सामाजिक और आर्थिक समानता अभी भी दूर का एक सपना है!
तीसरा पक्ष डेस्क :पटना विश्वविद्यालय के शिक्षाविद प्रो.अमित कुमार पासवान ने हाल ही में दलित समाज की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त किये है. उनका कहना है कि बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान ने दलितों को समानता का अधिकार तो प्रदान किया, लेकिन सामाजिक और आर्थिक समानता आज भी एक अधूरा सपना बनी हुई है.प्रो. पासवान का यह कथन न केवल सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर एक गहन बहस का विषय है, बल्कि यह समाज के सामने एक कठिन सवाल भी खड़ा करता है: दलित समाज के शोषण के लिए जिम्मेदार कौन है? सरकार, प्रशासन, सामाजिक व्यवस्था, या फिर हम सभी? इस लेख में हम प्रो. अमित कुमार पासवान के विचारों के आधार पर इस जटिल मुद्दे के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि दलित समाज की स्थिति को बेहतर करने के लिए और क्या क्या कदम उठाए जाने चाहिए.
दलित समाज की वर्तमान स्थिति
प्रो. अमित कुमार पासवान के अनुसार, दलित समाज आज भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर है. संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार के बावजूद, दलितों को सामाजिक भेदभाव, आर्थिक शोषण और अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है. शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक सम्मान के क्षेत्र में दलित समुदाय अभी भी अन्य वर्गों से काफी पीछे है. प्रो. पासवान का कहना है कि दलित समाज को न केवल सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति भी इतनी कमजोर है कि वे गरिमापूर्ण जीवन जीने में असमर्थ हैं.
उदाहरण के लिए, बिहार जैसे राज्य में, जहां दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा निवास करता है, शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी ने दलित समाज को और अधिक कमजोर बनाया है. एक अध्ययन के अनुसार, बिहार के 3.16 करोड़ दलितों में से 98% गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. यह आंकड़ा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दलित समाज की स्थिति में सुधार के लिए किए गए प्रयास अभी तक अपर्याप्त हैं.
संवैधानिक अधिकार और वास्तविकता का अंतर
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17 जैसे प्रावधान दलितों को समानता, भेदभाव से मुक्ति और अवसरों की समानता की गारंटी देता हैं.इसके अलावा, अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जैसे कानून भी दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए बनाए गए हैं. फिर भी, प्रो. पासवान का मानना है कि इन कानूनों का कार्यान्वयन प्रभावी नहीं रहा है.
उनके अनुसार, सरकार और प्रशासन की ओर से कानूनों को लागू करने में लापरवाही बरती जाती है. दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव के मामलों में पुलिस और प्रशासन अक्सर उदासीन रहता है. उदाहरण के तौर पर, राजस्थान के जालोर जिले में 9 वर्षीय दलित बच्चे इंद्र मेघवाल की हत्या का मामला सामने आया, जहां एक शिक्षक ने उसे केवल इसलिए पीटा क्योंकि उसने ऊंची जाति के व्यक्ति की मटकी से पानी पी लिया था.इस तरह की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि सामाजिक भेदभाव की जड़ें अभी भी गहरी हैं और प्रशासन इन मामलों में प्रभावी कार्रवाई करने में असफल रहा है.
मुजफ्फरपुर में हुई बलात्कार की घटना जघन्य – अमित पासवान
प्रो. अमित पासवान ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि, “ये जघन्य अपराध न केवल कानून-व्यवस्था की विफलता को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि हमारे समाज में जातिगत कुंठा और पितृसत्तात्मक मानसिकता कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए है. दलित लड़कियों और महिलाओं के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों के साथ एक सामान्य और सुरक्षित जीवन जीना आज भी दुर्लभ प्रतीत होता है.यह स्थिति सामाजिक सुधार और कठोर कानूनी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है.
शोषण के लिए जिम्मेदार कौन?
सामाजिक व्यवस्था
प्रो. पासवान का मानना है कि दलित समाज के शोषण की जड़ें भारतीय समाज की जातिगत व्यवस्था में निहित हैं. मनुस्मृति जैसे ग्रंथों ने सदियों तक दलितों को शिक्षा, संपत्ति और सम्मान से वंचित रखा. आज भी यह मानसिकता समाज के एक बड़े वर्ग में मौजूद है, जो दलितों को समानता के अवसरों से वंचित करता है. सामाजिक भेदभाव के कारण दलितों को न केवल रोजगार और शिक्षा में अवसरों से वंचित किया जाता है, बल्कि उनकी सामाजिक भागीदारी को भी सीमित किया जाता है.
