गाँधीजी का सत्य के साथ अहिंसा का प्रयोग दुनिया के लिए आज भी प्रांसंगिक
तीसरा पक्ष ब्यूरो।। 30 जनवरी 2023 को हम भारत वासी उस महानायक को याद कर श्रधांजलि देते है जिसने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान सत्य के साथ अहिंसा का प्रयोग कर पूरी दुनिया को एक अनूठा मंत्र दिया । महात्मा गाँधी जिनको लोग प्यार से आज भी बापू कहते है , उन्होने भारतीय आकाश में एक ऐसे नक्षत्र के रूप में प्रकट हुए जिसने भारत में फैले अज्ञान रूपी अन्धकार को भगाने का उतरदायित्व अपने उपर ले लिया था। सदियों से अंग्रेजो के गुलाम रहें भारत के नर – नारियो ने भारत के लोगो ने गाँधी जी के प्रभावशाली नेतृत्व में अपने आप को समर्पित कर दिया था। एक तरफ शक्तिशाली एवं क्रूर अंग्रेज शासन तो दूसरी ओर भारत के गरीब और भोली भाली लोगो के बीच लड़ाईयां चल रही थी। इन गरीब जनता का नेतृत्व गाँधी जी कर रहे थे। इसमें वह सफल भी हुये उन्होने अपने अहिंसा के अस्त्र से गुलाम भारत को आजादी दिलायी । गाँधी जी भारत के साथ साथ पूरी दुनियाँ के लिए आदर्श थे। उनसे प्रभावित होकर दुनियाँ भर के अनेक गुलाम देशो ने अपना संघर्ष जारी रखा था। गाँधी जी द्वार चलाये गए अनेक योजनाओ एवं विचारो को पूरी दुनियाँ ने अपनाया था। गाँधी जी भौतिकता के अलावा आध्यत्मिकता के अस्तित्व को भी उसने अपनाया था । चाहे राजीतिक हो,दार्शनिक हो तथा आर्थिक हो या अर्थनीति का क्षेत्र हो उनके विचारों का अहम् योगदान था। जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था, जिसके बारे में गाँधी जी कूछ न कुछ कहा और सोचा न हो । वह हर क्षेत्र का ध्यान रखते थे ।शहीद दिवस के अवसर पर गांधीजी के जीवन दर्शन पर प्रकश डालती तीसरा पक्ष का यह आलेख आपको जरुर पढना चाहिए।
गाँधी जी का जीवन-परिचय
दुनिया के सभी लोग महात्मा गाँधी के जीवन के इतिहास से अवगत है। हम इनके जीवन -चरित्र के बारे में संक्षेप में रोशनी डालेगे।महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के पोरबन्दर नामक गाँव में हुआ था। गाँधी जी का पालनपोषण एक धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके पिता जी गुजरात में एक रियासत के दीवान थे। उन्होने अपनी एक आत्मकथा भी लिखे थे जिसमे उसने बताया है कि उनकी माताजी बहुत हि धार्मिक प्रवृति के एक विदुषी महिला थी उनका गहरा प्रभव गाँधी जी पर ही पड़ा । देश में प्रारंभिक शिक्षा पुरी हो जाने के बाद गाँधी जी इंग्लैड चले गये वकालत पढ़ने के लिए .इस समुद्री यात्रा में गाँधी जी ने धार्मिक संकटो का भी सामना करना पड़ा था। वकालत पास करने के बाद वह भारत लौट गये। जिस समय गाँधी जी इंग्लैण्ड में थे तो उस समय अफ्रीका के समस्या से पूरी तरह से वह अवगत हो चुके थे । उनकी राजीतिक जीवन की सुरुआत अफ्रीका से ही हुआ था। 1983 में गाँधी जी एक मुकदमा के सिलसिले में अफ्रीका चले गाये और उसनेदेखा कि अफ्रीका में भारतीय नागरिको पर वहां कि सरकार काफी अत्याचार कर रहा है भारतीय नागरिको पर काफी जुल्म ढाया जा रहा है भारतीय नागरिको कि यह दशा देख कर गाँधी जी ब्याकुल हो गये तब उन्होने अफ्रिका में ही रहकर अफ़्रीकी सरकार के विरुद्ध में उसने आन्दोलन शुरू कर दिया था ।
