राजधानी की सड़कों पर खून और सुशासन की सरकार पर उठते सवाल ?
तीसरा पक्ष डेस्क,पटना: राजधानी पटना की सड़कों पर इन दिनों गोलियों की गूंज, खून के धब्बे और चीखते परिवारों की तस्वीरें आम होती जा रही हैं. एक और हत्या — इस बार चर्चित व्यापारी श्री गोपाल खेमका — और एक बार फिर वही पुराना सवाल:
“कहां है प्रशासन? कहां है वो सुशासन जिसकी दुहाई वर्षों से दी जाती रही है?”
अपराधियों के हौसले बुलंद, सरकार मौन, पुलिस लाचार!
गोपाल खेमका की हत्या कोई ‘आपसी रंजिश’ नहीं, बल्कि बिहार की बिगड़ती क़ानून व्यवस्था का ऐसा सबूत है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. जब राजधानी की गलियों में व्यापारी मारे जा रहे हों और हत्यारे आराम से फरार हो जाएं, तो यह कोई सामान्य आपराधिक घटना नहीं, बल्कि राज्य की सुरक्षा प्रणाली का विफलता है.
क्या यही है ‘सुशासन बाबू’ की विरासत?

नीतीश कुमार ने अपने लंबे राजनीतिक कार्यकाल में ‘सुशासन’ को अपनी सबसे बड़ी पहचान बताया. लेकिन पटना में हत्याएं अब ‘न्यू नॉर्मल’ या सामान्य सी घटना बनती जा रही हैं।
सवाल यह है:
- जब राजधानी असुरक्षित है तो बाकी बिहार का क्या हाल होगा?
- क्या अब अपराधियों को यह भरोसा हो चला है कि वे किसी को भी मार सकते हैं और पकड़ में नहीं आएंगे?
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चुप है सरकार, सहमी है जनता
पिछले 6 महीनों में पटना और आसपास के इलाकों में व्यापारियों, प्रोफेशनल्स और आम नागरिकों की हत्या की दर्जनों घटनाएं सामने आई हैं. लेकिन हर बार सरकार के पास वही घिसा-पिटा बयान होता है — “जांच जारी है. अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे.”
जांच कितनी जारी है, यह खेमका परिवार की आँखें बता रही हैं, जिनमें इंसाफ की कोई किरण अब तक नहीं पहुंची.
सियासत गरम, नतीजा ठंडा

तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, पप्पू यादव समेत तमाम नेता खेमका परिवार से मिलने पहुंचे। संवेदना जताई, प्रशासन पर हमला बोला, लेकिन…क्या किसी के पास इसका जवाब है कि आख़िर सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है?
तेजस्वी यादव का तीखा सवाल:“जब राजधानी में ऐसी हत्याएं हो रही हैं, तब क्या मुख्यमंत्री अब भी आंकड़ों से खेलते रहेंगे?”
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अब जरूरी है सीधा एक्शन, दिखावटी आश्वासन नहीं
बिहार की जनता थक चुकी है – बयानों से, वादों से और इंतज़ार से. अब लोगों को चाहिए:
- त्वरित गिरफ्तारी.
- न्यायिक प्रक्रिया में तेजी.
- अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई (यहां तक कि एनकाउंटर पर भी खुली बहस).
- राजधानी और अन्य शहरी क्षेत्रों में सुरक्षा का विशेष बंदोबस्त.
निष्कर्ष:
गोपाल खेमका की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की जान जाने की खबर नहीं है, यह एक व्यवस्था की नाकामी और प्रशासन की निष्क्रियता की तस्वीर है.
अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो आने वाले समय में पटना ‘राजधानी’ नहीं, बल्कि ‘अपराधधानी’ के नाम से पहचाना जाएगा.
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