चुनावी चक्रव्यूह: कौन तोड़ेगा बिहार का तिलिस्म?

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Ajit Kumar

बिहारतीसरा पक्ष आलेख

बिहार का सियासी रण, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कौन मारेगा बाजी?

तीसरा पक्ष डेस्क :बिहार का सियासी रण: 2025 में कौन मारेगा बाजी? बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA, महागठबंधन और जन सुराज के बीच कांटे की टक्कर. जातिगत समीकरण, रोजगार, और पलायन जैसे मुद्दे तय करेंगे बिहार का भविष्य. ताजा अपडेट और विश्लेषण पढ़ें.

परिचय: बिहार की सियासी चक्रव्यूह

बिहार के राजनीति को अक्सर एक चक्रव्यूह के रूप में देखा जाता है, जहां जातिगत की समीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव, और सामाजिक-आर्थिक इन सभी मुद्दे मिलकर एक जटिल सियासी ताना-बाना बुनता हैं. 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये एक नई कहानी लिखने की ओर अग्रसर हैं.नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड), लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), और अब प्रशांत किशोर के जन सुराज पार्टी जैसे नए खिलाड़ी इस चुनावी रण में अपनी ताकत आजमा रहे हैं. अब सवाल यह है कि इस बार बिहार का तिलिस्म कौन तोड़ेगा?

बिहार की सियासी पृष्ठभूमि

बिहार के राजनीति में जातिगत वोट बैंक का समीकरण हमेशा से निर्णायक रहा हैं. पिछले साल जारी किये गए जातीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी करीब 63% है, जबकि दलित समुदाय 19% और सवर्ण 15% के आसपास हैं.कायस्थ, जो पटना साहिब जैसे क्षेत्रों में काफी प्रभावशाली हैं, केवल 0.6% हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव बड़ा अहम है.

पिछले विधानसभा के चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने 125 सीट जीतकर सरकार बनाया था.जबकि महागठबंधन को 110 सीट मिला था इस बार, प्रशांत किशोर के जन सुराज पार्टी ने बिहार के सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना दिखाई दे रहा है.

बिहार के प्रमुख मुद्दे: रोजगार, पलायन, और विकास की बात

रोजगार और पलायन

बिहार में रोजगार और पलायन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दे बनकर उभरा हैं. तेजस्वी यादव ने रोजगार को महागठबंधन का मुख्य एजेंडा बनाया हुआ है, और कांग्रेस के कन्हैया कुमार भी इस मुद्दे पर काफी मुखर हैं. तेजस्वी यादव का दावा है कि उनकी सरकार ने 17 महीनों के शासन काल में 5 लाख नौकरियां लोगो को दिया गया है और वे 10 लाख और नौकरियां देने का वादा भी कर रहे हैं.

दूसरी तरफ नीतीश कुमार के सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में प्रगति का दावा कर रहा है. बिहार नीति निर्माताओं के लिए AI-संचालित निर्णय समर्थन प्रणाली को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है,जिसको प्रशासनिक सुधार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.

जातिगत समीकरण

    बिहार के राजनीति का आधार मुख्य रूप से जातिगत समीकरण हैं.राजद का पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम-यादव (MY) गठजोड़ रहा है, लेकिन इस बार बीजेपी और जेडीयू इस समीकरण को तोड़ने के लिये कोशिश में लगे हुये है. बीजेपी ने प्रवासी बिहारियों को मतदान करने के लिए वापस बुलाने की रणनीति बनाया है. जिससे सवर्ण और OBC समाज के वोटों को मजबूत करने की उम्मीद लग रही है.

    विकास और उनके बुनियादी ढांचा

      नीतीश कुमार की सरकार ने सड़क, बिजली, और जलापूर्ति जैसे क्षेत्रों में सुधार होने का दावा करता है.लेकिन विपक्ष का कहना है कि बिहार में बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा अभी भी हावी हैं. पटना का डाक बंग्ला चौराहा, जो आर्थिक और राजनीतिक गतिविधिया का केंद्र है वह अक्सर ही प्रदर्शनों का गवाह बनता रहता है.

      प्रमुख खिलाड़ी और उनके रणनीति

      एनडीए: नीतीश और बीजेपी का गठजोड़

        नीतीश कुमार और बीजेपी का गठबंधन वाली पार्टी 225 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. बीजेपी के प्रवक्ता का कहना है कि एनडीए की एकता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. हालांकि, कुछ एक्स पोस्ट्स नेदावा किया गया है कि एनडीए बिच में दरार पड़ सकता है, और नीतीश बीजेपी से समर्थन वापस ले सकता हैं.लेकिन यह दावे अभी पुष्ट नहीं हैं.

        महागठबंधन: तेजस्वी और कांग्रेस

          महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, और वाम दल के साथ और भी अन्य दल शामिल हैं. तेजस्वी यादव रोजगार और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अधिक जोर दे रहा हैं. कांग्रेस 65 से 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रहा है, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है.स्पस्ट तौर पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है इस विषय पर.

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          जन सुराज: प्रशांत किशोर का नया प्रयोग

            प्रशांत किशोर के जन सुराज पार्टी ने बिहार के राजनीति में नया रंग जोड़ दिया है.इस पार्टी ने भी बिहार में 130-135 सीटें जीतने का दावा कर रहा है. प्रशांत किशोर की रणनीति युवा वोटरों और बदलाव की चाह रखने वाले वोटरों अथवा मतदाताओं को आकर्षित करने अधिक से अधिक कोशिश रह रहा है.

            अन्य दल: ओवैसी और छोटे क्षेत्रीय दल

              एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल, मिथिलांचल, और सारण जैसे क्षेत्रों में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे हुये है. उनकी रणनीति मुस्लिम वोटों को गोलबंद करने का है जो महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकता है.

              दिल्ली चुनाव का प्रभाव

              दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी के जीत ने बिहार के सियासत में नई हलचल पैदा किया है.प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली की जीत के बाद बिहार का जिक्र किया, जिससे एनडीए को मनोवैज्ञानिक बढ़त भी कुछ मिला है. हालांकि, राजद का कहना है कि दिल्ली और बिहार के सियासत में बहुत बड़ा अंतर है, और महागठबंधन की एकता उनकी ताकत है.

              निष्कर्ष: बिहार का भविष्य

              बिहार विधानसभा चुनाव 2025 न केवल एक सियासी जंग है, बल्कि यह राज्य के भविष्य को तय करने वाला महत्वपूर्ण क्षण भी है. रोजगार, शिक्षा, और विकास जैसे प्रमुख मुद्दे मतदाताओं के मन में हैं, और जातिगत की समीकरण अब भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे. एनडीए के अनुभवी रणनीति, महागठबंधन की आक्रामकता, और जन सुराज की नई ऊर्जा इस चक्रव्यूह को और भी रोचक बना दिया है.

              अब सवाल है की,क्या नीतीश कुमार एक बार फिर तिलिस्म तोड़ पाएंगे? क्या तेजस्वी यादव युवा जोश के दम पर सत्ता हासिल कर पाएंगे ? या फिर प्रशांत किशोर के जन सुराज बिहार के सियासत में नया इतिहास रचेगा ? इसका जवाब 2025 के चुनावी नतीजों में छिपा हुआ है.

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