महात्मा गाँधी जी 1915 से लेकर जीवन के अंतिम समय तक अपना पूरा जीवन देश को अंग्रेजो से आजादी दिलाने के किये समर्पित कर दिया था । उनका जीवन दर्शन ही विशाल है उन्होने अपने विचारो के फ़ैलाने के लिए और साथ हि देश को एकजुट करने के लिए उन्होने हरिजन तथा यंग इण्डिया नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था ।गाँधी जी की आत्म कथा सत्य के प्रयोग सत्य का एक जीता जगता तस्वीर है । इस आत्म कथा में गाँधी जी ने जो देखा था जो उन्होने अनुभव किया उसी घटनाओ को उसने सरल शब्दों में लिखा था ।
गाँधी जी ने 1919 में रौलेट एक्ट के विरुद्ध में सत्याग्रह भी शुरू किया था । उसने 1930 में नमक सत्याग्रह और दांडीमार्च आन्दोलन भी शुरू किया था यह आन्दोलन भारत में काफी तेजी से बढ़ने लगा और गाँधी जी के पीछे एक बिसाल जनता का समूह उनके पीछे चलने लगा था। गाँधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन भी शुरू किया था। गाँधी जी एक सच्चे सत्य और अहिंसा के प्रवल पुजारी थे। वह अपने बातो को लोगो के सामने बहुत ही सरल और सहजता के साथ रखते थे उनका शोच था पूरी दुनिया को स्वर्ग जैसा बनाना लेकिन उनका यह सपना अधुरा रह गया क्योंकि 30 जनवरी 1948 जब गाँधी जी शाम के समय प्राथना कर के लौट रहे तब एक नाथूराम गोडसे नाम का आदमी गोली मार कर हत्या का दिया था । जब यह खबर फैला तो पुरे देश में दुःख का लहर दौड़ने लगा था पुरे देश में एक मातम सा लोगो में छा गया था । महात्मा गाँधी जी के विचारो में अलग अलग प्रकार के विचार धारा तथा अलग अलग विद्वान तथा अलग अलग दर्शनों कि छवि स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। उन्होने टालस्टॉय तथा थोरो से समानतावाद और सरलता एवं वैराग्य के बिषय पर विचार प्राप्त किये थे उनका राजनितिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले जी थे।
गाँधी जी की हत्या एक कायरता पूर्ण घटना
जब किसी व्यक्ति का दिमाग अंधभक्ति से पूरी तरह दूषित हो जाता है ,और अंधराष्ट्रवाद सर चढ़कर बोलने लगता है ,तब उस व्यक्ति का दिमाग तर्क शक्ति से दूर हो जाता है। किया सही है और किया गलत है ,का फैसला उसका दिमाग नहीं कर पता है। गांधीजी की हत्या इसी का जीता जगता उदाहरण है। गाँधी जी की हत्या तब हुई , जब वह जीवन के चौथे पड़ाव में थे। वैचारिक मतभेद और राजनैतिक वैमनष्यता का प्रकटीकरण इस तरह का होना कितना सही है ? यह विषय आप सभी पाठको पर छोड़ता हूँ। इस पर आपका क्या विचार है कमेंट कर जरूर बताएगा। 30 जनवरी 1948 जब गाँधी जी शाम के समय प्राथना कर के लौट रहे तब एक नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर उनका हत्या का दिया था । कहा जाता है कि गाँधी जी हत्या में बनाये गए अभियुक्त नाथूराम गोडसे और उसके भाई के साथ साथ हत्या के सारे आरोपी के चेहरे पर गाँधी जी की हत्या का थोड़ा भी पश्चाताप कोर्ट कार्यवाही में नहीं दीखता था। आश्चर्य होता है कि जिस व्यक्ति को अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़नी थी ,वह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता को ही गोली मर दिया। अतएव ,कट्टरता किसी देश और समाज के लिए कितना घातक है इस पर हम सभी को गंभीरता से सोचना चाहिए।
