तेलंगाना में 15 प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक मौत दुखद — माले ने जताया शोक
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना ,1 जुलाई :तेलंगाना में हुए एक भीषण सड़क हादसे ने देश भर में शोक की लहर दौड़ा दी है. हादसे में 15 प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई, जिनमें दो बिहार के रहने वाले थे, जबकि 16 अन्य मजदूर गंभीर रूप से घायल हैं.
यह त्रासदी सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि भारत के लाखों प्रवासी मजदूरों की अनदेखी होती ज़िंदगी की एक और क्रूर तस्वीर है. इस हृदयविदारक घटना ने सरकार की उन नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जो प्रवासी श्रमिकों के जीवन और अधिकारों को लेकर लंबे समय से उदासीन बनी हुई हैं.
माले ने जताया शोक, सरकार पर बोला हमला
भाकपा–माले के राज्य सचिव कॉ. कुणाल ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह घटना साफ तौर पर दिखाती है कि मोदी और नीतीश सरकार प्रवासी मजदूरों के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हैं. ये सरकारें चुनावी प्रचार में करोड़ों खर्च करती हैं, लेकिन मजदूरों की सुरक्षा पर एक पैसा नहीं लगातीं.
कॉ. कुणाल ने आरोप लगाया कि बिहार को जानबूझकर सस्ते श्रम का आपूर्तिकर्ता बना दिया गया है और राज्य सरकार को इससे कोई आपत्ति नहीं. उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों के जीवन को आज भी दूसरे दर्जे का माना जाता है.
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मुआवज़ा या मज़ाक?
राज्य सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को 4 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की गई है. लेकिन माले ने इसे नाकाफी बताते हुए कहा कि यह राहत ऊँट के मुँह में ज़ीरा है.
माले की मांग:
मृतकों के परिजनों को कम से कम ₹10 लाख की आर्थिक सहायता
सभी घायलों का मुफ्त व समुचित इलाज
घटना की निष्पक्ष जांच और जवाबदेही तय हो
इस दुखद घटना ने बिहार से लगातार हो रहे बड़े पैमाने पर पलायन की एक बार फिर भयावह तस्वीर सामने रख दी है. माले का कहना है कि सरकारें रोजगार देने में विफल रही हैं और बिहार को सिर्फ सस्ते श्रम का स्रोत बनाकर छोड़ दिया गया है. यह हादसा न केवल प्रवासी मजदूरों की असुरक्षा को उजागर करता है, बल्कि उन जननीतियों पर भी सवाल खड़ा करता है जो विकास के नाम पर गरीबों को सिर्फ वोट बैंक समझती हैं.
भाकपा–माले ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच और प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए ठोस नीति तैयार करने की मांग की है.
बिहार से पलायन की कहानी फिर उजागर
यह हादसा एक बार फिर उस कटु सच्चाई को सामने लाता है जिसे सरकारें वर्षों से नजरअंदाज करती आ रही हैं — बिहार से रोज़गार की तलाश में हो रहा भीषण पलायन.शहरों की रफ्तार में गुम हो चुके ये मजदूर, देश के विकास में दिन-रात खप जाते हैं, मगर न तो उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिलती है, न ही न्यूनतम सम्मान.
क्या अब भी कोई नीति बदलेगी?
क्या अब भी कोई नीति बदलेगी?
प्रवासी मजदूरों की मौत कोई नई बात नहीं, लेकिन हर बार यही सवाल पीछे छूट जाता है — क्या अब भी सरकार चेतेगी? क्या अब भी मजदूरों की ज़िंदगी की कोई कीमत तय की जाएगी?
सिर्फ मुआवज़ा बांटने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती. जब तक प्रवासी मजदूरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ठोस और मानवीय नीति नहीं बनाई जाती, ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी — और सरकारें बस शोक जताती रहेंगी.
क्या आपको लगता है सरकार को प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए नई नीतियाँ बनानी चाहिए? कमेंट में अपनी राय जरूर दें.
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