झारखंड में सरहुल पर्व की धूम के बीच सीएम हेमंत सोरेन ने दो दिनों की छुट्टी की घोषणा, प्रकृति पूजक आदिवासियों ने भी जल सरक्षण , वन और पर्यावरण के साथ साथ अपनी संस्कृति के प्रति दिखाया उत्साह
तीसरा पक्ष डेस्क :झारखंड में सरहुल पर्व की धूम के बीच सीएम हेमंत सोरेन ने दो दिनों की छुट्टी की घोषणा, प्रकृति पूजक आदिवासियों ने भी जल सरक्षण , वन और पर्यावरण के साथ साथ अपनी संस्कृति के प्रति दिखाया उत्साह और दो दिनों के राजकीय अवकाश की मांग उठ रही थी. ऐसे में आदिवासी समाज के महा पावन पर्व के लिए दो दिनों की छुट्टी की घोषणा की गई है. सरहुल पर्व 2025, झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों का एक प्रमुख त्योहार है, जो प्रकृति के प्रति सम्मान और नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व हिंदू कैलेंडर के चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। 2025 में, सरहुल पर्व 1 अप्रैल, मंगलवार को मनाया गया.

सीएम हेमंत सोरेन की भागीदारी:
हेमंत सोरेन ने रांची के सिद्धू-कान्हू पार्क में पारंपरिक ढंग से पूजा की।उन्होंने आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को बचाने व प्रोत्साहित करने का संदेश दिया।उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने भी पारंपरिक आदिवासी पोशाक में शिरकत की।

सरहुल पर्व का महत्व
यह झारखंड का प्रमुख आदिवासी त्योहार है, जिसे वसंत ऋतु के आगमन और साल वृक्ष (शोरिया रोबस्टा) के फूलों के खिलने पर मनाया जाता है . इसे “प्रकृति का चैत्र महोत्सव” भी कहा जाता है, जहाँ पेड़-पौधों, पहाड़ों और जल स्रोतों की पूजा की जाती है।सरहुल का शाब्दिक अर्थ है “साल वृक्ष की पूजा” (सर = साल, हुल = पूजा)। यह त्योहार मुख्य रूप से मुंडा, हो, ओरांव और संथाल जैसे आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है. यह वसंत ऋतु के आगमन और प्रकृति के पुनर्जनन का उत्सव है. इस दिन साल (सखुआ) वृक्ष की पूजा की जाती है, जो इन समुदायों के लिए जीवन, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।

पूजा और रीति-रिवाज
- पूजा की तैयारी: पर्व से एक दिन पहले, गाँव का पुजारी (पहान) उपवास रखता है और तीन नए मिट्टी के घड़ों में पानी भरकर रखता है। अगले दिन सुबह पानी के स्तर की जाँच की जाती है—यदि स्तर कम हुआ तो कम बारिश, और यदि स्थिर रहा तो अच्छी बारिश की भविष्यवाणी की जाती है।
- साल वृक्ष की पूजा: साल के फूलों, फलों और प्रसाद के साथ गाँव के देवता और प्रकृति की पूजा की जाती है। कुछ समुदायों में पशु बलि की परंपरा भी रही है, हालाँकि यह अब कम हो रही है।
- सांस्कृतिक आयोजन: लोग पारंपरिक रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं, ढोल-नगाड़ों की थाप पर सरहुल नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं। रांची जैसे शहरों में भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।
सरहुल पर्व का विशेष व्यंजन
- हंडिया: चावल से बनी एक पारंपरिक पेय।
- धुस्का और पिठ्ठा: स्थानीय व्यंजन जो उत्सव का हिस्सा हैं।
- मछली सूखा: सूखी या बेक की हुई मछली।
निष्कर्ष:
सरहुल का पर्व झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, और सीएम हेमंत सोरेन की सक्रिय भागीदारी से इसे राज्य स्तर पर प्रमोट किया जा रहा है। यह त्योहार प्रकृति और आदिवासी समाज के बीच सद्भाव का प्रतीक है।सरहुल मुख्य रूप से झारखंड में मनाया जाता है, लेकिन ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी इसे उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व कई दिनों तक चल सकता है, जिसमें शोभायात्राएँ और सामुदायिक भोज प्रमुख होते हैं।

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