महात्मा गाँधी जी के सत्य और अहिंसा का सन्देश
महात्मा गाँधी सत्य और अहिंसा के एक सच्चे पुजारी माने जाते थे और उनका यह मानना था कि सत्य हि ईश्वर है और ईश्वर हि सत्य है और ईश्वर प्रेम और प्रेम हि ईश्वर है। कूछ लोग गाँधी जी के बारे में यह भी कहते है किउनका सत्य से परे हिंदु धर्म तथा अहिंसा जो है वह बौद्धधर्म ,जैनधर्म और इसाई धर्म के विचारो से प्रभावित थे।गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा को हि अपने जीवन का आधार मानकर एक नये समाज का आधार बनाया था। वह पुरे संसार के लिए आजादी मागते थे।लोभ ,अहिंसा,आक्रमण,वासनाओ,अकांक्षाओ ने देश को बर्बाद कर के रख दिया है। इससे भी उन्होने आजादी मागते थे।गाँधी जी ने यंग इन्डिया पत्रिका में लिखे थे कि जिस साधू सन्तो ने हिसा के बिच अहिंसा के विचारो को खोजा है। वह न्यूटन से भी बड़ा बुद्धिमान वाले लोग थे। उन्होने अपने आप को वैलिग़टन से भी अधिक वीर मानते थे। वह खुद हथियार चलाना जानते थे फिर भी इसका बेकार का अनुभव मानते थे। उसने युद्ध से पीड़ित इस संसार को बताया कि इसका हल हिंसा से नही होगा वल्कि अहिंसा के रास्ते पर हि चल कर होगा। सत्याग्रह को ही उसने निर्भीकता का आधार बनया था। उसने लोगो के दिल में प्रसासन,पुलिस,सरकार तथा जेल जाने का जो डर बैठा था उसको बहार निकलना चाहते थे। उनका कहना था कि सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन लड़ाई झगड़ा और हल्ला गुल्ला करने वाला यह अस्त्र नहीं है। यह एक आपकी ईमानदारी की कसौटी है। इसमें आत्म बलिदान की जरूरत होती है। अहिंसा इसका सबसे बड़ा अंग और हथियार है। गाँधी जी कहते है कि इसका मतलब यह नही है कि हम पापियो और अन्याय के सामने झुक जाये उनका मानना था कि हम अन्याय करने वालो लोगो से नफरत नहीं करना है। वल्कि हम उनके मन में प्रेम,अहिंसा,दया की भावना से उनकी आत्मा को बदलना है।गाँधी जी अंग्रेजो का विरोधी नहीं था। वह अंग्रेज को साम्राज्यवाद नीति को लेकर अंग्रेज को विरोध करते थे।उनका मानना था कि मनुष्य कि प्रकृति बहुत हि अच्छी होती है ।और एक अन्यायकारी का जो मन है। वह सत्याग्रही करने वाले लोगो के आत्म बलिदान से बदल जायेगा। और अंत समय में सत्य को जित होगा। महात्मा गाँधी जी सत्य और अहिंसा के एक सच्चे पुजारी थे।
महात्मा गाँधी जी का रचनात्मक कार्य
गाँधी जी के दिशा निर्देश में कांग्रेस ने बहुत से रचनात्मक कार्य किये गये थे उन्होने भारत की अंग्रेजो से आजादी के साथ साथ भारतीय लोगो के आर्थिक एवं सामाजिक विकास भी दिलाना चाहते थे। इसलिए उन्होने ग्राम उधोग संघ और तालीमी संघ के साथ साथ उन्होने गो रक्षा संघ का भी स्थापना करवाये थे। उन्होने समाज में हो रहें शोषण को ख़त्म करने के लिए भूमि और पूजी का समाजीकरण नहीं होने दिये थे वह चाहते थे की इस समस्या का समाधान आर्थिक क्षेत्र के विकेन्द्रीकरण के द्वारा होना चाहिए।