पटना में मताधिकार बचाओ – लोकतंत्र बचाओ की हुंकार
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 7 जुलाई : बिहार की राजधानी पटना में आज बुद्ध स्मृति पार्क के समीप छात्र-युवा संगठनों आइसा (AISA) और आरवाईए (RYA) ने चुनाव आयोग की नई वोटर सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया. इस ‘राज्यव्यापी आक्रोश दिवस’ में सैकड़ों युवाओं और छात्रों ने भाग लिया और गरीबों की वोटबंदी के खिलाफ आवाज बुलंद किया.

वोट के अधिकार पर संघीयों का हमला’?
प्रदर्शन का संचालन आरवाईए के राज्य सह सचिव विनय कुमार ने किया जबकि आइसा की राज्य अध्यक्ष प्रीति कुमारी ने सभा को संबोधित करते हुए तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि बिहार के 50-80% छात्र-युवा आज भी बेरोजगारी, शिक्षा और दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं और ऐसे में यह संघ प्रेरित चुनावी प्रक्रिया उनका संवैधानिक मताधिकार छीनने की साजिश है.
आइसा और आरवाईए नेताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण के तहत मतदाता पहचान की पुष्टि के लिए 11 तरह के दस्तावेजों की मांग की जा रही है. इनमें आधार कार्ड, वोटर आईडी, 10वीं की मार्कशीट, पेंशन ऑर्डर, भूमि स्वामित्व प्रमाण आदि शामिल हैं – जो कि गरीब, मजदूर, प्रवासी व ग्रामीण तबकों के लिए जुटाना बेहद कठिन है.
गुजरात मॉडल के बहाने लोकतंत्र पर हमला?
प्रदर्शनकारियों ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया के जरिए “गुजरात मॉडल” को बिहार में थोपा जा रहा है.जहां सरकारी दस्तावेजों को अमान्य कर लाखों लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया था. यहां तक कि बीएलओ (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) के पास खुद ऐसे दस्तावेजों की कमी है. फिर आम नागरिकों से इनकी मांग करना “तानाशाही फरमान” जैसा प्रतीत होता है.
प्रदर्शनकारियों ने सवाल उठाया कि अगर आम जनता को भारतीयता साबित करने के लिए दस्तावेज दिखाने पड़ रहे हैं, तो चुनाव आयोग के अधिकारियों को भी अपनी भारतीयता साबित करनी चाहिए.
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वोटबंदी की नई परिभाषा?
नेताओं ने इस प्रक्रिया को “गरीबों की वोटबंदी” करार दिया है और दावा किया कि यह विशेष रूप से वंचित, दलित, ग्रामीण, छात्र, युवा व प्रवासी मजदूरों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर करने का एक सोचा-समझा षड्यंत्र है.
सभा में मौजूद आरवाईए नेता विकास कुमार, अखिलेश कुमार, अभिषेक कुमार और आइसा पटना यूनिवर्सिटी के संयोजक ऋषि कुमार, आनंद अमृत राज, रौशनी कुमारी, सुधांशु, रवि, अमन आदि ने एक स्वर में चुनाव आयोग से विशेष सघन पुनरीक्षण की प्रक्रिया को रद्द करने की मांग किया है .
निष्कर्ष:
बिहार में लोकतंत्र को लेकर छात्रों-युवाओं का बढ़ता असंतोष अब खुलकर सड़कों पर उतर आया है. मतदाता सूची पुनरीक्षण की इस नई प्रक्रिया को लेकर यह सवाल अब सिर्फ दस्तावेजों तक सीमित नहीं रह गया है यह बिहार के लाखों वंचितों के भविष्य और लोकतांत्रिक अधिकार की लड़ाई अब बन चुकी है.

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