एनएमओपीएस ने दिया सरकार को चेतावनी संदेश
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 14 सितंबर 2025 – बिहार की राजधानी पटना रविवार को ऐतिहासिक जनसमूह का गवाह बना, जब एनएमओपीएस (नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम) की बिहार इकाई ने, पेंशन संघर्ष महारैली का आयोजन किया।पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर मिलर स्कूल परिसर से उठी यह आवाज पूरे राज्य में गूंज उठी.बताया जा रहा है कि इस महारैली में बिहार के अलग-अलग जिलों से आए लाखों एनपीएस (नई पेंशन स्कीम) कर्मियों ने अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया.

आंदोलन को चुनावी साल में मिली नई ऊर्जा
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. और इसी पृष्ठभूमि में एनएमओपीएस ने अपने आंदोलन को नई धार दिया है.संगठन का स्पष्ट संदेश है कि अगर सरकार ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) बहाल नहीं की, तो राज्य के सरकारी सेवक चुनाव के दौरान अपने वोट की ताकत से जवाब देंगे. रैली में मौजूद वक्ताओं ने कहा कि यह सिर्फ पेंशन का सवाल नहीं है, बल्कि सेवा सुरक्षा और सम्मान का अधिकार भी है.
मंच पर राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय नेताओं की उपस्थिति
महारैली की खासियत यह रही कि इसमें न केवल बिहार बल्कि देशभर से एनएमओपीएस से जुड़े शीर्ष पदाधिकारी मौजूद रहे.
राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने सभा को संबोधित करते हुए कहा है कि,पेंशन हमारी मेहनत की गारंटी है, दया या खैरात नहीं.जब तक पुरानी पेंशन बहाल नहीं होती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा.
राष्ट्रीय महासचिव स्थित प्रज्ञा ने चेतावनी दी है कि सरकार अगर जनभावनाओं की अनदेखी करेगी तो परिणाम चुनावी मैदान में साफ दिखेगा.
विधान परिषद सदस्य श्रीमती शशि यादव ने कहा कि बिहार की महिलाओं, शिक्षकों और कर्मचारियों के परिवारों का भविष्य एनपीएस ने असुरक्षित बना दिया है, और इसे बदलना ही होगा.
साथ ही झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत सिंह, हिमाचल के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर, बिहार इकाई के अध्यक्ष वरुण पांडेय और महासचिव शशि भूषण कुमार ने भी पुरानी पेंशन के पक्ष में मजबूत तर्क दिए.
रेलवे से जुड़े सक्रिय सदस्य सरबजीत सिंह, अमरीक सिंह, ए.के. राउत, राजेंद्र पाल, प्रेमचंद सिन्हा और प्रेम सागर ने भी कर्मचारियों की ओर से अपनी आवाज बुलंद की है . बिहार के शिक्षक नेताओं में मार्कण्डेय पाठक, प्रदीप पप्पू, विजय सिंह आकाश और प्रविंदर मौर्य की उपस्थिति ने रैली को और व्यापक स्वरूप दिया.
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पेंशन नहीं तो वोट नहीं, का नारा
रैली के दौरान बार-बार यह नारा गूंजता रहा – पेंशन नहीं तो वोट नहीं. वक्ताओं का कहना था कि पेंशन सिर्फ बुजुर्गावस्था में आर्थिक सुरक्षा का साधन नहीं, बल्कि कर्मचारी की पूरी सेवा अवधि की गारंटी है. एनपीएस और एकीकृत पेंशन योजना ने इस भरोसे को तोड़ दिया है.
मंच संचालन और रैली का स्वरूप
मंच का संचालन संजीव तिवारी, राजीव रंजन और संतोष कुमार ने संयुक्त रूप से किया. पूरे आयोजन में अनुशासन और ऊर्जा का अनोखा मेल देखने को मिला.लाखों कर्मियों का जनसमूह शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रख रहा था. लेकिन उनकी आँखों में स्पष्ट रूप से न्याय की जिद और अधिकार की आग दिखाई दे रही थी.
क्यों है पुरानी पेंशन की मांग इतनी अहम?
ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) के तहत कर्मचारियों को सेवा-निवृत्ति के बाद आजीवन पेंशन मिलती थी, जो महंगाई भत्ते से जुड़ी रहती थी.जबकि एनपीएस (नई पेंशन स्कीम) और एकीकृत पेंशन योजना में यह गारंटी नहीं है. कर्मचारियों का कहना है कि,जिन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय सरकारी सेवा को दिया, उन्हें बुजुर्गावस्था में बाजार की अनिश्चितताओं के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता.
आंदोलन का भविष्य
एनएमओपीएस की इस महारैली ने यह साफ कर दिया है कि आने वाले महीनों में बिहार का राजनीतिक माहौल पुरानी पेंशन की मांग से गूंजेगा. वक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर सरकार ने उनकी मांगों को नहीं सुना, तो राज्य के 5 लाख से अधिक एनपीएस कर्मी चुनावी समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभाएंगे.
निष्कर्ष
पटना की यह महारैली केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि कर्मचारियों के असंतोष और उनके भविष्य की चिंता का प्रतीक बन गई है.एनएमओपीएस ने इस ऐतिहासिक जुटान के जरिए यह साबित कर दिया है कि पुरानी पेंशन बहाली अब केवल मांग नहीं, बल्कि बिहार के लाखों परिवारों की मजबूरी और प्राथमिकता बन चुकी है.आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीति और जनचर्चा दोनों के केंद्र में रहेगा.

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