03 जनवरी को भागलपुर में माता सावित्रीबाई फुले की जयंती राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस के रूप में मनाई गई

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kmSudha

बिहार

मुख्य अतिथि डॉ.विलक्षण रविदास, अध्यक्षता-गौतम कुमार प्रीतम सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार)☎️9162064070

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03 जनवरी माता सावित्रीबाई फुले की जयंती को भागलपुर के खरीक प्रखंड के आदर्श विद्यालय,नवादा में राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस के बतौर मनाया गया.इस मौके पर विभिन्न विधाओं में आयोजित प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया.अंत में मुख्य अतिथि डॉ.विलक्षण रविदास ने बेहतर प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया.पुरस्कार में बहुजन नायक-नायिकों की जीवन से जुड़ी पुस्तकें भी दी गयी.
इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार) के गौतम कुमार प्रीतम ने कहा कि सावित्रीबाई फुले- महात्मा जोतीबा फुले ने मिलकर भारत का पहला महिला विद्यालय 1 जनवरी 1848 ई0 को पूणे के भीड़बाडा में खोलने का काम किया.सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने समाज के हर हिस्से के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलने के पहल किया,लड़ाई लड़ी.सावित्रीबाई फुले पहली महिला शिक्षिका थीं.इसलिए सावित्रीबाई फुले के जन्म दिन को राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस के रूप में हम मनाने की शुरुआत कर रहे हैं.

मुख्य अतिथि डॉ.विलक्षण रविदास ने बेहतर प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया

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इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ.विलक्षण रविदास ने कहा कि हिंदू धर्म,ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था और परंपरा में शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं को सभी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था.आधुनिक भारत में पहली बार जिस महिला ने इसे चुनौती दिया, उनका नाम सावित्रीबाई फुले है.उन्होंने अपने कर्म और विचारों से वर्ण-जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को एक साथ चुनौती दी.

उन्होंने कहा कि आज के इस आधुनिक भारत में सावित्रीबाई फुले के कार्य और विचार की रोशनी में आगे बढ़ने की नितांत आवश्यकता है. इसलिए हमें इनके जन्म दिन को राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस समारोह पूर्वक मनाने की जरूरत है ताकि हम प्रेरणा और ऊर्जा लेकर बदलाव का कारवां आगे बढ़ा सकें.

सामाजिक न्याय आंदोलन(बिहार) के रिंकु यादव ने कहा कि सावित्रीबाई फुले को पढ़ने-पढ़ाने और स्कूल खोलने-चलाने के लिए लड़ना पड़ा था.उन्होंने सबके लिए शिक्षा की लड़ाई की बुनियाद रखी थी.आज हमारी सरकारें स्कूल बंद कर रही है,सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर शिक्षा को व्यापार की वस्तु बना रही है.दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के लिए शिक्षा हासिल करने का रास्ता बंद किया जा रहा है.सावित्रीबाई फुले के वारिसों को बेहतर शिक्षा हासिल करने और सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बचाने के लिए लड़ना होगा.
वक्ताओं के बतौर आदर्श सर्वोदय विद्या मंदिर के निदेशक राजेश कुमार रवि, शिक्षिका सलिता कुमारी, नीभा कुमारी, कवि अरूण अंजाना, बिहार फुले-अंबेडकर मंच के अखिलेश रमण, नसीब रविदास, शिक्षक सुनील कुमार गुप्ता, संतोष कुमार, अमरजीत कुमार, लालमुनी कुमार, रौशन कुमार थे।
मौके पर सत्यप्रकाश कुमार, मुकेश कुमार थे वहीं छात्रा रिंकु कुमारी, प्रेरणा कुमारी ने बेहतर गीत व भाषण दी। कृष्णा कुमार, गुलशन, नीरज, मिथुन सहित सैकड़ो छात्र-नौजवान मौजूद थे।

आगे पढ़िए राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले की जयंती पर डॉ.विलक्षण रविदास जी का विशेष आलेख

