जमाई आयोग” से लेकर “विशेष व्यवस्था आयोग” तक—सत्ता की सियासी रेवड़ियां
तीसरा पक्ष डेस्क,पटना: बिहार की सियासत एक बार फिर गर्म है, और इस बार हमला सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर है.नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार और वर्तमान एनडीए सरकार पर परिवारवाद, भाई-भतीजावाद और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए करारा हमला बोला है. अपने तीखे बयान में तेजस्वी ने कहा कि मुख्यमंत्री जी की “अवचेतन अवस्था” का फायदा उठाकर संविधान विरोधी, आरक्षण विरोधी और बहुजन विरोधी ताकतों ने मुख्यमंत्री सचिवालय पर कब्ज़ा कर लिया है.
तेजस्वी ने तंज कसते हुए कहा,
“कोई अपने बेटे को, कोई दामाद को, कोई पत्नी को तो कोई रिश्तेदार को रेवड़ी की तरह पद बांट रहा है. ठेके बांटे जा रहे हैं, मलाईदार पोस्टों पर अपनों को बैठाया जा रहा है. बिहार को लूट का मैदान बना दिया गया है.
तेजस्वी यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि अब बिहार में एक “समर्पित जमाई आयोग” और “विशेष व्यवस्था आयोग” भी बना देना चाहिए, ताकि टायर्ड-रिटायर्ड अधिकारियों की पत्नियों और सगे-संबंधियों के लिए सत्ता की मलाई सुनिश्चित की जा सके.
सत्ता बनाम सवाल: क्या यह परिवारवाद का चरम है?
तेजस्वी यादव के इस बयान ने बिहार की राजनीतिक फिज़ा में नई बहस छेड़ दी है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या सत्ता में बैठे लोग वाकई राज्य को निजी जागीर की तरह चला रहे हैं? तेजस्वी ने बहुजन, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों की अनदेखी की ओर इशारा करते हुए कहा कि जिन वर्गों ने सरकार बनाने में भूमिका निभाई, उन्हें आज सत्ता से दूर रखा जा रहा है.
मुख्यमंत्री की अवचेतन अवस्था: सत्ता का खालीपन?
तेजस्वी ने नीतीश कुमार की उम्र और सक्रियता को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने इशारों में कहा कि वर्तमान समय में मुख्यमंत्री कार्यालय की बागडोर कुछ गिने-चुने लोगों के हाथ में चली गई है, जो अपने परिवार और करीबी लोगों के हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
नीतीश कुमार पर सीधा निशाना या रणनीतिक चाल?
तेजस्वी का यह हमला सिर्फ बयान नहीं, बल्कि एक रणनीतिक राजनीतिक संदेश भी है. 2025 विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन और पिछड़े वर्गों को यह बताने की कोशिश है कि अब सत्ता में उनकी हिस्सेदारी खत्म हो रही है, और मुख्यमंत्री के नाम पर कुछ लोग बंद दरवाज़ों के पीछे सारे फैसले ले रहे हैं.
निष्कर्ष:
तेजस्वी यादव का यह तंज केवल एक बयान नहीं, बल्कि बिहार की बदलती राजनीति का आईना है. सत्ता के गलियारों में परिवारवाद बनाम जनवाद की यह लड़ाई अब और तीखी होने वाली है. आने वाले दिनों में जनता को तय करना है कि वह “विशेष व्यवस्था आयोग” जैसे तंज को मज़ाक समझेगी या बदलाव की शुरुआत.

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