कागज दिखाओ, वरना वोट नहीं!

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kmSudha

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कागज़ दिखाओ, वरना वोट नहीं!बिहार में वोटर सत्यापन का नया बवाल

बिहार में वोटर सत्यापन का नया बवाल

तीसरा पक्ष डेस्क पटना :बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक नया विवाद खड़ा हो गया है. चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट को शुद्ध करने के लिए विशेष गहन समीक्षा (Special Intensive Review) लागू की है, जिसके तहत मतदाताओं से जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और दसवीं कक्षा का प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं.इस कदम ने सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस छेड़ दी है. जहां सरकार इसे मतदाता सूची को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने का प्रयास बता रही है, वहीं विपक्ष इसे गरीब, दलित, और प्रवासी मजदूरों के मताधिकार को दबाने की साजिश करार दे रहा है. इस लेख में हम इस मुद्दे के पक्ष, विपक्ष, जनता की परेशानियों और विपक्ष के सवालों का विश्लेषण करेंगे.

सरकार का पक्ष: पारदर्शिता और निष्पक्षता की ओर कदम

चुनाव आयोग और बिहार सरकार का दावा है कि यह विशेष गहन समीक्षा मतदाता सूची से फर्जी और अवैध मतदाताओं को हटाने के लिए जरूरी है.
सरकार के अनुसार, बिहार में लंबे समय से फर्जी वोटरों की शिकायतें मिल रही थीं, जिसमें बाहरी लोग, विशेष रूप से गैर-कानूनी प्रवासी, स्थानीय मतदाता के रूप में पंजीकृत होकर वोट डाल रहे थे. इस समस्या को खत्म करने के लिए दस्तावेज़ आधारित सत्यापन को अनिवार्य किया गया है.

पारदर्शिता: सरकार का कहना है कि जन्म प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेज़ वोटर की पहचान को सुनिश्चित करेंगे, जिससे फर्जी मतदाताओं को हटाया जा सकेगा.

निष्पक्ष चुनाव: यह कदम निष्पक्ष और स्वच्छ चुनाव सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है, ताकि केवल वास्तविक मतदाता ही मतदान कर सकें.

आधुनिक तकनीक का उपयोग: आधार और वोटर ID को अमान्य करने के पीछे तर्क है कि ये दस्तावेज़ आसानी से जाली बनाए जा सकते हैं, जबकि जन्म प्रमाण पत्र और दसवीं का प्रमाण पत्र अधिक विश्वसनीय हैं.

हाल के एक बयान में, एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, “हमारा उद्देश्य हर उस व्यक्ति को मतदान का अधिकार देना है जो वास्तव में बिहार का निवासी है. यह प्रक्रिया केवल मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है, न कि किसी के अधिकारों को छीनने के लिए.

विपक्ष का रुख: मताधिकार पर हमला

विपक्ष का रुख: मताधिकार पर हमला

विपक्ष ने इस कदम को लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करार दिया है. कई विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को गरीबों, दलितों, और प्रवासी मजदूरों के खिलाफ साजिश बताया है. उनके अनुसार, बिहार में 4.76 करोड़ से अधिक लोग, जो मुख्य रूप से समाज के कमजोर वर्गों से हैं, इस सत्यापन प्रक्रिया के कारण वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं.

गरीबों और दलितों पर प्रभाव: विपक्ष का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले दलित, पिछड़े, और अतिपिछड़े समुदायों के पास जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ अक्सर उपलब्ध नहीं होते.ऐसे में यह नियम इन समुदायों को मतदान से वंचित कर सकता है.

प्रवासी मजदूरों की अनदेखी: बिहार से लाखों लोग रोजगार के लिए अन्य राज्यों में प्रवास करते हैं. उनके पास स्थानीय स्तर पर दस्तावेज़ जमा करने का समय और संसाधन नहीं है.

आधार और वोटर ID की अमान्यता: विपक्ष ने सवाल उठाया है कि जब आधार और वोटर ID जैसे व्यापक रूप से स्वीकृत दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, तो उन्हें अमान्य क्यों किया गया? यह कदम प्रक्रिया को जानबूझकर जटिल करने का प्रयास प्रतीत होता है.

विपक्षी नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे “लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात” करार दिया है. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, “बिहार सरकार को सोचना चाहिए — क्या दलित व आदिवासी जनता ये दस्तावेज़ लाने में सक्षम है? यह सिर्फ़ कागज़ नहीं, हज़ारों मतों की आवाज़ दबाने का ज़रिया बन सकता है.