आज दिनांक 03 जनवरी,2023 ई को आधुनिक भारत में महिलाओं की शिक्षा की ऐतिहासिक नींव रखने वाली, प्रथम छात्रा और शिक्षिका,ऊंच-नीच, छुआछूत एवं लिंग विभेद के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करने वाली अदम्य योद्धा, समाज सुधार की महानायिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती है। इस शुभ अवसर पर सभी नागरिकों, बहुजन समाज के सभी छात्र -युवाओं, महिलाओं, सामाजिक- सांस्कृतिक संगठनों के साथियों और प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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03 जनवरी,1831ई में उनका जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में खंडाला तहसील के नायगांव निवासी खंडोजी नेवसे पाटिल की ज्येष्ठ पुत्री के रूप में हुई थी।1840 ई में केवल 9 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई की शादी तेरह वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ कर दी गई थी। ज्योतिबा फुले और बुआ सगुणाबाई क्षीरसागर के प्रयास से उनकी शिक्षा हुई।
01जनवरी,1848ई में ज्योतिबा फुले ने आधुनिक भारत में प्रथम कन्या विद्यालय की स्थापना की थीं जिसमें प्रथम छात्रा के रूप में सावित्रीबाई फुले का नामांकन कराया गया था। बहुत ही कम समय में ही दिन- रात मेहनत कर सावित्रीबाई फुले ने शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त कर आधुनिक भारत की प्रथम शिक्षिका बनीं । वे केवल पांच वर्षों में ही तीन कन्या विद्यालयों को संचालित करती रहीं। उस काम में उनका सक्रिय सहयोग उस्मान शेख़ की बहन फातिमा शेख कर रही थीं। बहुजन समाज और महिला शिक्षा के लिए समर्पित त्याग की प्रतिमूर्ति फातिमा शेख भी प्रथम मुस्लिम समाज की शिक्षिका बनीं।इन्हीं दोनों महान शिक्षिकाओं के कारण भारत में सभी जातियों और धर्मों की महिलाओं की शिक्षा की नींव रखी गई थीं।ब्राह्मणवादी लोगों के द्वारा विद्यालय जाते और वापस आते समय उन पर कीचड़, गोबर,धूल आदि फेंका जाता था और अपशब्द कहा जाता था। उन तमाम कठिनाइयों,अपमानों एवं दुखों को सहते हुए उन्होंने नये आधुनिक भारत की आधारशिला रखी थीं।
राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले एवं माता सावित्रीबाई फुले ने सवर्ण गर्भवती विधवा नारियों की जिंदगी बचाने के लिए और उनके बच्चों को जीवन देने के लिए बाल हत्या प्रतिषेध (रक्षा) गृह की स्थापना की थीं।उसकी पूरी जिम्मेदारी तथा देखभाल राष्ट्रमाता के कंधे पर ही थीं। उस जिम्मेदारी का निर्वहन उन्होंने आजीवन की थीं।
सावित्रीबाई फुले ने राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के सामाजिक- सांस्कृतिक क्रांति में प्रत्येक स्तर पर कदम से कदम मिलाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायीं। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने मूलनिवासी बहुजन समाज में फैले ब्राह्मणवादी विचारों और धार्मिक कर्मकांडों को खत्म करने के लिए 1873ई “सत्यशोधक समाज” नामक संगठन की नींव डाली थीं तो राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने उसे आगे बढ़ाने में 1890ई तक लगातार सक्रिय भूमिका निभाई थीं।
1890 ई में राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के परिनिर्वाण के बाद 1891से 1897 ई तक सत्यशोधक समाज को नेतृत्व राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले ने किया। 1897 ई में पुणे में हैजा और प्लेग की बीमारी फैली थीं जिसमें उन्होंने जी जान से लोगों की सेवा करने के कार्य किए। प्लेग के शिकार एक अछूत महार बच्चे को अपने कंधे पर रख कर चिकित्सा के लिए अपने पुत्र डॉ यशवंत राव के पास ले जाने के क्रम में ही 10मार्च 1897 को वे स्वयं प्लेग की शिकार हो गयीं और उनका सामाजिक सेवा में ही परिनिर्वाण हुआ।
राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले महान शिक्षाविद, महान मराठी कवित्री,महान समाज सुधारिका,दया, करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने आजीवन जातिविभेद, छुआछूत, लिंग विभेद, साम्प्रदायिक विभेद के विरुद्ध आन्दोलन को नेतृत्व दिया। भारत में समता, स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय की स्थापना के लिए उन्होंने मनुवादी- ब्राह्मणवादी व्यवस्था एवं धर्म -संस्कृति के खिलाफ शिक्षा का प्रसार- प्रचार करने एवं लगातार संघर्ष संचालित करने का आह्वान किया। इस सम्बन्ध में उन्होंने जगह जगह भाषण दिया और स्वयं कविताओं की रचना कर मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को शिक्षित होने का आह्वान किया। उनकी पुस्तक काव्य फुले 1854 ई में प्रकाशित हुई थी।
आइए,हम आधुनिक भारत की महान विदुषी, शिक्षाविद, राष्ट्रनिर्मात्री एवं मूलनिवासी बहुजन समाज की महानेत्री के प्रति उनकी जयंती के अवसर पर शत-शत नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें एवं उनके सपनों के भारत का निर्माण करें।
जय भीम। जय भारत।
विलक्षण रविदास
संरक्षक
बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन,बिहार

 

 

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