प्रशांत किशोर का तंज: बिहार की पहचान रोजगार नहीं,पलायन है

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kmSudha

बिहारतीसरा पक्ष आलेख
प्रशांत किशोर का तंज: बिहार की पहचान रोजगार नहीं,पलायन है

“गर्मी से मत घबराइए, बिहार के 50 लाख बच्चे इस तपती गर्मी में खपा रहे हैं अपना हाड़!”-PK

तीसरा पक्ष ब्यूरो,पटना: चुनावी रणनीतिकार से जननेता बने प्रशांत किशोर ने एक बार फिर बिहार की सामाजिक-आर्थिक हकीकत पर करारा तंज कसा है. उन्होंने कहा, “गर्मी से घबराइए नहीं, इसी गर्मी में बिहार के 50 लाख बच्चे पंजाब, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र की फैक्ट्रियों में 10-12 हजार रुपये की मामूली मजदूरी के लिए अपना हाड़ गला रहे होंगे!”

यह बयान उन्होंने 7 जून 2025 को एक जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान दिया, जहां वे बिहार में बेरोजगारी और पलायन की जमीनी सच्चाई पर बोल रहे थे. बाद में उन्होंने व्यंग्यात्मक तरीके से उसे अपने सोशल मीडिया X पर भी पोस्ट किया.

क्या है प्रशांत किशोर का इशारा?

प्रशांत किशोर का यह बयान केवल तापमान या मजदूरी की बात नहीं करता, बल्कि बिहार के युवाओं की दशा पर एक गंभीर टिप्पणी है. वे यह बताना चाह रहे हैं कि राज्य में शिक्षा, रोजगार और औद्योगिक विकास की भारी कमी ने युवाओं को मजबूर कर दिया है कि वे दूसरे राज्यों में जाकर न्यूनतम वेतन पर शारीरिक श्रम करें.

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बिहार का पलायन संकट

बिहार का पलायन संकट
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बिहार से हर साल लाखों युवा काम की तलाश में बाहर जाते हैं. चाहे वो ईंट-भट्ठा हो, कपड़ा मिल हो या निर्माण स्थल — बिहार के युवा देश के हर कोने में मजदूरी करते मिल जाएंगे.

राज्य में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है और सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित होती जा रही है. ऐसे में स्किल डेवलपमेंट की कमी और रोजगार के अवसरों का अभाव उन्हें मजबूरी में बाहर जाने को विवश कर देता है.

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गर्मी का हवाला, सामाजिक तंज
गर्मी का हवाला, सामाजिक तंज
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प्रशांत किशोर के इस वक्तव्य में ‘गर्मी’ का जिक्र केवल मौसम की मार नहीं, बल्कि व्यवस्था की तपिश का प्रतीक है. उन्होंने स्पष्ट किया कि जहां एक वर्ग घरों में कूलर और एसी चला रहा है, वहीं गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे धूप और आग की तरह तपती फैक्ट्रियों में खून-पसीना एक कर रहे हैं.

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राजनीतिक संदेश भी छिपा है.

बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव संभावित हैं और प्रशांत किशोर लगातार जन सुराज अभियान के माध्यम से राज्य में बदलाव की बात कर रहे हैं. यह बयान सीधे तौर पर वर्तमान सरकार की नीतियों और विफलताओं पर सवाल खड़ा करता है.

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अंत में

प्रशांत किशोर की यह टिप्पणी केवल एक बयान भर नहीं, बल्कि बिहार की हकीकत को आइना दिखाने वाला एक कठोर सच है. यह सवाल उठाता है — कब तक बिहार के बच्चे अपना भविष्य दूसरे राज्यों की फैक्ट्रियों में खपाते रहेंगे?

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