झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग: आदिवासी पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण का सवाल

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kmSudha

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झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग: आदिवासी पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण का सवाल

12 करोड़ आदिवासियों की अस्मिता और पहचान जुड़े यह मुद्दा NDA और INDIA गठबंधन के लिए कितना अहम् है?

तीसरा पक्ष डेस्क रांची, 26 मई 2025: झारखंड में सरना धर्म कोड-Sarna Dharam Code को जनगणना में शामिल करने की मांग ने एक बार फिर सामाजिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा को गरम कर दिया है. सरना धर्म, जो आदिवासी समुदायों का प्रकृति-आधारित पारंपरिक धर्म है, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में लाखों आदिवासियों की आस्था का केंद्र है. इस धर्म में पेड़, पहाड़, नदियाँ और अन्य प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती है. लेकिन भारत की जनगणना में सरना धर्म के लिए कोई अलग कोड न होने के कारण इसे “अन्य” श्रेणी में दर्ज किया जाता है, जिसे आदिवासी समुदाय अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला मानते हैं.

झारखंड कांग्रेस ने सरना धर्म कोड के लिए राजभवन के सामने दिया धरना

झारखंड कांग्रेस ने सरना धर्म कोड के लिए राजभवन के सामने दिया धरना

सोमवार, 26 मई 2025 को झारखंड कांग्रेस ने रांची में राजभवन के सामने सरना धर्म कोड को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल करने की मांग को लेकर धरना दिया. राज्य की कृषि, पशुपालन और सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने केंद्र सरकार, बीजेपी और आरएसएस की इस मुद्दे पर नीतियों की कड़ी आलोचना की. उन्होंने जोर देकर कहा कि सरना धर्म कोड को जाति जनगणना के सातवें कॉलम में हर हाल में शामिल करना होगा. आदिवासी समाज की मूल भावनाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि समानता, एकता, सामूहिकता और भाईचारा इस समाज की पहचान है, और आदिवासी समुदाय को अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने और अपनाने का अधिकार है. इस अवसर पर झारखंड कांग्रेस प्रभारी के. राजू सहित अन्य नेता मौजूद थे.

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मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने RSS पर साधा निशाना: आदिवासी समाज की विचारधारा मनुस्मृति से भिन्न

मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने आरएसएस पर तीखा हमला बोलते हुए मरांग गोमके के विचारों का जिक्र किया। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस उस संविधान को नहीं मानता क्योकि आरएसएस महिलाओं को उनके अधिकार देने के खिलाफ है.

तिर्की ने आगे कहा कि आदिवासी समाज की सोच मनुस्मृति के सिद्धांतों से मेल नहीं खाती. उन्होंने जोर देकर कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि आदिवासी समाज में कभी जाति प्रथा का अस्तित्व नहीं रहा. बीजेपी अपनी मनुवादी विचारधारा के जरिए आदिवासी समाज को नियंत्रित करना चाहती है और इसे जातियों में विभाजित करने की कोशिश कर रही है. लेकिन, उन्होंने स्पष्ट किया कि आदिवासी समाज स्वयं यह तय करेगा कि उसका धर्म क्या होगा. आदिवासी समुदाय को अपने धर्म को मानने और अपनाने की पूरी स्वतंत्रता है, और यह अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है. यह हमारा मौलिक अधिकार है.

मांग की पीछे पृष्ठभूमि क्या है?

झारखंड में करीब 27% आबादी आदिवासी है, और इनमें से अधिकांश सरना धर्म का पालन करते हैं. 1871 से 1951 तक की जनगणनाओं में आदिवासी धर्म कोड मौजूद था, लेकिन 1961 में इसे हटा दिया गया। इसके बाद से आदिवासी समुदाय अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान को पुन: स्थापित करने की मांग कर रहे हैं. 2020 में झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

आदिवासी संगठनों और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) जैसे राजनीतिक दलों का कहना है कि सरना धर्म कोड की मान्यता से न केवल आदिवासियों की धार्मिक पहचान को बल मिलेगा, बल्कि उनकी सटीक जनसंख्या का आकलन भी संभव होगा. यह आकलन नीतिगत योजनाओं, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा, में आदिवासियों के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकता है.

क्यों है यह मांग महत्वपूर्ण?
  • सांस्कृतिक संरक्षण: सरना धर्म आदिवासियों की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का आधार है. अलग धर्म कोड की अनुपस्थिति में उनकी परंपराएँ और रीति-रिवाज धीरे-धीरे विलुप्त होने के खतरे में हैं.
  • प्रकृति संरक्षण: सरना धर्म प्रकृति पूजा पर आधारित है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. आदिवासी समुदायों का प्रकृति के प्रति सम्मान आज के पर्यावरण संकट के दौर में प्रासंगिक है.
  • ऐतिहासिक अन्याय का सुधार: 1961 में आदिवासी धर्म कोड को हटाए जाने को समुदाय ऐतिहासिक अन्याय के रूप में देखता है। इसकी बहाली उनकी पहचान को पुनर्जनन देगी.
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: सटीक जनगणना डेटा के आधार पर आदिवासियों को राजनीतिक और सामाजिक नीतियों में उचित हिस्सेदारी मिल सकती है.
यह मुद्दा NDA और INDIA गठबंधन के लिए कितना अहम् है?

यह मुद्दा झारखंड में एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. झामुमो और कांग्रेस जैसे दल इस मांग को जोर-शोर से उठा रहे हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसे “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया है. कुछ आलोचकों का मानना है कि यह मांग जातीय जनगणना के मुद्दे को कमजोर करने की रणनीति हो सकती है. दूसरी ओर, आदिवासी संगठन इसे अपनी अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई के रूप में देखते हैं. हाल के महीनों में रांची और अन्य शहरों में धरना-प्रदर्शन और रैलियाँ इस मांग को और बल दे रही हैं.

केंद्र सरकार का रुख क्या है?

केंद्र सरकार ने अभी तक सरना धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक मतभेद एक बड़ी बाधा हैं. आदिवासी समुदायों का कहना है कि यह केवल धार्मिक पहचान का सवाल नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का मुद्दा भी है.

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