मोदी और ट्रम्प की दोस्ती रेसिप्रोकल टैरिफ” से व्यापारिक चुनौतियों को कैसे पार पाएगी ?
तीसरा पक्ष डेस्क : नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत तालमेल और दोस्ती की बातें अक्सर सुर्खियों में रही हैं, लेकिन अप्रैल से ट्रम्प द्वारा भारत पर लगाए गए 26 % प्रतिशत रेसिप्रोकाल टैरिफ की वजह से व्यापारिक नीतियों और टैरिफ को लेकर दोनों देशों के हित अब टकराते दिखे रहे हैं. एक तरफ ट्रम्प टैरिफ तो दूसरी तरफ मोदी और ट्रम्प की दोस्ती इन दोनों नेताओं के बीच भारत और अमेरिका के संबंधों को आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.
मोदी और ट्रम्प की दोस्ती

नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच संबंध 2016 में ट्रम्प के पहले कार्यकाल से ही मधुर रहे हैं. 2019 में ह्यूस्टन में “हाउडी मोदी” और 2020 में अहमदाबाद में “नमस्ते ट्रंप” जैसे आयोजनों ने दोनों नेताओं की सार्वजनिक छवि को मजबूत किया. मोदी ने ट्रम्प को “मेरा दोस्त” कहकर संबोधित किया, और ट्रम्प ने भी मोदी को “महान नेता” और “स्मार्ट इंसान” जैसे शब्दों से नवाजा. यह दोस्ती कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर भारत-अमेरिका संबंधों को बढ़ाने में मददगार रही है, खासकर रक्षा, तकनीक और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में.हालांकि, यह दोस्ती हमेशा व्यापारिक नीतियों में परिलक्षित नहीं हुई. ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में भारत को “उच्च टैरिफ वाला देश” कहकर आलोचना की और इसे अपने “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे का हिस्सा बनाया. दूसरी ओर, मोदी ने भारत के हितों की रक्षा के लिए आत्मनिर्भरता और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर जोर दिया.
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ और ट्रेड वॉर की आहट
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रेसिप्रोकल टैरिफ” के जरिए पूरी दुनिया में एक वैश्विक व्यापार युद्ध की संभावना पैदा कर दी है ट्रम्प की इस निति से दुनिया के अनेक देश के साथ साथ भारत भी प्रभावित है. ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल की तरह दूसरे कार्यकाल (2025 में दोबारा सत्ता में आने के बाद) में टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है. ट्रम्प का मानना रहा है कि अमेरिका को अन्य देशों के साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए “रेसिप्रोकल टैरिफ” (पारस्परिक शुल्क) लगाना जरूरी है। भारत, जो अमेरिकी वस्तुओं पर कुछ क्षेत्रों में 100% से अधिक टैरिफ लगाता है (जैसे अमेरिकी शराब पर 150%), ट्रम्प के निशाने पर आ गया है.
उदाहरण के लिए, अप्रैल 2025 में ट्रम्प प्रशासन ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 26% टैरिफ लागू किया है जिसे उन्होंने “मुक्ति दिवस” करार दिया। यह कदम भारत के मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ. जवाब में, भारत ने भी कुछ अमेरिकी उत्पादों पर समान शुल्क लगाने की तैयारी कर सकती है , जिससे एक संभावित ट्रेड वॉर की आशंका बढ़ जाएगी. हालांकि, दोनों देश बातचीत और कूटनीति के जरिए तनाव कम करने की कोशिश में है। रेसिप्रोकल टैरिफ लगने के पहले फरवरी 2025 में मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान व्यापार को 2030 तक 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय किया गया, जो सकारात्मक संकेत था.
भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव
टैरिफ विवाद के बावजूद, भारत और अमेरिका के संबंध रणनीतिक रूप से मजबूत हुए हैं। ट्रम्प ने भारत को एफ-35 जैसे उन्नत सैन्य उपकरणों की पेशकश की, और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ा। भारत ने अमेरिका से तेल और गैस आयात को 25 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का वादा किया, जिससे व्यापारिक असंतुलन को कम करने में मदद मिली।हालांकि, “रेसिप्रोकल टैरिफ” (Reciprocal Tariff) जैसे व्यापारिक कदम इन संबंधों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव डाल सकते हैं.
सकारात्मक प्रभाव
- व्यापार संतुलन की कोशिश: अगर भारत अमेरिकी सामानों पर ऊंचे टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाना दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने की दिशा में एक कदम हो सकता है। इससे अमेरिका को लग सकता है कि भारत के साथ उसका व्यापार अधिक निष्पक्ष हो रहा है.
- घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन: भारत और अमेरिका दोनों अपने घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के लिए टैरिफ का इस्तेमाल करते हैं. रेसिप्रोकल टैरिफ से दोनों देशों की कंपनियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने में मदद मिल सकती है.
- रणनीतिक बातचीत का अवसर: टैरिफ नीतियों के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार समझौतों पर नई चर्चा शुरू हो सकती है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग बढ़ सकता है.
नकारात्मक प्रभाव
- निर्यात पर असर: भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा निर्यात बाजार है. अगर अमेरिका भारत पर 26% या उससे अधिक रेसिप्रोकल टैरिफ लगाता है, तो भारतीय वस्तुएं जैसे टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आभूषण और ऑटो पार्ट्स महंगे हो जाएंगे, जिससे निर्यात में कमी आ सकती है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है.
- आर्थिक तनाव: टैरिफ की जवाबी कार्रवाई से दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध की स्थिति बन सकती है, जो द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है. यह खास तौर पर तब संभव है जब भारत भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए.
- रणनीतिक साझेदारी पर सवाल: भारत-अमेरिका संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं; रक्षा, तकनीक और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग भी महत्वपूर्ण हैं। टैरिफ विवाद इन क्षेत्रों में विश्वास को प्रभावित कर सकता है, खासकर अगर अमेरिका भारत को “अविश्वसनीय” व्यापारिक साझेदार मानने लगे.
अब आगे क्या होगा ?
मोदी और ट्रम्प की दोस्ती निश्चित रूप से भारत-अमेरिका संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह पूरी तरह व्यक्तिगत नहीं, बल्कि रणनीतिक और व्यावहारिक है. दूसरी ओर, टैरिफ और ट्रेड वॉर ने भारत के छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) पर दबाव डाला. अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यात की लागत बढ़ने से प्रतिस्पर्धा प्रभावित हुई .टैरिफ और ट्रेड वॉर ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा किया, लेकिन बातचीत और सहयोग की मेज पर इसे सुलझाने की कोशिश जारी है. आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह दोस्ती व्यापारिक चुनौतियों को कैसे पार करती है और वैश्विक शांति व समृद्धि के लिए कितना योगदान देती है.

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