भाजपा की बेचैनी: वोटर अधिकार यात्रा की ऐतिहासिक सफलता से!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,29 अगस्त 2025 — बिहार की राजनीति में बदलाव की आहट तेज़ हो गई है. सड़कों पर जनसैलाब, नारों की गूंज, और आंखों में लोकतंत्र के लिए एक नई चमक — यह सब कुछ लेकर आई है भाकपा (माले) की ऐतिहासिक,वोटर अधिकार यात्रा.जिस तरह से आम लोगों खासकर युवाओं का समर्थन इस यात्रा को मिला है.उसने न सिर्फ भाजपा बल्कि पूरे एनडीए को बैकफुट पर धकेल दिया है!

यह कोई सामान्य रैली नहीं, यह लोकतंत्र की आत्मा को जगाने वाला जनांदोलन बन चुका है — और यही कारण है कि सत्ता पक्ष अब बौखलाहट में झूठ और अफवाहों का सहारा लेने पर उतर आया है!
भीड़ नहीं थी, बगावत थी: सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब सत्ता के खिलाफ जनमत बन गया
भाजपा ने भले ही कोशिश की हो कि इस यात्रा को एक ,सामान्य घटना दिखाया जाए, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है. बिहार के कई जिलों में जब यह यात्रा पहुंची. तो स्थानीय जनता, युवाओं, छात्र संगठनों और ग्रामीणों ने जिस उत्साह से स्वागत किया. उसने यह साफ कर दिया कि जनता अब केवल दर्शक नहीं, बदलाव की वाहक बन चुकी है.
यह भीड़ नहीं थी, यह एक बगावत का सैलाब था — व्यवस्था से, बेरोजगारी से, वोट खरीदने की राजनीति से और झूठे वादों से!
भाजपा की स्क्रिप्टेड साजिशें: अफवाहें फैलाकर दबाने की नाकाम कोशिश
भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा ने साफ तौर पर भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह यात्रा की सफलता से बौखला गई है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने दरभंगा में यह झूठ फैलाया कि महागठबंधन के नेताओं ने कोई आपत्तिजनक बयान दिया — जबकि हकीकत यह है कि वहां कोई सभा या प्रेस कांफ्रेंस हुआ ही नहीं.
यह एक पूर्व-नियोजित साजिश थी, जिसमें भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को खिला-पिलाकर पहले से मौजूद करवाती है और फिर नकली विरोध का नाटक खड़ा करती है.
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नौजवानों की हुंकार: अब चुप नहीं रहेंगे
इस यात्रा की सबसे बड़ी ताकत हैं बिहार के नौजवान. बेरोजगारी, शिक्षा की दुर्दशा, और पलायन से त्रस्त युवाओं ने अब अपने अधिकारों की लड़ाई खुद अपने हाथों में लेने का फैसला कर लिया है.
यात्रा के दौरान कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और ग्रामीण अंचलों में जिस तरह का युवा जुड़ाव देखा गया है. वह साफ संकेत है कि अगला चुनाव सिर्फ जाति समीकरणों पर नहीं, जन मुद्दों और अधिकारों पर लड़ा जाएगा.
सियासी भाषा की गिरावट: बौखलाहट में भाजपा नेताओं की मर्यादाएं टूटीं
धीरेंद्र झा ने इस बात पर चिंता जताई कि भाजपा नेता अब न संसदीय भाषा में बात कर रहे हैं, न सामाजिक शिष्टाचार की कोई सीमा बची है.यात्रा को बदनाम करने के लिए जिस प्रकार के बयान दिए जा रहे हैं. इस तरह का बयानबाजी यह दर्शाता हैं कि सत्ताधारी पार्टी अब राजनीतिक धरातल खो चुका है.
भाषा की गिरावट यह साबित करती है कि यात्रा की गूंज सत्ता के गलियारों तक पहुंच चुकी है — और असर इतना गहरा है कि शालीनता भी त्याग दी गई.
यह सिर्फ यात्रा नहीं, लोकतंत्र की नई लड़ाई है
वोटर अधिकार यात्रा एक राजनीतिक रणनीति से कहीं ज्यादा है. यह जनता को याद दिलाने की कोशिश है कि वोट सिर्फ एक बटन नहीं, बदलाव की चाबी है.इस यात्रा ने गांवों की चौपालों से लेकर शहरों की गलियों तक लोकतांत्रिक चेतना की चिंगारी फैला दी है.
यह उस पीढ़ी की आवाज़ है जो अब अपने अधिकारों से समझौता नहीं करेगी.जो पूछेगी कि ,वोट मांगने आए हो, जवाब देने कब आओगे?
निष्कर्ष: जवाब तो देना पड़ेगा
भाजपा और राज्य सरकार के पास अब विकल्प कम हैं. या तो वे जनता के सवालों का जवाब दें. या फिर लोकतंत्र के इस नए आंदोलन के सामने घुटने टेकें. वोटर अधिकार यात्रा अब थमने वाली नहीं, यह सत्ता की दीवारों में दरार डाल चुकी है.
और जब जनता उठ खड़ी होती है, तो तख्त पलटना केवल समय की बात होती है.

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