बिहार चुनाव से पहले हिंसा और हत्या पर गरमाई सियासत

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Ajit Kumar

बिहारभारत
बिहार चुनाव से पहले हिंसा और हत्या पर गरमाई सियासत

मायावती ने चुनाव आयोग से की सख़्त कार्रवाई की मांग

तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ 7 जुलाई :बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में बढ़ती हिंसक घटनाओं ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है. हाल ही में राजधानी पटना में भाजपा से जुड़े उद्योगपति और नेता गोपाल खेमका की सनसनीखेज़ हत्या के बाद कानून-व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठने लगे हैं.बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए चुनाव आयोग से समय रहते सख्त कदम उठाने की अपील किया है.

मायावती का बड़ा बयान,चुनाव से पहले हिंसा लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत

मायावती ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने आधिकारिक हैंडल से लिखा कि बिहार में दलितों, अति-पिछड़ों, शोषितों, गरीबों और खासकर महिलाओं पर अत्याचार और उनका हक़ छीनने की घटनाएं लगातार सुर्खियों में रही हैं. लेकिन अब चुनाव से पहले हिंसा और हत्या की घटनाएं जिस तरह सामने आ रही हैं, वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं.

उन्होंने कहा कि भाजपा के ही एक नेता की हत्या राजधानी में होना यह दर्शाता है कि राज्य में कानून व्यवस्था की हालत कितना गंभीर है.बीएसपी सुप्रीमो ने चुनाव आयोग से अपील किया है कि वह समय रहते संज्ञान ले और निष्पक्ष व शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए.

बीएसपी अकेले लड़ेगी चुनाव

मायावती ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी दलितों, पिछड़ों, गरीबों और श्रमिकों की आवाज है और वह बिहार में अकेले अपने बूते पर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने आशंका जताई कि सत्ताधारी दल चुनावी लाभ के लिए सरकारी मशीनरी, धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसे रोकना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है.

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बसपा प्रमुख ने चुनाव आयोग से अपील करते हुए कहा कि बिहार में विधानसभा चुनाव को निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और अपराधमुक्त बनाने के लिए आयोग को अभी से ही सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए.बाहुबल, धनबल और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग को रोकना जरूरी है.

क्या चुनावी समीकरणों पर पड़ेगा असर?

बिहार में इस वक्त मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का काम चल रहा है, और ऐसे समय में हिंसा की घटनाएं कई सवाल खड़े कर रही हैं

  • क्या यह सब किसी राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है?
  • क्या राज्य सरकार पर इन घटनाओं को रोकने में नाकामी का ठप्पा लगेगा?
  • और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे वोटर टर्नआउट और चुनावी नतीजों पर असर पड़ेगा?
  • ये सवाल अभी अनुत्तरित हैं लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे, तस्वीर और भी साफ़ हो सकती है.

बिहार में इस समय मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है और ऐसे में बढ़ती हिंसा को लेकर सवाल उठने लाज़िमी हैं कि आखिर इन घटनाओं के पीछे किसका हित छुपा है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन घटनाओं का असर आने वाले चुनावी समीकरणों पर भी देखने को मिल सकता है.

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