बहुजन समाज पार्टी में आंतरिक उठापटक और भारतीय राजनीति पर असर
तीसरा पक्ष डेस्क,यूपी: भारतीय राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने हाल ही में दो अहम कदम उठाए हैं. पहला, पार्टी सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद की घर-वापसी और दूसरा, उनके ससुर एवं लंबे समय तक बी.एस.पी. के मजबूत स्तंभ रहे अशोक सिद्धार्थ का पुनः शामिल होना. इन दोनों घटनाओं ने बी.एस.पी. के भीतर नई ऊर्जा और राजनीतिक संदेश को जन्म दिया है.
आकाश आनंद की वापसी: युवाओं को साधने की कोशिश
कभी मायावती के उत्तराधिकारी के रूप में प्रोजेक्ट किए गए आकाश आनंद को अचानक सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया गया था. उस समय यह संदेश गया कि मायावती पार्टी की कमान किसी को भी इतनी आसानी से नहीं सौंपेंगी. लेकिन अब उनकी वापसी संकेत देती है कि बी.एस.पी. युवाओं, खासकर शहरी और डिजिटल पीढ़ी, को साथ लेने की कोशिश कर रही है.
अशोक सिद्धार्थ का लौटना: पुराने भरोसे का सहारा

अशोक सिद्धार्थ का नाम बी.एस.पी. में लंबे समय तक संगठनात्मक मजबूती और राजनीतिक रणनीति से जुड़ा रहा है. राज्यसभा सांसद के रूप में भी उन्होंने पार्टी का पक्ष मज़बूती से रखा. उनके निष्कासन और अब वापसी ने यह साफ कर दिया है कि बी.एस.पी. को अभी भी अपने पुराने, अनुभवी नेताओं की ज़रूरत है, ताकि पार्टी का खोया जनाधार वापस पाया जा सके.
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राजनीतिक संदेश और समीकरण

दोनों घटनाओं ने बी.एस.पी. कार्यकर्ताओं में हलचल मचा दी है. एक तरफ युवा चेहरे को फिर से आगे कर नई पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास है, तो दूसरी तरफ पुराने भरोसेमंद नेताओं की वापसी से संगठन को स्थिरता देने की रणनीति.
यह कदम पार्टी के भीतर “नया जोश + पुराना भरोसा” की राजनीति को दर्शाता है.
क्या बी.एस.पी. फिर होगी प्रासंगिक?
पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में बी.एस.पी. का प्रभाव लगातार घटा है. मायावती की चुप्पी और संगठनात्मक कमजोरी ने दलित राजनीति में नए विकल्पों को जन्म दिया. लेकिन आकाश आनंद और अशोक सिद्धार्थ की वापसी एक तरह से संकेत है कि पार्टी खुद को पुनर्गठित करने की तैयारी में है.
निष्कर्ष: जमीन तलाशती बी.एस.पी.
आज जब भारतीय राजनीति जाति समीकरण, गठबंधन और सोशल मीडिया की धार पर चल रही है, बी.एस.पी. की चुनौती सबसे बड़ी है—अपने कोर वोटबैंक को बनाए रखना और युवाओं को जोड़ना.
माया की छांव में आकाश और अशोक, दोनों की मौजूदगी यह तो तय करती है कि बी.एस.पी. अभी हार मानने वाली नहीं है. आने वाले चुनाव बताएंगे कि यह घर-वापसी सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम है या वाकई बहुजन राजनीति में नई जान फूंकने की शुरुआत.

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