बिहार में दलित राजनीति पर परिवारवाद का साया, अम्बेडकरवाद की अनदेखी पर चिंता

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kmSudha

बिहारतीसरा पक्ष आलेख
बिहार में दलित राजनीति पर परिवारवाद का साया, अम्बेडकरवाद की अनदेखी पर चिंता

अंबेडकर रत्न मंडल संघ का संयुक्त ब्यान, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी पर आरोप, सामाजिक समानता और आत्मसम्मान के लिए अनुसूचित जातियों से अपील

तीसरा पक्ष डेस्क पटना: बिहार की दलित राजनीति एक बार फिर कटघरे में है. सामाजिक न्याय की नींव पर खड़ी इस राजनीति पर अब परिवारवाद और अम्बेडकरवादी विचारधारा से विचलन के गंभीर आरोप लग रहे हैं. अंबेडकर रत्न मंडल संघ(ARMS) के संयोजक एवं संरक्षक इंजीनियर केदार पासवान ने चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे प्रमुख दलित नेताओं पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि ये नेता अम्बेडकरवादी मूल्यों से भटक गए हैं और सत्ता-समीकरण की राजनीति में उलझकर मनुवादी प्रवृत्तियों से समझौता कर रहे हैं.

अम्बेडकर रत्न मंडल संघ की सख्त चेतावनी

बिहार की पंजीकृत सामाजिक संस्था “अम्बेडकर रत्न मंडल संघ”(ARMS) के कोर ग्रुप की बैठक में ई. केदार पासवान, अर्जुन प्रियदर्शी, सुरेश कुमार, प्रहलाद कुमार, रामप्रवेश दास, केदारनाथ राम और बीरेन्द्र तूरी,अर्जुन राजवंशी बाबूलाल मांझी राम योगेंद्र पासवान दुर्गा प्रसाद विश्वनाथ पासवान जैसे नेताओं ने साझा बयान जारी कर राज्य की मौजूदा दलित राजनीति पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि जब तक दलित नेतृत्व अम्बेडकर के विचारों को व्यवहार में नहीं लाएगा, तब तक दलित समाज का सशक्तिकरण अधूरा रहेगा.

परिवारवाद बनाम अम्बेडकरवाद की संभावनाएं

परिवारवाद बनाम अम्बेडकरवाद की संभावनाएं

संघ का कहना है कि बिहार में दलित नेतृत्व कुछ परिवारों तक सिमट कर रह गया है. चिराग पासवान जहां अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं जीतन राम मांझी भी अपनी राजनीति को अपने परिवार तक सीमित रख रहे हैं. इसका नतीजा यह हो रहा है कि दलित समाज से नए और काबिल नेतृत्व को उभरने का मौका नहीं मिल पा रहा है.

अम्बेडकरवाद: नारों से आगे क्यों नहीं?

संघ ने आरोप लगाया कि दलित राजनीति में अम्बेडकरवाद अब केवल नारों तक सीमित रह गया है. सामाजिक समानता, शिक्षा और आत्मसम्मान जैसे मुद्दों को दरकिनार कर सत्ता केंद्रित राजनीति को प्राथमिकता दी जा रही है. ई. केदार पासवान का कहना है कि अम्बेडकर की सोच पर चलना केवल भाषणों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे नीतियों और योजनाओं में लागू करना चाहिए.

बसपा की भूमिका पर सवाल

बहुजन समाज पार्टी (BSP), जिसे कभी दलितों की प्रमुख आवाज माना जाता था, अब बिहार की राजनीति में हाशिए पर अभी भी दिख रही है। संघ के मुताबिक, बसपा की ढुलमुल नीति और संगठनात्मक कमजोरी ने दलित वोट बैंक को बिखेर दिया है, जिसका लाभ अन्य राजनीतिक दल उठा रहे हैं. संघ का मानना है कि यह स्थिति अम्बेडकरवादी आंदोलन के लिए गंभीर संकट है.

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एनडीए के साथ गठजोड़ पर विवाद

चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के एनडीए के साथ गठजोड़ को लेकर भी संघ ने गंभीर सवाल उठाए हैं. हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अम्बेडकर पर दिए गए बयान का इन नेताओं द्वारा समर्थन किए जाने पर संघ ने आलोचना करते हुए कहा कि यह दलित हितों से समझौता है.

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आगे की राह

बिहार की दलित राजनीति इस समय एक गंभीर मोड़ पर खड़ी है. परिवारवाद, विचारधारात्मक विचलन और संगठनात्मक कमजोरी जैसे मुद्दे दलित समाज के हितों को कमजोर कर रहे हैं. ऐसे में अम्बेडकरवादी संगठनों की चेतावनी और अपील को नजरअंदाज करना महंगा साबित हो सकता है. अब समय आ गया है कि दलित समाज एकजुट होकर अपने अधिकारों और विचारों की रक्षा करे, ताकि डॉ. अम्बेडकर का सपना साकार हो सके.

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