गाँधी जी ने कुटीर उधोग को भी बढ़ाने का काम किये थे खादी उद्दोग उनका आर्थिक कार्यक्रम का ही प्रतिक माना गया है। गाँधी जी अपने जीवन में समाज को सुधारने के लिए बहुत हि प्रयाश किये थे । उन्होने समाज में फैले विभिन्न असमानता को जैसे जाती धन धर्म और जन्म इत्यादी में फैले हुए असमानता को दूर करने का कार्य किये उन्होने समाज में फैले जाती के नाम पर होने वाले भेदभाव दूर करने का कार्य किये तथा गाँधी जी ने हरिजन को ईश्वर के लोग कहकर संबोधित किये थे । और उन्होने नशाबंदी के लिए भी कार्य किये तथा देश में हिंदु मुश्लिम एकता को बनाये रखने के लिए भी गाँधी जी ने बहुत हि प्रयाश किये थे लेकिन एक हिन्दुवादी समाज के कट्टरपंथी लोग ने गाँधी जी को 30 जनवरी1948 को गोली मारकर हत्या कर दिया था। उसका मानना था कि गाँधी जी ने हि इस विभाजन का प्रमुख कारन था ।
महात्मा गाँधी का भारत में पहला सत्यग्रह
महात्मा गाँधी का भारत में पहली सत्यग्रह चम्पारण सत्याग्रह था। महात्मा गाँधी जब दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारतवापस आने के बाद उन्होने पहली सफल सत्याग्रह की शुरुआत बिहार के चम्पारण जिले से 1917 में में किये थे । चम्पारण जिले में किसानो एवं गरीब मजदूरों का हालात ख़राब हो चूका था कारन यह था कि वहा के अंग्रेज और जमींदार ये दोनों मिलकर किसानो का निर्मम शोषण बहुत ही लम्बे समय से करते आ रहा था । वहा के किसानो से जमींदारो ने जबरदस्ती
नील की खेती करवाते थे एक बीघा पर तीन कट्ठा (3/20) जमीन पर नील का खेती जरुरी था। इसी को तीन कठिया व्यवस्था कहा जाता था। 1917में चम्पारण का एक किसान राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ में गाँधी जी से मिला और चम्पारण के किसानो कि पीड़ा से उनको अवगत कराये और गाँधी जी को चम्पारण आने के लिए अनुरोध किये अप्रेल 1917 में महात्मा गाँधी मुजफ्फरपुर पहुचे लेकिन वहा के जो प्रशासन थे उनको आने पर रोक लगाने का फैसला लिया और गाँधी जी पार कानून विरोधी आचरण के लिए उनको गिरफ्तार कर लिया गाया और उनपर मुकदमा चलाया गया। गाँधी जी द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से चलाये जा रहें सत्याग्रह आन्दोलन को समाप्त करने में अंग्रजो का काफी मुश्किल साबित हो रहा था दूसरी योर गाँधी जी की भी लोप्रियता तेजी से बड़ता जा रहा था। यह देखकर अंग्रेज प्रशासन काफी परेसान होने लगा तब बिहार के उप राज्यपाल एडवर्ड गेट ने गाँधी जी को समझौता करने के लिए बुलाया और किसानो कि समस्या हल करने के लिए के समिति का गठन किया गया था। और गाँधी जी की भी इस समिति का सदस्य बनाया गया था। इस समिति ने तीन कठिया प्रथा को समाप्त कर दिया और किसानो का लगान भी घटा दिया गया था। किसानो को क्षतिपूति भी दिलाया गया था। शांतिपूर्ण तरीके से किये गये पहलीबार यह सत्याग्रह आन्दोलन सफल रहा। इस आन्दोलन को सफल होने से चम्पारण के किसानो को कष्टों से काफी राहत मिली थी। यह किसानो के लिए बहुत बड़ी उपलव्धि थी यह सब गाँधी जी के सत्याग्रह से ही संभव हो सका था।
गाँधी जी और सविनय अवज्ञा आन्दोलन