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जनता की परेशानियां: दस्तावेज़ और प्रक्रिया का बोझ

जनता की परेशानियां: दस्तावेज़ और प्रक्रिया का बोझ

इस नई सत्यापन प्रक्रिया से आम जनता को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बिहार जैसे राज्य में, जहां शिक्षा और प्रशासनिक जागरूकता का स्तर अपेक्षाकृत कम है, दस्तावेज़ जुटाना और सत्यापन प्रक्रिया में भाग लेना कई लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण है.

दस्तावेज़ की अनुपलब्धता: ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म प्रमाण पत्र और दसवीं कक्षा के प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ अक्सर उपलब्ध नहीं होते. कई लोग अनपढ़ हैं और उनके पास जन्म तिथि का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है.

प्रशासनिक जटिलता: दस्तावेज़ जमा करने की प्रक्रिया को लेकर जानकारी का अभाव है. कई लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि दस्तावेज़ कहां और कैसे जमा करने हैं.

आर्थिक बोझ: प्रवासी मजदूरों को सत्यापन के लिए बिहार वापस लौटना पड़ सकता है, जिससे यात्रा और समय की लागत बढ़ रही है.

समय की कमी: विशेष गहन समीक्षा की समय सीमा को लेकर भी असमंजस है.कई लोगों को डर है कि वे समय पर दस्तावेज़ जमा नहीं कर पाएंगे.

बिहार के स्थानीय निवासी के कुछ लोगो से बात किये विशेष गहन समीक्षा मतदाता सूची को लेकर तो लोगो ने क्या जबाबा दिया है पढ़िये कुछ लोगो ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “हमारे पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. स्कूल भी नहीं गए, तो दसवीं का सर्टिफिकेट कहां से लाएं? अब वोट देने का हक भी छिन जाएगा क्या?”

विपक्ष के सवाल: साजिश या सुधार?

विपक्ष के सवाल: साजिश या सुधार?

विपक्ष ने इस प्रक्रिया को लेकर कई तीखे सवाल उठाए हैं, जो इस विवाद को और गहरा रहे हैं.

क्यों लागू किया गया यह नियम? विपक्ष का कहना है कि 22 साल बाद अचानक इस तरह की सत्यापन प्रक्रिया लागू करना संदेहास्पद है. क्या इसका मकसद किसी खास समुदाय को मतदान से रोकना है?

आधार और वोटर ID क्यों अमान्य? आधार कार्ड, जो पहले मतदाता सत्यापन के लिए स्वीकार्य था, अब क्यों अमान्य कर दिया गया? यह सवाल कई लोगों के मन में है.

क्या यह राजनीतिक साजिश है? विपक्ष का आरोप है कि यह कदम सत्ताधारी दल के पक्ष में मतदाता आधार को बदलने की कोशिश है, ताकि विपक्षी समर्थकों को वोट देने से रोका जा सके.

गरीबों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था? अगर दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, तो क्या सरकार ने कोई वैकल्पिक सत्यापन प्रक्रिया शुरू की है? इस सवाल का जवाब अभी तक स्पष्ट नहीं है.

संभावित प्रभाव और भविष्य

इस सत्यापन प्रक्रिया का बिहार के चुनावी परिदृश्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. अगर लाखों मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो जाते हैं, तो इसका असर न केवल मतदान प्रतिशत पर पड़ेगा, बल्कि यह विभिन्न दलों की जीत-हार को भी प्रभावित कर सकता है. विशेष रूप से, दलित, पिछड़े, और प्रवासी मजदूरों का बड़ा वोट बैंक प्रभावित होने की आशंका है, जो विपक्षी दलों के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

दूसरी ओर, अगर यह प्रक्रिया सफल रही और फर्जी मतदाताओं को हटाने में कामयाब रही, तो यह बिहार में स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. हालांकि, इसके लिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वास्तविक मतदाताओं को इस प्रक्रिया से नुकसान न हो.

निष्कर्ष

बिहार में वोटर सत्यापन को लेकर चल रहा विवाद लोकतंत्र की बुनियाद पर सवाल उठा रहा है.जहां सरकार इसे पारदर्शिता का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और आम जनता इसे मताधिकार पर हमला मान रही है. इस प्रक्रिया को लागू करने में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि गरीब और कमजोर वर्गों के अधिकारों का हनन न हो। साथ ही, विपक्ष को भी रचनात्मक आलोचना के साथ वैकल्पिक समाधान सुझाने चाहिए.

आखिर में, यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह कदम वास्तव में लोकतंत्र को मजबूत करेगा, या यह हजारों लोगों की आवाज़ को दबाने का जरिया बन जाएगा? समय और सरकार की कार्यशैली ही इसका जवाब देगी.

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