वोट की चोट और हक की हुंकार:9 जुलाई को गूंजेगी मजदूरों की आवाज

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Ajit Kumar

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वोट की चोट और हक की हुंकार:9 जुलाई को गूंजेगी मजदूरों की आवाज

9 जुलाई को आवाज बुलंद होगी: रोटी भी चाहिए, वोट भी!

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 3 जुलाई :देश एक बार फिर एक बड़े जनआंदोलन की ओर बढ़ रहा है. 9 जुलाई को लाखों मजदूर और कर्मचारी अपने श्रम अधिकारों और लोकतांत्रिक मताधिकार की रक्षा के लिए सड़क पर उतरेंगे. इस ऐतिहासिक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान पटना में आज ACTU, खेग्रामस, किसान महासभा, स्कीम वर्कर्स फेडरेशन समेत कई संगठनों ने संयुक्त रूप से किया.

मजदूर कह रहे हैं — अब नहीं सहेंगे अन्याय!

नेताओं ने साफ कहा कि सरकार की नीतियां श्रमिकों के जीवन और लोकतंत्र दोनों पर हमला कर रही हैं.
बिहार में चुनाव आयोग की मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया के नाम पर लाखों प्रवासी और गरीब मजदूरों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं — यह सिर्फ वोटबंदी नहीं, बल्कि संविधान के मूल अधिकारों पर सीधा हमला है.

यह भी पढ़े :दीपंकर भट्टाचार्य का सवाल – लोकतंत्र की सूची में हेराफेरी क्यों?

हड़ताल की प्रमुख मांगें:

  • चारों श्रम कोड और तीन फौजदारी कानूनों को रद्द किया जाए
  • 12 घंटे कार्यदिवस की नीति वापस ली जाए
  • निजीकरण और NPS को खत्म कर OPS को बहाल किया जाए
  • स्कीम वर्कर्स को ₹28,000 मासिक मानदेय और सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले
  • महंगाई और बेरोजगारी पर नियंत्रण किया जाए
  • मजदूरों का वोटिंग अधिकार सुनिश्चित किया जाए — बिना भेदभाव, बिना बाधा

प्रमुख संगठन और नेता जो इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं:

  • आर.एन. ठाकुर – राज्य महासचिव, ACTU
  • धीरेन्द्र झा – राष्ट्रीय महासचिव, खेग्रामस
  • शशि यादव – MLC, राष्ट्रीय महासचिव – स्कीम वर्कर्स फेडरेशन
  • सरोज चौबे – महासचिव, विद्यालय रसोइया संघ
  • उमेश सिंह – राज्य सचिव, किसान महासभा
  • रामबली प्रसाद – अध्यक्ष, कर्मचारी महासंघ (गोप गुट)
  • रणविजय कुमार – राज्य सचिव, ACTU
  • इन संगठनों ने भाकपा(माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से भी अपील की है कि वे इस हड़ताल में भाग लें और मजदूरों के मार्च का नेतृत्व करें.

बिहार बनेगा आंदोलन का केंद्र

ऐक्टू ने साफ किया है कि 9 जुलाई को बिहार के हर ज़िले में हज़ारों मजदूर प्रदर्शन करेंगे.यह केवल श्रम की नहीं, बल्कि लोकतंत्र और जीवन के हक़ की लड़ाई है.

इस हड़ताल की गूंज सिर्फ फैक्ट्रियों और ऑफिसों तक सीमित नहीं रहेगी — यह संसद और सत्ता के गलियारों तक पहुंचेगी.9 जुलाई को आवाज़ बुलंद होगी: ‘रोटी भी चाहिए, वोट भी!’

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