2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा सरकार पर कितना असर और कितना नुकसान होगा ?
तीसरा पक्ष ब्यूरो : नई संसद भवन के उद्घाटन के दिन जिस तरह से महिला पहलवानो के साथ दिल्ली पुलिस ने करवाई की उससे आपको क्या लगता है ? 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा सरकार पर इसका कितना असर पड़ेगा। खासकर हरियाणा ,राजस्थान और पश्चिमी यूपी में जहाँ कई विधान सभा और लोकसभा सीटों को जाट बहुल क्षेत्रों में गिना जाता है। आज हम उन तमाम सीटों पर वोट प्रतिशत और उनकी जनसँख्या के आधार पर सक्षिप्तं विश्लेषण करेंगे।
28 मई 2023 को जहाँ एक तरफ वैदिक मंत्रों और रीति रिवाजों से माननीय परधानमंत्री जी के द्वारा न्यू पार्लियामेंट का भव्य उद्घाटन हो रहा था, तो वहीँ दूसरी तरफ भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे। लुटियंस की दिल्ली की ये दो तस्वीरें हम सब ने देखी। एक तरफ जंतर-मंतर तो दूसरी तरफ पार्लियामेंट हाउस । जब देश के पहलवान हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों से गुजर रहे थे ठीक उसी वक्त नई संसद में पीएम मोदी के साथ कई तमाम बड़े नेता भी मौजूद थे।
*अब जब महिला पहलवानो के समर्थन में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत एवं खाप पंचायत की एंट्री हो चुकी है , तब सवाल उठता है कि आनेवाली लोकसभा और विधान चुनावों में इसका कैसा असर होगा। क्योकि फिलहाल अभी संसद में कुल 24 जाट सांसद मौजूद हैं।
*तो आइये सबसे पहले जान लेते है यूपी के आकड़े।
*तो यूपी में जाटों की कुल आबादी 6 से 8% बताई जाती है। पश्चिमी यूपी में लगभग 17% से ज्यादा जाट वोटर बताई जाती हैं जिसका यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर है. ये 18 लोकसभा सीट कौन सा है पहले ये जान लीजिए। इनमे .– सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी, और फिरोजाबाद शामिल हैं। इनमे टॉप 10 सीटें सीटें तो ऐसी है जहाँ जाट वोटर एकदम से निर्णायक मानी जाती हैं। जैसे की बागपत में 30 प्रतिशत तो . मेरठ में 26 प्रतिशत जाट वोटरों का दबदबा है. वैसे आपको बताना जरूरी है कि ये बीजेपी की परंपरागत सीट भी है। वहीँ सहारनपुर में 20 प्रतिशत तो मथुरा में 18 प्रतिशत जाट वोटर हैं। इसी तरह अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, आगरा, कैराना सीटों पर भी जाट वोटरों का दबदबा माना जाता है। दूसरी तरफ अगर उ पी में विधान सभा की बात करे तो विधानसभा की कुल 120 सीटों पर जाट वोट बैंक का खास असर है। फ़िलहाल विधानसभा में कुल 14 जाट विधायक हैं।
*अब दिल्ली से सटे पड़ोसी राज्य हरियाणा के बात करते हैं।
हरियाणा की बात प्रमुखता से करना इसलिए जरुरी है कि दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे अधिकतर पहलवान हरियाणा से आते हैं । कहा जाता है कि हरियाणा में 28 फीसदी जाट वोटर किसी का भी खेल बना और बिगाड़ सकते हैं। जी हाँ 28 प्रतिशत जिसपर हरियाणा में जाट समुदाय का बोलबाला माना जाता है। हरियाणा में 10 जिलों की 30 से 35 विधानसभा सीटें तो ऐसी है जिस पर जाट मतदाता पूरी तरह से निर्णायक माने जाते हैं.तो वहीँ छह लोकसभा सीटों पर जाट वोटर्स का दबदबा हैं जो इस प्रकार है । जैसे हरियाणा के रोहतक, सोनीपत, झज्जर, चरखी दादरी, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी को जाट बहुल माना जाता है।
*अब अंत में राजस्थान को जरा समझिये।
जी हाँ राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटों पर 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति का ही उम्मीदवार लगभग हरबार चुनाव जीतता है. राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर , बीकानेर, गंगानगर, चूरू, सीकर, नागौर , हनुमानगढ़ जयपुर सहित कई ऐसे जिले हैं जहाँ जाट जाति की बहुलता पाई जाती है। अगर ये जाट कैंडिडेट पहलवानों और जाटों का मुद्दा प्रमुखता से उठने में सफल रहे, तो राजस्थान के विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर दिखना तय लगता है । हालांकि अभी से कई नेताओं ने पहलवानों के मुद्दे को भुनाना शुरू भी कर दिया है। इसके अलावे राजस्थान के और भी कई क्षेत्र है जैसे शेखावटी ,जोधपुर अदि में जहाँ जाट समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
इसीलिए कहा जा रहा है कि आगे होने वाली विधान सभा और 2024 में लोकसभा का चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मुस्किलो का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि किसान आंदोलन की तरह पहलवान आंदोलन पर भी प्रधानमंत्री मोदी कोई दाव चल सकते हैं, जिसे गोदी मीडिया मास्टर स्ट्रोक बताएगी।
वैसे आपका क्या विचार है कमेंट बॉक्स में जरूर बताएगा। अगर यह विश्लेषण पसंद आए तो शेयर जरूर कर दीजियेगा। धन्यवाद।

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