‘NFS’ बना नया बहाना? योग्य SC-ST-OBC उम्मीदवारों को क्यों ठहराया जा रहा अयोग्य?
मोदी सरकार पर राहुल गांधी का तीखा हमला
तीसरा पक्ष डेस्क,नई दिल्ली, 25 जुलाई 2025: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है. इस बार उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में बहुजन समाज की उपेक्षा को लेकर संसद में पेश किए गए आंकड़ों को आधार बनाकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं.सोशल मीडिया हैंडल X पर किए गए अपने पोस्ट में उन्होंने कहा कि “ये आंकड़े सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि बहुजनों के हक को संस्थागत तरीके से छीनने की एक सोची-समझी साजिश हैं.”
संसद में पेश आंकड़े और राहुल का आरोप
राहुल गांधी ने जिन आंकड़ों का हवाला दिया है, वे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्गों के खाली पदों से संबंधित हैं. उनके अनुसार:
- प्रोफेसर पदों में:
- ST वर्ग के 83% पद
- OBC वर्ग के 80% पद
- SC वर्ग के 64% पद अभी तक भरे नहीं गए हैं।
- ST वर्ग के 83% पद
- एसोसिएट प्रोफेसर पदों में:
- ST के 65%
- OBC के 69%
- SC के 51% पद अब भी रिक्त हैं।
- ST के 65%
राहुल का आरोप है कि यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि बहुजन समाज को शिक्षा, अनुसंधान और नीति-निर्धारण की प्रक्रिया से बाहर रखने की एक “संस्थागत मनुवादी साजिश” है.
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‘NFS’ के नाम पर बहुजनों को किया जा रहा दरकिनार?
राहुल गांधी ने ‘Not Found Suitable’ (NFS) जैसी भर्ती प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक ऐसा तरीका बन गया है जिससे “हजारों योग्य SC, ST, OBC उम्मीदवारों को जानबूझकर अयोग्य ठहरा दिया जा रहा है.”
उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के पीछे की सोच बहुजनों को अवसरों से वंचित करने की है, और सरकार इससे पूरी तरह से बचती रही है.
बहुजन प्रतिनिधित्व की कमी से रिसर्च में भी भेदभाव?

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों में बहुजन वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने की वजह से वंचित तबकों से जुड़ी समस्याएं न तो रिसर्च का हिस्सा बनती हैं और न ही किसी नीति विमर्श का.
“जब विश्वविद्यालयों में ही उनका प्रतिनिधित्व नहीं होगा, तो उनकी समस्याएं विमर्श का हिस्सा कैसे बनेंगी?”
कांग्रेस की मांग: सभी रिक्त पद तुरंत भरें जाएं
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी खाली आरक्षित पदों को तत्काल भरा जाए. उन्होंने साफ कहा,
“बहुजनों को उनका अधिकार मिलना चाहिए, मनुवादी बहिष्कार नहीं.”
निष्कर्ष
राहुल गांधी की इस टिप्पणी ने एक बार फिर शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक न्याय के सवाल को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ला दिया है.
जहां एक ओर सरकार अपने कार्यकाल में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे को दोहराती रही है, वहीं दूसरी ओर ये आंकड़े और राहुल का आरोप बता रहे हैं कि बहुजन वर्ग आज भी उच्च शिक्षा की मुख्यधारा से दूर है.
अब देखना होगा कि क्या सरकार इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट जवाब देती है या फिर यह भी चुनावी राजनीति में एक और “जुमला” बनकर रह जाएगा.

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