तेजस्वी यादव या नीतीश कुमार – जनता किसे चुनेगी बिहार का नेता?
तीसरा पक्ष डेस्क पटना,21 सितंबर 2025 – बिहार, भारतीय राजनीति का हृदयस्थल, जहां जाति समीकरण, विकास की राजनीति और युवा आकांक्षाएं मिलकर चुनावी परिणाम तय करते हैं.अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पूरे देश की नजर इस बार बिहार पर है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में है, जबकि विपक्षी महागठबंधन, तेजस्वी यादव की अगुवाई में कड़ी चुनौती पेश कर रहा है. सवाल बड़ा है – क्या इस बार सत्ता परिवर्तन संभव है? और अगर हुआ तो उसका असर बिहार ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी कैसे पड़ेगा?
वर्तमान राजनीतिक तस्वीर
2020 के चुनावों में एनडीए ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. इसमें भाजपा को 74, जद(यू) को 43 और बाकी सीटें सहयोगियों को मिलीं.वहीं, आरजेडी-कांग्रेस-वाम गठबंधन 110 सीटों पर सिमट गया था.लेकिन 2025 में समीकरण बदल चुके हैं.
एनडीए में भाजपा, जद(यू), एलजेपी और हम (एचएएम) शामिल हैं.
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई(एमएल) और कुछ छोटे दल हैं.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) इस बार नया फैक्टर है, जो,जाति-मुक्त राजनीति” का नारा लेकर मैदान में है.
इधर लालू प्रसाद यादव के परिवार में खटास बढ़ी है. रोहिणी आचार्य ने आरजेडी और तेजस्वी को सोशल मीडिया पर अनफॉलो कर दिया, जबकि तेज प्रताप पहले से ही पार्टी लाइन से अलग आवाज उठा रहे हैं. इससे महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं.दूसरी ओर, नीतीश सरकार ने विकास मित्रों को टैबलेट और परिवहन भत्ता जैसी घोषणाएं की हैं, जिन्हें चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
सत्ता परिवर्तन की संभावनाएँ
सत्ता परिवर्तन की संभावना कई कारकों पर टिकी है – जातीय समीकरण, बेरोजगारी, महिला वोट, विकास बनाम सामाजिक न्याय और युवा वर्ग की सोच.
ओपिनियन पोल्स की तस्वीर
एक पोल में एनडीए को 136 सीटें और एमजीबी को 75 सीटें दी गईं.
दूसरे सर्वे में एनडीए 124 और एमजीबी 112 सीटों पर दिखा.
भाजपा के लिए बढ़त के संकेत हैं, जबकि जद(यू) को सीटों में नुकसान का अनुमान है.
औसतन एनडीए का वोट शेयर 42-49% और एमजीबी का 35-41% बताया गया है.
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महिलाओं और युवाओं का फैक्टर
महिलाओं में एनडीए की 18% तक बढ़त दिख रही है.अगर,लाड़ली बहना योजना लागू होती है, तो एनडीए 180+ सीटों तक जा सकता है. वहीं, युवाओं में तेजस्वी और प्रशांत किशोर दोनों को खासा समर्थन मिल रहा है.
जन सुराज का प्रभाव
प्रशांत किशोर का दावा है कि जद(यू) 25 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी. उनकी पार्टी 11-12% तक वोट ले सकती है, जो एनडीए और एमजीबी दोनों का खेल बिगाड़ सकती है.खासकर शहरी क्षेत्रों और पढ़े-लिखे युवाओं में उनकी अपील बढ़ रही है.
कुल मिलाकर, सत्ता परिवर्तन की संभावना 40-50% के बीच मानी जा रही है. हालांकि, अभी एनडीए की जीत की संभावना ज्यादा मजबूत लगती है.
अगर सत्ता एनडीए के पास रहती है
अगर नीतीश-मोदी गठबंधन फिर से सत्ता में आता है, तो विकास आधारित राजनीति पर और जोर होगा.
आर्थिक असर: इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (सड़क, बिजली, पुल) में निवेश बढ़ेगा.जीडीपी ग्रोथ दर में सुधार दिख सकता है.
राजनीतिक असर: भाजपा का प्रभाव जद(यू) पर और ज्यादा हावी होगा, जिससे राज्य में राष्ट्रीय एजेंडा (हिंदुत्व और मोदी फैक्टर) मजबूत होगा.
सामाजिक असर: ऊपरी जातियों और कुछ पिछड़ी जातियों का समर्थन बना रहेगा, लेकिन यादव-मुस्लिम समुदाय में असंतोष गहरा सकता है. बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याएं चुनौती बनी रहेंगी.
अगर महागठबंधन सत्ता में आता है
तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन सकते हैं और उनका फोकस रोजगार व सामाजिक न्याय पर होगा.
आर्थिक असर: सरकारी नौकरियों और योजनाओं पर जोर दिया जाएगा. 2020 में किए गए “10 लाख रोजगार” के वादे को दोहराया जा सकता है.
सामाजिक असर: पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समाज में राजनीतिक सशक्तिकरण बढ़ेगा, लेकिन ऊपरी जातियों की दूरी बढ़ सकती है.
राजनीतिक असर: युवा नेतृत्व का उदय होगा, लेकिन लालू परिवार की आंतरिक कलह सरकार की स्थिरता पर असर डाल सकती है.
जन सुराज की संभावित भूमिका
यदि जन सुराज पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह बिहार की राजनीति में लंबे समय के लिए बदलाव की नींव रख सकता है. जाति-मुक्त राजनीति का नारा सफल हुआ तो आने वाले वर्षों में यह पार्टी किंगमेकर या तीसरे ध्रुव की भूमिका में आ सकती है.
राष्ट्रीय राजनीति पर असर
बिहार के चुनावी नतीजे दिल्ली की राजनीति को भी प्रभावित करेंगे.
एनडीए की जीत प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को और मजबूती देगी.
वहीं, महागठबंधन की जीत विपक्षी खेमे को नई ऊर्जा दे सकती है, खासकर 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए.
निष्कर्ष
बिहार चुनाव 2025 एक बार फिर विकास बनाम सामाजिक न्याय की लड़ाई बनने जा रहा है. ओपिनियन पोल्स और राजनीतिक माहौल देखकर कहा जा सकता है कि एनडीए की जीत ज्यादा संभावित है, लेकिन तेजस्वी यादव की रणनीति और प्रशांत किशोर का फैक्टर खेल पलट भी सकता है.
इस बार बिहार की जनता यह तय करेगी कि वे स्थिर विकास की ओर बढ़ना चाहती है या रोजगार और सामाजिक न्याय के नए वादों को मौका देना चाहती है.नतीजा चाहे जो भी हो, यह चुनाव न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए ऐतिहासिक साबित होगा.

मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.