मर्जर नीति से बढ़ी ग्रामीण शिक्षा की चिंता!
तीसरा पक्ष ब्यूरो :लखनऊ, 27 जून 2025 — उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुए तीन महीने बीतने को हैं, लेकिन कक्षा 1 से 3 तक के बच्चों को अब तक पाठ्यपुस्तकें नहीं मिल सकी हैं. इससे शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं, वहीं राज्य सरकार के स्कूल मर्जर निर्णय ने ग्रामीण बच्चों के भविष्य को और अधिक अनिश्चित बना दिया है.
राज्य सरकार ने 27,965 प्राथमिक स्कूलों को मर्ज करने का फैसला लिया है.इस कदम से गांव-गांव में स्कूल बंद होने का खतरा मंडरा रहा है,जिससे बच्चों की स्कूल तक पहुंच में बाधा आ सकती है.
शिक्षकों में असमंजस, बच्चों की पढ़ाई ठप
लखनऊ और आस-पास के कई जिलों से मिल रही जानकारी के अनुसार, प्राथमिक शिक्षक इस समय गंभीर दुविधा में हैं. “हम बच्चों को क्या पढ़ाएं? न पुरानी किताबें काम की हैं, न नई आई हैं,” एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया.
क्या शिक्षा से दूर होंगे गरीब और ग्रामीण बच्चे?
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने इस मसले पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे सवाल पूछे हैं. उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर पूछा:
“क्या शिक्षा की नाकामी छुपाने के लिए स्कूल मर्ज किए जा रहे हैं? क्या इससे गरीब और ग्रामीण बच्चों का शिक्षा का संवैधानिक अधिकार प्रभावित नहीं होगा?”
उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि किताबों की आपूर्ति तुरंत की जाए और स्कूल मर्ज करने जैसे फैसलों से पहले बच्चों और गांवों की ज़रूरतों को समझा जाए।
नीतियों में सुधार की मांग
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी स्कूलों का मर्जर यदि ठीक से प्लान न किया गया तो यह नीति गांवों में पढ़ाई के अवसरों को और सीमित कर सकती है.खासकर वे बच्चे जो पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित हैं, उन्हें स्कूल तक पहुंचने में अब ज्यादा दूरी और खर्च उठाना पड़ सकता है.
निचोड़
राज्य सरकार की शिक्षा नीति पर उठ रहे सवाल यह संकेत दे रहे हैं कि ज़मीनी स्तर पर तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. शिक्षा केवल एक योजना नहीं — यह बच्चों का संवैधानिक अधिकार है, और इसे नज़रअंदाज़ करना किसी भी सरकार के लिए भारी पड़ सकता है.

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