वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, ओवैसी का हमला

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Ajit Kumar

तीसरा पक्ष आलेख
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, ओवैसी का हमला

तीसरा पक्ष डेस्क :वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 भारत में एक बार फिर सुर्खियों में है. सुप्रीम कोर्ट में इसकी संवैधानिक वैधता पर हाल ही में हुई तीन दिवसीय सुनवाई (20-22 मई 2025) के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया है. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को “मुस्लिम अधिकारों पर हमला” करार दिया है, जबकि केंद्र सरकार इसे वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही का कदम बता रही है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है.आइए, इस बिल, कोर्ट की सुनवाई, और इसके प्रभावों सरल भाषा में समझते हैं.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: एक नज़र

केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को सरकार ने 8 अप्रैल 2025 से लागू किया. यह बिल वक्फ बोर्ड और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाने के उद्देश्य से लाया गया. सरकार का कहना है कि यह बिल भ्रष्टाचार और अतिक्रमण को रोकेगा, जबकि विपक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बता रहा है.

मुख्य प्रावधान:

वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति.
जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों की जांच और स्थिति तय करने का अधिकार.
‘वक्फ बाय यूजर’ (लंबे समय से धार्मिक उपयोग में आने वाली संपत्तियों) की अवधारणा को सीमित करना.
वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण और पारदर्शिता के लिए नए नियम.
मुस्लिम महिलाओं और कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकारों की सुरक्षा.

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: क्या हुआ?

कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

वक्फ बाय यूजर पर रोक: कोर्ट ने कहा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्तियों को डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा, जो मुस्लिम समुदाय के लिए राहत की बात है.
गैर-मुस्लिम नियुक्तियां: कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति वक्फ बोर्ड की धार्मिक प्रकृति को प्रभावित करेगी. कोर्ट ने सुझाव दिया कि स्थायी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, जबकि पदेन सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं.
कलेक्टर की शक्तियां: कोर्ट ने कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों को गैर-वक्फ घोषित करने की शक्ति पर चिंता जताई, यह कहते हुए कि इससे विवाद बढ़ सकता है.
सुनवाई की प्रक्रिया: कोर्ट ने 70 से अधिक याचिकाओं में से केवल 5 मुख्य याचिकाओं पर सुनवाई करने का फैसला किया, जिसमें ओवैसी की याचिका शामिल है.
17 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया था और अगली सुनवाई तक वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी थी.

ओवैसी का तीखा हमला

AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन बताया. उन्होंने X पर अपने बयानों के जरिए इसे “मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश” करार दिया.

ओवैसी के तर्क:

यह बिल,वक्फ बोर्ड के स्वायत्तता को खत्म करता है.
गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है.
कलेक्टर को दी गई शक्तियां मस्जिदों, मदरसों, और कब्रिस्तानों को खतरे में डाल सकती हैं.
यह बिल मुस्लिम समुदाय की आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति को रोकने का प्रयास है.

केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है, न कि धार्मिक संस्था.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की 36 बैठकों और 97 लाख से अधिक सुझावों के बाद पारित किया गया.

केंद्र के तर्क:
बिल वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार और अतिक्रमण को रोकने के लिए है.
गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति केवल प्रशासनिक कार्यों के लिए है.
डिजिटलीकरण से पारदर्शिता बढ़ेगी और पसमंदा मुस्लिम समुदाय को फायदा होगा.
बिल को संसद में व्यापक चर्चा के बाद पारित किया गया.

सोशल मीडिया में हलचल

इस बिल को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स बंटे हुए हैं. कुछ इसे मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं, तो कुछ इसे प्रशासनिक सुधार का कदम मानते हैं.हाल ही में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने X पर दावा किया कि यह बिल “मुस्लिमों की 44 लाख एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा करने की साजिश” है और अगला निशाना सिख समुदाय हो सकता है.यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और विवाद को और हवा दे रहा है.

X पर प्रतिक्रियाएं:

समर्थक: वक्फ बिल से भ्रष्टाचार खत्म होगा और गरीब मुस्लिमों को फायदा होगा.
आलोचक: यह बिल संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है.
अन्य: कुछ यूजर्स ने इसे राजनीतिक स्टंट बताया, जो धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए है.

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

इस बिल ने न केवल मुस्लिम समुदाय में असंतोष पैदा किया है, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ाया है.

प्रमुख प्रभाव:
मुस्लिम समुदाय का विरोध: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने ‘वक्फ बचाव अभियान’ शुरू किया, जिसमें 1 करोड़ हस्ताक्षर इकट्ठा किए जा रहे हैं.
हिंसा की घटनाएं: असम और पश्चिम बंगाल में बिल के खिलाफ प्रदर्शनों में हिंसा की खबरें आईं.
विपक्ष का रुख: कांग्रेस, DMK, और RJD ने बिल को असंवैधानिक बताया, जबकि BJP और JDU ने इसका समर्थन किया.
पसमंदा समुदाय: JDU सांसद संजय कुमार झा ने कहा कि बिल से पसमंदा मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व मिलेगा.

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बिल के भविष्य को तय करेगा.अगर कोर्ट बिल के कुछ प्रावधानों को रद्द करता है, तो यह विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के लिए बड़ी जीत होगी.वहीं, अगर बिल को वैध ठहराया जाता है, तो केंद्र सरकार के सुधारों को बल मिलेगा.

संभावित परिणाम:

बिल के विवादित प्रावधानों पर स्थायी रोक लग सकती है.
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम नियुक्तियों पर स्पष्ट नियम बन सकते हैं.
वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण और तेज हो सकता है.
धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस और गहरा सकती है.

निष्कर्ष

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और ओवैसी के बयानों ने इसे राष्ट्रीय और सोशल मीडिया चर्चा का केंद्र बना दिया है.X पर सोशल मीडिया पर हलचल और हाल के बयानों से साफ है कि यह मुद्दा जनता के बीच गहरी रुचि रखता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल वक्फ संपत्तियों, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों पर भी असर डालेगा.क्या यह बिल पारदर्शिता लाएगा या धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करेगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है.

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