कॉरिडोर के नाम पर ‘कॉरिडोर करप्शन’?
तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ, 30 जून: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर तीखा हमला करते हुए ‘कॉरिडोर करेप्शन’ नामक एक मुहिम की शुरुआत की है। उन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेफॉर्म एक्स अकाउंट पर भाजपा के कथित भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए एक कथित “ट्रेनिंग मैन्युअल” का हवाला दिया, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे कॉरिडोर या विकास प्रोजेक्ट्स के नाम पर स्थानीयों को उनकी ज़मीन, रोज़गार और पारंपरिक व्यवसायों से बेदखल किया गया।
अखिलेश यादव का आरोप – विकास नहीं, विनाश हुआ
इस मैन्युअल में उन तरीकों का विस्तार से उल्लेख है जिनसे, अखिलेश के अनुसार, भाजपा सरकारों ने “विकास” के नाम पर जनता को गुमराह कर अपनी तिजोरियां भरी हैं.पोस्ट में बताया गया:
सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा और बाद में ऊँचे दामों पर बिक्री
छोटे दुकानदारों की रोज़ी-रोटी छीन कर बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाना
स्थानीय कारीगरों और पारंपरिक व्यवसायों को उजाड़ कर बाहरी व्यापारियों को स्थापित करना
मुआवज़े के नाम पर घोटाले और राजनीतिक लाभ के लिए स्थानीय-बाहरी में विभाजन
सवाल – अगर लाभ स्थानीयों को मिलता, तो हार क्यों?
अखिलेश यादव ने बड़ा सवाल उठाया: अगर इन प्रोजेक्ट्स से स्थानीय लोगों को वास्तविक लाभ मिला होता, तो भाजपा को उन्हीं इलाकों में चुनाव में हार का सामना क्यों करना पड़ता जहाँ ये प्रोजेक्ट्स लागू हुए?
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यह बयान कई हालिया चुनावी परिणामों की ओर संकेत करता है, जहाँ भाजपा को उन क्षेत्रों में जन विरोध का सामना करना पड़ा, जहाँ कॉरिडोर या धार्मिक स्थलों का विकास प्रोजेक्ट चल रहा था.
राजनीतिक संदेश स्पष्ट
इस अभियान के ज़रिए समाजवादी पार्टी न केवल भाजपा के विकास मॉडल पर सवाल खड़ा कर रही है, बल्कि स्थानीय वोटरों में भाजपा के खिलाफ असंतोष को राजनीतिक शक्ति में बदलने की रणनीति भी अपना रही है.
अखिलेश यादव की यह पहल ऐसे समय में आई है जब 2027 विधानसभा चुनावों की राजनीतिक हलचल तेज़ हो रही है, और विपक्ष जनता के वास्तविक मुद्दों को केंद्र में लाकर भाजपा की छवि को चुनौती देना चाहता है.
निष्कर्ष:
कॉरिडोर करेप्शन’ जैसे मुद्दे केवल विकास बनाम विनाश की बहस नहीं हैं, बल्कि यह स्थानीय पहचान, रोज़गार और संसाधनों की लड़ाई बन गए हैं. यदि विपक्ष इसे सही दिशा में ले जाता है, तो यह भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से भारी पड़ सकता है.

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