माननीय उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने का दिया सुझाव
तीसरा पक्ष।। शुक्रवार दिनांक 20.01.2023 को माननीय उच्चतम न्यायालय में बिहार में शुरू की गई जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से साफ साफ इंकार कर दिया ।यह सुनवाई जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ के बेंच में जैसे ही शुरू हुई वैसे ही याचिकाकर्ताओं के वकीलों के दलील सुनने के बाद दोनों माननीय न्यायधिशो ने याचिकाकर्ता पर टिप्पणी करते हुए इस पर सुनवाई करने से साफ इंकार कर दिए। हलाकि इस से पहले 11 जनवरी 2023 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस याचिका को शुचिबद्ध करने पर सहमति जताई थी।
जैसा की आप सभी जानते है कि बिहार सरकार ने अपने आर्थिक संसाधन पर जातीय जनगणना करने का निर्णय लिया है, जिसका सर्वे का कार्य भी 7 जनवरी 23 से पुरे बिहार में शुरू हो चूका है। सर्वे के दौरान पंचयत से लेकर जिला स्तर तक बिहार के प्रत्येक परिवार का डाटा मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से डिजिटल रूप में एकत्र किया जायेगा।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ के पीठ ने क्या कहा ?
जस्टिस बी.आर.गवई और जस्टिस विक्रम नाथ ने याचिकर्ताओं के वकीलों द्वारा याचिका के पक्ष में दिए गए दलीलों से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए।
जस्टिस बी.आर.गवई ने कहा –
यह एक प्रचार हित याचिका है। उन्होंने आगे कहा कि किसी विशेष जाति को कितनी आरक्षण दिया जाना है यह हम तय नहीं कर सकते। आप उचित फोरम
में जाएं। उन्होंने याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता देते हुए राज्य के सम्बंधित उच्च न्यायालय में दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिए। अतः याचिकाकर्ताओं के पास यह विकल्प है कि वे पटना उच्च न्यायालय में अपना याचिका दायर कर सकते हैं।
कौन हैं याचिकाकर्ता ? (केस टाइटल: एक सोच एक प्रयास बनाम भारत सरकार और अन्य। WP(C) संख्या 71/2023 और संबंधित मामले)
माननीय सुप्रीम कोर्ट में कुल तीन याचिकाकर्ताओं (Petitioners) द्वारा अलग अलग याचिका डाली गई थी। यह याचिका एक सोच एक प्रयास नामक एन जी ओ संगठन द्वारा , दूसरा एक दक्षिणपंथी संगठन हिंदू सेना द्वारा , और तीसरा बिहार निवासी अखिलेश कुमार द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से जातिगत जनगणना करने की राज्य सरकार की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी।तीनो याचिकाओं को एक साथ सुनवाई करते हुए जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ के पीठ ने याचिकाकर्ताओं को स्वतंत्रता एवं सुझाव दिया कि आप सभी पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
याचिकाकर्ता का शिकायत क्या है ?
याचिकाकर्ता ने अपने अपने जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि जनगणना अधिनियम 1948 की व्यापक योजना के अनुसार, केवल केंद्र सरकार के पास नियम बनाने, जनगणना कर्मचारी नियुक्त करने, जनगणना करने के लिए आवश्यक परिसर, मुआवजे का भुगतान, सूचना प्राप्त करने आदि का शक्ति प्राप्त है। उन्होंने अपने याचिका में संविधान की सातवीं अनुसूची का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘जनगणना’ संघ सूची का विषय है जो क्रम संख्या 69 के अंतर्गत आती है और इसलिए यह केवल संसद को अधिकार है जो जनगणना के विषय पर कानून बना सकती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह केवल केंद्र सरकार है जिसके पास संविधान के प्रावधानों के अधीन किसी भी प्रकार की जनगणना को अधिसूचित करने की कार्यकारी शक्ति है।याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया है कि कि जनगणना अधिनियम 1948 जाति आधारित जनगणना पर विचार नहीं करता है। सरकारी अधिसूचना की इस आधार पर आलोचना की गई कि इसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया। जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार की अधिसूचना अवैध और असंवैधानिक है और यह देश की एकता और अखंडता पर प्रहार करने और तुच्छ वोट बैंक की राजनीति के लिए जाति के आधार पर लोगों के बीच सामाजिक वैमनस्य पैदा करने का प्रयास है।

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