अब वोट भी छीनोगे क्या? – माले की सीधी चुनौती!

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Ajit Kumar

बिहार
अब वोट भी छीनोगे क्या? – माले की सीधी चुनौती!

गरीबों की वोटबंदी नहीं चलेगी – माले की हुंकार

माले की 1 जुलाई से वोट बचाओ लोकतंत्र बचाओ अभियान

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 30 जून:बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आता दिख रहा है. भाकपा-माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने केंद्र और राज्य सरकार पर गरीबों और वंचितों को मताधिकार से वंचित करने का गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने इसे 2016 की नोटबंदी जैसी एक जनविरोधी ‘वोटबंदी’ करार दिया है, जो सीधे तौर पर लोकतंत्र की जड़ें कमजोर करने की कोशिश है.

कॉमरेड दीपंकर ने चुनाव आयोग की हालिया अधिसूचना पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार में मतदाता सूची को महज एक महीने में अपडेट करने की योजना के तहत 8 करोड़ मतदाताओं से नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांगे जा रहे हैं.यह प्रक्रिया, उनके अनुसार, खासतौर पर गरीब, खेतिहर मजदूर, प्रवासी कामगार और हाशिये पर खड़े समुदायों को मतदाता सूची से बाहर करने का एक सुनियोजित प्रयास है.

कृषि और प्रवास का महीना बन गया चुनौती का कारण

जुलाई का महीना बिहार में खेती-किसानी का समय होता है। साथ ही, बड़ी संख्या में बिहार के मजदूर राज्य से बाहर काम पर रहते हैं. ऐसे में एक सीमित समय सीमा में दस्तावेज़ों की मांग, लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की भूमिका बन सकती है. माले का कहना है कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त सार्वभौमिक मताधिकार पर सीधा हमला है.

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भाकपा-माले का राज्यव्यापी अभियान

भाकपा-माले ने 1 जुलाई से पूरे बिहार में ‘मताधिकार बचाओ – लोकतंत्र बचाओ’ नाम से जनअभियान चलाने की घोषणा की है. इसके अंतर्गत गांव-गांव में विरोध रैलियां, जनसभाएं, नुक्कड़ नाटक और जन संवाद आयोजित किए जाएंगे. उद्देश्य साफ है – हर नागरिक को उसके लोकतांत्रिक अधिकार के प्रति जागरूक करना और सरकार के इस ‘तानाशाही फरमान’ के खिलाफ जन दबाव बनाना.

दीपंकर भट्टाचार्य का आह्वान

कॉमरेड दीपंकर ने बिहार के आम नागरिकों, खासकर मजदूरों और वंचित तबकों से अपील की है कि वे इस मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें.”हमने अपने अधिकारों को संघर्ष के बल पर पाया है और हम किसी को भी इसे छीनने नहीं देंगे.

भाकपा-माले का यह अभियान आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर और भी अहम हो जाता है, जहां हर वोट की भूमिका निर्णायक हो सकती है. सवाल यह है कि क्या यह ‘वोटबंदी’ सच में लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है? जनता का जवाब ही इसका भविष्य तय करेगा.

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