मतदाता सूची या नागरिकता जांच? बिहार में लोकतंत्र पर संकट?

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kmSudha

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मतदाता सूची या नागरिकता जांच? बिहार में लोकतंत्र पर संकट?

9 जुलाई को चक्का जाम लोकतंत्र बचाने सड़कों पर उतरेगी माले

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,7 जुलाई:बिहार की सियासी सरजमीं पर इन दिनों एक नया चुनावी विवाद गहराता जा रहा है.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना में आयोजित एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य में चल रही विशेष मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अभूतपूर्व और खतरनाक कदम करार दिया है.

उन्होंने कहा कि बिहार में जो हो रहा है, वह पहले कभी किसी राज्य में नहीं देखा गया.यह संविधान और नागरिक अधिकारों पर सीधा हमला है.भट्टाचार्य के अनुसार यह प्रक्रिया न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि करोड़ों लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने का रास्ता भी बन रही है.जो असंवैधानिक है.

क्या है मुद्दा?

चुनाव आयोग द्वारा चलाई जा रही यह एसआईआर (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया अब मतदाता सूची के नाम पर नागरिकता की जांच में बदल चूका है. माले का आरोप है कि 2003 के बाद बने सभी मतदाता आयोग की नजर में संदिग्ध हैं. यहां तक कि 2003 से पहले मतदाता बने लोग भी अब सुरक्षित नहीं हैं.उन्हें भी नए सिरे से फॉर्म भरने के निर्देश दिए जा रहे हैं. ज़रा सी गलती होने पर नाम काटा जा सकता है.

भट्टाचार्य ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग अब स्वतंत्र नहीं रहा. उन्होंने कहा की जिस तरह भाजपा सरकार ने नया कानून बनाकर आयोग के चयन की प्रक्रिया को पूरी तरह पक्षपाती बना दिया, उसने आयोग की निष्पक्षता पर गहरा प्रश्नचिह्न लगा दिया है.

एनआरसी का दोहराव?

प्रेस कॉन्फ्रेंस में भट्टाचार्य ने असम के एनआरसी मॉडल का हवाला देते हुए चेतावनी दिया कि बिहार में भी वैसा ही परिदृश्य बन रहा है. असम में लाखों लोगों को डी-वोटर घोषित किया गया, डिटेंशन कैंप भेजा गया और फिर नागरिकता साबित करने की लंबी लड़ाई में झोंक दिया गया. अब वही खतरा बिहार पर भी मंडरा रहा है.उन्होंने दावा किया कि राज्य के लगभग 8 करोड़ मतदाताओं में से 5 से 5.5 करोड़ लोग इस प्रक्रिया की चपेट में आ सकते हैं.

प्रवासी मजदूरों और गरीब तबकों पर चोट?

भाकपा (माले) ने विशेष तौर पर प्रवासी मजदूरों की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर किया है बिहार के लाखों मजदूर दूसरे राज्यों में काम करते हैं. आयोग का नजरिया यह बनता जा रहा है कि जो लोग राज्य में मौजूद नहीं हैं, वे वोट देने योग्य नहीं हैं.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा बहनों, मिड-डे मील कर्मचारियों और बटाईदार किसानों के नाम पहचान पत्र की अनुपलब्धता के कारण सूची से हटाए जा रहे हैं. भट्टाचार्य ने कहा कि यह सरकार की विफलता है कि उसने समय रहते इन्हें पहचान दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए.

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लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर हमला?

प्रेस कॉन्फ्रेंस में भट्टाचार्य ने दो टूक कहा कि अब मतदाता बनने से पहले नागरिकता साबित करनी पड़ रही है. यह सार्वभौमिक मताधिकार पर सीधा हमला है.
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर यह प्रक्रिया संवैधानिक है, तो क्या 70 साल से जो चुनाव हो रहे थे क्या वे संविधान के खिलाफ थे?

आंदोलन की घोषणा: 9 जुलाई को चक्का जाम

भाकपा (माले) और इंडिया गठबंधन ने घोषणा की है कि 9 जुलाई 2025 को बिहार भर में चक्का जाम किया जाएगा और पटना में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय का घेराव होगा.माले के राज्य सचिव का. कुणाल ने बताया कि यह आंदोलन आम जनता के अधिकारों से जुड़ा है, और हर नागरिक को इसके समर्थन में सड़क पर उतरना चाहिए.इस आंदोलन को ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, एमएलसी शशि यादव और वरिष्ठ नेता का. केडी यादव का भी समर्थन मिला है.

मुख्य मांगें

एसआईआर प्रक्रिया को तत्काल रद्द किया जाए.

पूर्ववर्ती मतदाता सूची को ही आगामी चुनावों के लिए आधार बनाया जाए.

यह मामला केवल तकनीकी या प्रशासनिक नहीं है यह लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की बुनियाद को छू रहा है. आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि चुनाव आयोग, केंद्र सरकार और जनता की भूमिका इस संघर्ष में किस दिशा में जाती है.

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