कर्नाटक में मुस्लिम कांग्रेस नेताओं का इस्तीफा: सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ गुस्सा

| BY

Ajit Kumar

भारत
कर्नाटक में मुस्लिम कांग्रेस नेताओं का इस्तीफा: सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ गुस्सा

तीसरा पक्ष ब्यूरो : कर्नाटक की सियासत में हाल ही में एक बड़ा भूचाल आया है, जब दक्षिण कन्नड़ जिले में 200 से अधिक मुस्लिम कांग्रेस नेताओं ने सामूहिक रूप से पार्टी से इस्तीफा दे दिया. यह कदम मंगलुरु के बंटवाल तालुक में कोलथमाजालु जुम्मा मस्जिद के सचिव अब्दुल रहीम उर्फ इम्तियाज की हत्या के विरोध में उठाया गया. नेताओं ने सिद्धारमैया सरकार पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफलता और सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में निष्क्रियता का आरोप लगाया है. इस घटना ने न केवल कांग्रेस की आंतरिक एकता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर भी चर्चा छेड़ दी है.

क्या हुआ मंगलुरु में?

27 मई 2025 को मंगलुरु के बंटवाल तालुक में अब्दुल रहीम और उनके सहयोगी कलंदर शफी पर 15 लोगों के एक समूह ने तलवार से हमला किया. इस हमले में रहीम की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि शफी गंभीर रूप से घायल हो गए.पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है. हालांकि, प्रभारी मंत्री दिनेश गुंडू राव के बयान, जिसमें उन्होंने हत्या को निजी रंजिश का मामला बताया, ने मुस्लिम समुदाय में और आक्रोश पैदा किया. समुदाय के नेताओं ने इस बयान को वापस लेने की मांग की.

क्यों दिया नेताओं ने इस्तीफा?

क्यों दिया नेताओं ने इस्तीफा?

इस हत्याकांड के बाद, कांग्रेस के कई प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से दूरी बना लिया है . इनमें दक्षिण कन्नड़ जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष और पूर्व मेयर के. अशरफ, कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के महासचिव एमएस मुहम्मद, और अल्पसंख्यक विंग के अध्यक्ष के.के. शहूल हमीद जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं.नेताओं ने साफ कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे पार्टी कार्यालयों में वापस नहीं लौटेंगे. इस्तीफे के प्रमुख कारणों में शामिल हैं.जो इस प्रकार है-

सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि: दक्षिण कन्नड़ में हाल के महीनों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, जिसे रोकने में सरकार नाकाम रही.
पुलिस की निष्क्रियता: नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने हत्याकांड में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई नहीं की.
अल्पसंख्यकों की उपेक्षा: मुस्लिम समुदाय का मानना है कि सिद्धारमैया सरकार उनकी सुरक्षा और हितों की रक्षा करने में असफल रहा है.
प्रतिशोधात्मक हिंसा का डर: अब्दुल रहीम की हत्या को कुछ लोग पहले हुई एक अन्य हत्या का बदला मान रहे हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव और बढ़ गया है.

कांग्रेस और सिद्धारमैया सरकार पर प्रभाव

यह सामूहिक इस्तीफा कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर तब जब पार्टी अल्पसंख्यक समुदाय को अपना मजबूत वोट बैंक मानती है. कर्नाटक में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 13% है, और 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के समर्थन से 135 सीटें जीती थीं. इस घटना ने सिद्धारमैया की अल्पसंख्यक हितैषी छवि को भी नुकसान पहुंचाया है. विपक्ष, खासकर भाजपा, इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश में है, जिससे कांग्रेस की सियासी मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

सरकार का जवाब और भविष्य की दिशा

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मंगलुरु, उडुपी, और शिवमोग्गा में सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए एक विशेष एंटी-कम्युनल टास्क फोर्स के गठन का ऐलान किया है. हालांकि, मुस्लिम नेताओं का कहना है कि यह कदम “दिखावटी” है और वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करता.कई नेताओं ने सवाल उठाया कि वे कांग्रेस को वोट क्यों दें, जब पार्टी उनके हितों की रक्षा करने में विफल रही है.

कांग्रेस अब इस संकट से निपटने के लिए नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, जिसमें राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं, के सामने यह चुनौती है कि वे अपनी अल्पसंख्यक समर्थक छवि को कैसे बनाए रखें. अगर यह नाराजगी बरकरार रही, तो यह 2025 में होने वाले तालुक और जिला पंचायत चुनावों में कांग्रेस के लिये यह काफि मुश्किलें पैदा कर सकता है

निष्कर्ष

कर्नाटक में अब्दुल रहीम की हत्या और उसके बाद मुस्लिम नेताओं के सामूहिक इस्तीफे ने कांग्रेस के लिए एक संकट पैदा कर दिया है. यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था के मुद्दे को उजागर करता है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के बीच बढ़ते असंतोष को भी दर्शाता है. सिद्धारमैया सरकार के लिए यह समय कठिन निर्णय लेने और विश्वास बहाल करने का है, वरना इसका असर पार्टी के भविष्य पर पड़ सकता है.

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