सरकार की नीतियां
सरकार की नीतियां और उनके कार्यान्वयन में कमी भी दलित समाज के शोषण का एक प्रमुख कारण है. प्रो. पासवान का कहना है कि आरक्षण जैसी नीतियों ने दलितों को कुछ हद तक अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन इनका लाभ केवल एक छोटे से वर्ग तक सीमित रहा है. अधिकांश दलित अभी भी गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा के चक्र में फंसे हुए हैं. इसके अलावा, सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाएं, जैसे स्कॉलरशिप, आवास और रोजगार कार्यक्रम, अक्सर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का शिकार हो जाती हैं.
प्रशासन की उदासीनता
प्रशासन की उदासीनता और भेदभावपूर्ण रवैया भी दलित समाज के शोषण को बढ़ावा देता है. प्रो. पासवान के अनुसार, पुलिस और स्थानीय प्रशासन अक्सर दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में त्वरित कार्रवाई करने में विफल रहता है.उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक दलित युवक को सवर्ण समाज की लड़की से प्रेम करने के लिए बेरहमी से पीटा गया. इस तरह के मामलों में प्रशासन की निष्क्रियता अपराधियों को और प्रोत्साहित करता है.
आर्थिक असमानता
आर्थिक असमानता दलित समाज के शोषण का एक अन्य प्रमुख कारण है. प्रो. पासवान का कहना है कि दलित समाज के पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही आर्थिक स्वतंत्रता. अधिकांश दलित भूमिहीन हैं और वे निम्न-स्तरीय नौकरियों पर निर्भर हैं, जहां उन्हें शोषण का सामना करना पड़ता है.बिहार में दलितों की 98% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, जो इस बात का प्रमाण है कि आर्थिक नीतियां दलित समाज तक नहीं पहुंच पा रही हैं.
दलित समाज के उत्थान के लिए प्रो. पासवान का सुझाव
प्रो. अमित कुमार पासवान ने दलित समाज के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उनके विचारों के आधार पर निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं.जो इस प्रकार है :
शिक्षा का प्रसार: शिक्षा दलित समाज के सशक्तिकरण का सबसे महत्वपूर्ण साधन है. प्रो. पासवान का सुझाव है कि सरकार को दलित बच्चों के लिए मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. साथ ही, स्कॉलरशिप और अन्य सहायता योजनाओं को पारदर्शी और प्रभावी ढंग से लागू करना होगा.
आर्थिक सशक्तिकरण: दलित समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सरकार को रोजगार के अवसर प्रदान करने चाहिए. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में दलित उद्यमियों को प्रोत्साहन देना और उन्हें ऋण सुविधाएं प्रदान करना आवश्यक है.
कानूनों का सख्ती से पालन: दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए मौजूदा कानूनों का सख्ती से पालन करना होगा. प्रशासन को इस तरह के मामलों में त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए.
सामाजिक जागरूकता: सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए. प्रो. पासवान का मानना है कि समाज के सभी वर्गों को जातिगत भेदभाव के खिलाफ एकजुट होना होगा.
राजनीतिक प्रतिनिधित्व: दलित समाज को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना होगा. प्रो. पासवान का कहना है कि दलित नेताओं को केवल प्रतीकात्मक भूमिका तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदारी दी जानी चाहिए.
निष्कर्ष
प्रो. अमित कुमार पासवान के विचार दलित समाज की स्थिति को समझने और उनके शोषण के कारणों को उजागर करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.उनका मानना है कि दलित समाज का शोषण केवल सरकार या प्रशासन की विफलता का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक असमानता और जागरूकता की कमी का संयुक्त परिणाम है. दलित समाज को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए सभी स्तरों पर ठोस और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है.सरकार को अपनी नीतियों को और अधिक समावेशी और प्रभावी बनाना होगा, प्रशासन को भेदभाव के खिलाफ सख्त रवैया अपनाना होगा, और समाज को जातिगत मानसिकता को त्यागकर समानता को अपनाना होगा. प्रो. पासवान का यह कथन कि “सामाजिक और आर्थिक समानता अभी भी एक दूर का सपना है” हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में बाबासाहेब के सपनों का भारत बना पाए हैं? इस सवाल का जवाब खोजने और दलित समाज के उत्थान के लिए हमें सामूहिक रूप से कार्य करना होगा.

I am a blogger and social media influencer. I have about 5 years experience in digital media and news blogging.