महात्मा गाँधी जी 1928 फिर दूसरी बार राजनितिक के क्षेत्र में आ गये थे उसने1930 में नामक कानून को तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन करने का एलान किया और 12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने अपने 78 साथियों के साथ मिलकर साबरमती आश्रम से दांडी समुद्र तट के किनारे अवैध रूप से नमक बनाया था। सुभासचंद्र बोस ने इसकि तुलना नेपोलियन के पैरिस अभियान से किया था। इस घटना के बाद अंग्रेज लोग गाँधी जी की मजाक भी उड़ाने लगे थे। और कहा गया की क्या एक राजा को एक केतली में पानी उबलने से क्या हराया जा सकता है लेकिन अंग्रेजो ने गाँधी जी के इस कदम को सही से आकलन नहीं कर पाए और देखते हि देखते यह आन्दोलन बड़ा रूप धारण कर लिया इसमें बहुत सा स्वयं सेवियो सामिल हो गयें थे।फिर कांग्रेस और सरकार के बिच एक समझौता हुआ और सरकर ने यह बताया कि भारत का संबैधानिक विकास का उदेश्य भारत को एक डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देना है। फिर महात्मा गाँधी जी भारतीय संबैधानिक को सुधारने के लिए बुलाया गया गोलमेज सम्मेलन में लेकिन उनको निराश हि हाथ लगे फिर गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया लेकिन यह आन्दोलन असफल रहा इसी असफलता को लेकर गाँधी जी ने कांग्रेस कि सदस्यता से त्यागपत्र दे दिये उसने अपने आप को हरिजनो कि सेवा से अलग कर लिया तबतक कांग्रेस का रुपरेखा हि बदल चूका था। इसमें आत्मविवास पैदा हो चूका था।लेकिन सबसे बड़ी बात यह हुई कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन एक सर्वसाधारण आन्दोलन बन चूका था
महात्मा गाँधी जी का आर्थिक विचार
महात्मा गाँधी को आर्थिक विचारो को लेकर सभी आर्थिक विचरको से काफी अलग था।उन्होने आर्थिक क्षेत्र को नैतिकता के रूप में देखते थे। वही दुसरे आर्थिक विचारको ने अर्थशास्त्र को भोतिकता के रूप में देखते थे। गाँधी जी के अनुसार अर्थशास्त्र एक नैतिक विज्ञान था। जबकि दुसरे विचरको ने अर्थशास्त्र को सकरात्मक विज्ञान माना था।गाँधी जी ने अर्थशास्त्र के बारे बताया था कि इसका प्रमुख उदेश्य है सभ्यता के आकलन करने के साथ साथ उनकी गरीबी को ख़त्म करना उनलोगों में सदाचार कि भावना को पैदा करना और समाज में फैले बुराईओं को बाहर निकना था। गाँधी जी के इस विचार से यह साबित होता है कि गाँधी जी भौतिकवाद से ज्यादा अध्यात्मवाद के विचार को उसने अधिक प्रधानता देते थे। गाँधी जी पर भारतीय दर्शन पूरी तरह से उनपर हावी हो चूका था। इसलिए गाँधी जी के अनुसार अर्थशास्त्र का विषय एक नैतिक विज्ञान था।
महात्मा गाँधी के राजनितिक गुरु
महात्मा गाँधी के राजनितिक गुर गोपाल कृष्ण गोखले जी को माना जाता है। गोपाल कृष्ण गोखले अपने राजनितिक जीवन में एक सच्चे उदारवादी नेता थे। वह सभी को एक समान समझते थे। वह सभी के साथ मधुरता से बातचीत करते थे। गोखले जी एक सुलझीहुई बातचीत करनेवाले प्रवृति के लोग थे । उनका मानना था कि देश का फिर से विकाश राजनितिक बवंडर कि उतेजना से नहीं किया जा सकता है।गोपाल कृष्ण गोखले जी लक्ष्य और साधन दोनों की पवित्रता में वह विश्वाश करते थे। गाँधी जी ने इन्ही विचारो से प्रभावित हो कर उनको अपना राजनितिक गुरु मानने लगे थे। और गाँधी जी गोखले जी का चेला बन गयें थे।
अतः शहीद दिवस के इस अवसर पर तीसरा पक्ष परिवार की ओर से महात्मा गाँधी जी को कोटि कोटि नमन व श्रद्धासुमन !

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