इज़रायल के जनसंहार के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय आह्वान
तीसरा पक्ष ब्यूरो,पटना : ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ इज़रायली हमलों और मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर भारत के वामपंथी दलों ने एक बार फिर अपनी आवाज़ बुलंद की है. वाम दलों ने 17 जून 2025 को ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता का राष्ट्रीय दिवस’ मनाने का ऐलान किया है. इसका उद्देश्य ग़ज़ा में हो रहे जनसंहार के ख़िलाफ़ देशभर में जनमत तैयार करना और भारत सरकार की विदेश नीति में बदलाव की मांग करना है.
पटना में विरोध मार्च, ज़िलों में प्रदर्शन
इस दिन पटना में जीपीओ गोलंबर से बुद्ध स्मृति पार्क तक मार्च निकाला जाएगा, जबकि राज्य के अन्य ज़िलों में भी प्रतिवाद कार्यक्रम आयोजित होंगे. यह जानकारी वाम दलों के वरिष्ठ नेताओं — भाकपा (माले) के का. कुणाल, सीपीआई के का. रामनरेश पांडेय, सीपीएम के का. ललन चौधरी, और फॉरवर्ड ब्लॉक व आरएसपी के प्रतिनिधियों — ने एक संयुक्त बयान में दिया.
इज़रायल पर जनसंहार और युद्ध अपराध के आरोप
बयान में कहा गया है कि बीते 20 महीनों से ग़ज़ा पर इज़रायल की बमबारी और ज़मीनी कार्रवाई में अब तक 55,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की जान जा चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं. ग़ज़ा की आधारभूत संरचना — स्कूल, अस्पताल, शरणार्थी शिविर — को भी निशाना बनाया गया है.राहत सामग्री की आपूर्ति तक रोक दी गई है, जिससे हालात एक “अभूतपूर्व मानवीय संकट” में बदल गए हैं.
फ़्रीडम फ़्लोटिला पर हमला और वैश्विक निंदा
वाम दलों ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय जलसीमा में ग़ज़ा जा रहे ‘मैडलीन’ जहाज़ पर इज़रायली हमले की भी कड़ी निंदा की है. यह जहाज़ फ़्रीडम फ़्लोटिला अभियान का हिस्सा था, जो ग़ज़ा में मानवीय सहायता पहुँचाने की कोशिश कर रहा था.
भारत सरकार के रुख पर सवाल
वामपंथी नेताओं ने भारत सरकार की चुप्पी को “शर्मनाक” बताया और कहा कि यह ऐतिहासिक रूप से फ़िलिस्तीन के समर्थन में रही भारत की विदेश नीति से एक बड़ा विचलन है.नेताओं ने मांग की है कि भारत को फ़िलिस्तीनी संघर्ष के समर्थन में स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए और इज़रायल के साथ सभी सैन्य और सुरक्षा सहयोग तुरंत समाप्त करना चाहिए.
जनता से अपील
वाम दलों ने तमाम लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और शांति-प्रिय संगठनों व नागरिकों से अपील की है कि वे 17 जून को बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरें और इज़रायली जनसंहार, रंगभेद और कब्ज़े के खिलाफ़ एक मज़बूत आवाज़ बनें.
संघर्ष की इस घड़ी में, यह राष्ट्रीय दिवस सिर्फ़ एक विरोध नहीं, बल्कि न्याय, मानवाधिकार और आज़ादी के समर्थन में उठाया गया नैतिक कदम है!

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