फिल्म समीक्षा: फूले (Phule, 2025) ,हंगामा क्यों है बरपा !

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kmSudha

तीसरा पक्ष आलेखकला-साहित्यभारत

फिल्म का मशहूर डायलॉग-अंग्रेजों की गुलामी तो सिर्फ सौ साल पुरानी है, मैं जिस गुलामी से लोगों को स्वतंत्र करना चाहता हूँ वो तीन हज़ार साल पुरानी है.

फिल्म फूले का तीसरा पक्ष

कहानी का सार:

“फूले” एक बायोपिक फिल्म है जो 19वीं सदी के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन और संघर्षों पर आधारित है. फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा क्रमशः ज्योतिबा और सावित्रीबाई की भूमिका निभा रहे हैं. यह फिल्म शिक्षा, जातीय भेदभाव, सामाजिक असमानता और महिला सशक्तीकरण जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करती है, जो 19वीं सदी में फुले दंपति द्वारा शुरू किए गए थे. फिल्म की कहानी के केंद्र में यही तमाम मुद्दे हैं. यह कहानी उनके द्वारा स्थापित पहले बालिका स्कूल, दलित और शोषित वर्गों के उत्थान, और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ उनकी लड़ाई को दर्शाती है.

समीक्षा:

“फूले” एक ऐसी फिल्म है जो न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह सामाजिक न्याय और समानता जैसे मुद्दों पर गहरी बात करती है. हालांकि, फिल्म की रिलीज को सेंसर बोर्ड द्वारा 16 कट्स के साथ स्थगित किया गया था, जिसके कारण यह 11 अप्रैल के बजाय 25 अप्रैल 2025 को रिलीज होगी। इस विवाद ने फिल्म को और अधिक चर्चा में ला दिया है.

निर्देशक: राज किशोर खवारे
कलाकार: प्रतीक गांधी, पत्रलेखा
शैली: बायोपिक ड्रामा
रिलीज तारीख: 25 अप्रैल 2025 (संशोधित)
रेटिंग: अभी उपलब्ध नहीं (समीक्षा रिलीज के आधार पर)

फिल्म फूले का 2 तीसरा पक्ष

सकारात्मक पहलू:

  • प्रदर्शन: प्रतीक गांधी, जो अपनी सूक्ष्म और प्रभावशाली अभिनय शैली के लिए जाने जाते हैं (“स्कैम 1992” फेम), ज्योतिबा फुले की भूमिका में गहराई लाते हैं. पत्रलेखा भी सावित्रीबाई के किरदार में मजबूत और प्रेरणादायक दिखती हैं. दोनों की केमिस्ट्री ट्रेलर में ही प्रभावित करती है.
  • विषय: फिल्म का विषय सामाजिक सुधार और शिक्षा पर केंद्रित है, जो दर्शकों को फुले दंपति के योगदान को समझने और प्रेरित होने का अवसर देता है.
  • निर्देशन: नेशनल अवॉर्ड विजेता राज किशोर खवारे का निर्देशन संवेदनशील और प्रभावी बताया जा रहा है, जो ऐतिहासिक घटनाओं को जीवंत करता है.
  • सामाजिक प्रभाव: फिल्म सामाजिक जागरूकता फैलाने और नई पीढ़ी को फुले दंपति के विचारों से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है.

नकारात्मक पहलू:

  • सेंसर विवाद: सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए 16 कट्स और रिलीज में देरी ने फिल्म की प्रामाणिकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हैं. कुछ आलोचकों का मानना है कि यह कट्स कहानी के प्रभाव को कम कर सकते हैं.
  • सीमित अपील: बायोपिक होने के कारण, यह फिल्म मुख्यधारा के मसाला सिनेमा के दर्शकों को कम आकर्षित कर सकती है.
  • समीक्षा की कमी: चूंकि फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है, इसलिए इसकी कहानी, गति, और तकनीकी पहलुओं (जैसे सिनेमैटोग्राफी, संगीत) पर ठोस टिप्पणी करना मुश्किल है.

विवाद:

फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा रोकने और कट्स लगाने का निर्णय विवादास्पद रहा है. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया और कहा कि यह फुले दंपति की विरासत को दबाने की कोशिश है. उन्होंने इसके खिलाफ 21 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन की घोषणा भी की.

क्यों देखें?

  • अगर आप ऐतिहासिक बायोपिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्में पसंद करते हैं, तो “फूले” आपके लिए एक प्रेरणादायक अनुभव हो सकता है.
  • प्रतीक गांधी और पत्रलेखा के शानदार अभिनय का आनंद लेने के लिए.
  • भारतीय समाज सुधार आंदोलन और फुले दंपति के योगदान को गहराई से समझने के लिए.

अंतिम विचार:

“फूले” एक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक कहानी है जो समाज सुधारकों के बलिदान और संघर्ष को पर्दे पर लाती है. हालांकि, सेंसर बोर्ड के हस्तक्षेप ने इसके रिलीज से पहले ही इसे विवादों में ला दिया है। फिर भी, ट्रेलर और प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर, यह फिल्म सामाजिक जागरूकता और प्रेरणा का एक मजबूत माध्यम बनने की क्षमता रखती है। रिलीज के बाद इसकी समीक्षा और दर्शकों की प्रतिक्रिया इसके प्रभाव को और स्पष्ट करेगी.

नोट: चूंकि फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है, यह समीक्षा ट्रेलर, उपलब्ध जानकारी, और प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित है। रिलीज के बाद विस्तृत समीक्षा के लिए बने रहें.


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