5000 करोड़ का वार्षिक घाटा और वोटर लिस्ट से नाम गायब – प्रशांत भूषण
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 20 सितंबर 2025 – सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पटना में आयोजित प्रेस वार्ता में चुनाव आयोग, अडाणी समूह और बिहार सरकार पर गंभीर सवाल उठाये है. उन्होंने कहा कि आज बिहार में संस्थागत भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि आम आदमी का भरोसा सरकार और प्रशासन से उठता जा रहा है.
चुनाव आयोग पर नागरिकता तय करने का आरोप
प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग अब सिर्फ मतदाता सूची का प्रबंधन करने वाला संवैधानिक निकाय नहीं रहा, बल्कि वह नागरिकता तय करने की ऑथोरिटी बनने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर किस अधिकार से चुनाव आयोग नागरिकता की पुष्टि करने का दावा कर रहा है, जबकि खुद उसके ही नियमों में साफ लिखा है कि आयोग नागरिकता की जांच नहीं कर सकता है.
भूषण ने आरोप लगाया कि एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के नाम पर मतदाता सूची से नाम काटने का अभियान दरअसल चुनाव में धांधली की एक साजिश है. फार्म-6 भरने वालों को नागरिकता साबित करने के लिए 11 दस्तावेजों में से कोई एक देना होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि बिहार की आधी से ज्यादा आबादी के पास ये दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि, लाखों लोगों के नाम बिना पारदर्शी प्रक्रिया के काट दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब सूची जारी हुई तो उसमें मृत घोषित कर दिया गया लेकिन, लोग जिंदा निकले, विस्थापित लोग अपने गांव में पाए गये और सबसे ज्यादा महिलाएं इस मनमानी की शिकार हुईं.
“रिकमंडेड” और “नॉट रिकमंडेड” की अंधी प्रक्रिया
भूषण ने यह भी बताया कि ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) ने खुद फॉर्म भरकर तय कर दिया कि कौन,रिकमंडेड” है और कौन “नॉट रिकमंडेड” है, लेकिन इस फैसले का आधार क्या था, इसकी कोई जानकारी जनता को नहीं दिया गया है.जिनको नोटिस भेजा गया, उन्हें केवल यह कहा गया कि दस्तावेज़ गलत हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि दिक्कत क्या है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यही प्रक्रिया जारी रही तो कोई भी नागरिक संदिग्ध नागरिक घोषित किया जा सकता है.यह सीधे-सीधे लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर हमला है.
अडाणी डील: 5000 करोड़ का वार्षिक घाटा
प्रशांत भूषण ने अडाणी समूह को लेकर भी बड़ा खुलासा किया है.उन्होंने बताया कि बिहार सरकार ने अडाणी को महज 1 रुपये प्रति एकड़ की दर से 30 साल के लिए 1000 एकड़ जमीन लीज पर दे दी है. इतना ही नहीं, सरकार ने 6 रुपये प्रति यूनिट की दर से 2500 मेगावाट बिजली खरीदने का करार भी किया है.
भूषण ने कहा कि, बंजर जमीन पर भी पावर प्लांट लगाया जा सकता था, लेकिन सरकार ने उपजाऊ जमीन औने-पौने दाम पर दे डाली. इस करार से बिहार सरकार को हर साल कम से कम 5000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
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भ्रष्टाचार की जड़ें – सड़कें और पुल एक ही बारिश में ध्वस्त
बिहार में व्याप्त भ्रष्टाचार पर हमला बोलते हुए भूषण ने कहा कि यहां विकास कार्य महज कागजों पर होते हैं.सैकड़ों करोड़ की लागत से बनी सड़कें और पुल एक ही बारिश में ढह जाते हैं.यह दर्शाता है कि ठेकेदार और अधिकारी मिलकर किस तरह से जनता का पैसा लूट रहे हैं.
चुनाव पूर्व घोषणाएं: वोट के लिए घूस
उन्होंने हाल की उस घोषणा पर भी सवाल उठाया जिसमें कहा गया है कि महिलाओं को 10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी.भूषण के मुताबिक चुनाव के ठीक पहले इस तरह की घोषणाएं सीधी-सीधी ब्राइबरी (घूसखोरी) के दायरे में आती हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को ऐसी घोषणाओं पर रोक लगानी चाहिए थी, लेकिन यहां उल्टा आयोग ही संदेह के घेरे में है.
भूमि अधिग्रहण और किसान
भूषण ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पर भी नाराजगी जताई है.उन्होंने कहा कि किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है.जमीन के दाम तय करने में 15 साल पुराने रेट लागू किए जा रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि बाजार भाव कई गुना बढ़ चुके हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को तुरंत लैंड रिकॉर्ड कमीशन और लैंड रेट्स कमीशन का गठन करना चाहिए, ताकि हर साल क्षेत्रवार जमीन का सही मूल्य तय हो और किसानों के साथ अन्याय न हो.
लोकतंत्र पर खतरा
प्रेस वार्ता में उनके साथ आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, एआईपीएफ के कमलेश शर्मा और आइलाज की मंजू शर्मा भी मौजूद थे.प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यही हालात रहे तो बिहार में लोकतंत्र और चुनाव दोनों ही कठपुतली बनकर रह जाएंगे.
यह पूरा बयान न सिर्फ चुनाव आयोग बल्कि बिहार सरकार और बड़े कॉर्पोरेट्स की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है.प्रशांत भूषण का संदेश साफ है – लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिकों को सतर्क रहना होगा, वरना सत्ता और पूंजी का गठजोड़ हर संस्थान को अपने कब्जे में ले लेगा.

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