. बिहार की जनता अब पुरानी बातों की पुनरावृत्ति नहीं बल्कि पारदर्शिता और ज़मीनी बदलाव चाहती है.

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