नीतीश का दबाव, राहुल, तेजस्वी, अखिलेश का उभार या भाजपा का हिन्दू राष्ट्रवाद से मंडल की तरफ पलायन !
तीसरा पक्ष डेस्क: पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब पुरा देश इस बात पर चर्चा कर रहा था कि अब मोदी सरकार आतंकवादियों के खिलाफ आगे कौन सी कदम उठाएगी, उसी बीच मोदी सरकार ने अचानक भारत में जाति जनगणना कराने का फैसला ले लिया.
अब देश में विशेष कर बीजेपी के कोरे वोटर में इस बात पर चर्चा अंदरूनी मगर जोरो पर है कि आखिर देश में अचानक कौनसी राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक परिस्थितियां उत्पन्न हो गई कि मोदी सरकार द्वारा जाति जनगणना का फैसला अचानक ले लिया गया ?
आइये, आगे इस आलेख में जानने का प्रयास करते हैं कि जाति जाति जनगणना का फैसला लेने के पीछे वो कौन सी संभावित कारण हो सकते हैं, जो राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक परिस्थितियों से जुड़े हैं.

जाति जनगणना के पीछे संभावित कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
- नीतीश का दबाव या राहुल, तेजस्वी, अखिलेश का उभार: विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा के अखिलेश यादव और राजद के तेजस्वी यादव, लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे थे. खासकर, राहुल गांधी ने तो इसे राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. जैसा कि आप जानते कि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह एक प्रमुख मुद्दा बन चुका था. कहा जा रहा है कि सरकार ने इस फैसले से विपक्ष के इस बड़े मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश की है, ताकि बिहार जैसे राज्यों में अक्टूबर या नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव 2025 में विपक्ष को इसका श्रेय न मिले.
- बिहार विधानसभा चुनाव का प्रभाव: बिहार में 2025 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां जातिगत समीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. जैसाकि आपको मालूम है कि बिहार देश का पहला राज्य है जहाँ 2022 में जाति आधारित सर्वे हुआ था, जिसका श्रेय राजद और जदयू ने लिया था. तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार और पीएम मोदी को इस बात पर घेरते रहे हैं कि बिहार में हुए caste Survey को संविधान के 9वीं अनुसूची क्यों नहीं डाल देती है. चुकि अब देखना होगा कि मोदी सरकार का यह फैसला एनडीए को बिहार में ओबीसी और अन्य जातिगत समुदायों के बीच अपनी स्थिति कितना मजबूत करने का अवसर देती है.
- भाजपा का हिन्दू राष्ट्रवाद से पलायन : भाजपा ने पहले हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के आधार पर वोट एकत्रितकर सत्ता में आई , लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में उसे ओबीसी और अन्य जातियों के वोटों में कमी का सामना करना पड़ा. उधर, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जैसे नेता PDA फार्मूला के तहत सरकार को घेरने में लगे हैं तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव बिहार में महागठबंधन को मजबूत करने में लगे हैं. ऐसे में मोदी सरकार की जाति जनगणना का फैसला इन समुदायों को फिर से जोड़ने और मंडल राजनीति के दौर में वापसी करने की रणनीति हो सकती है. राजनितिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का हिन्दू राष्ट्रवाद से मंडल की तरफ पलायन का भाजपा की रणनीति में बदलाव यह हिस्सा हो सकता है.
- राजनीतिक नुकसान की भरपाई करना: पहले भाजपा जाति जनगणना को सामाजिक विभाजन का कारण बताकर टालती रही थी , लेकिन विपक्ष द्वारा इसे सामाजिक न्याय से जोड़े जाने के बाद सरकार को लगा होगा कि इस मुद्दे पर पीछे रहना BJP के लिए नुकसानदायक हो सकता है. यह फैसला विपक्ष के मुद्दे को कमजोर करने और सरकार को सामाजिक न्याय के पक्ष में दिखाने का प्रयास हो सकता है.
- सामाजिक और नीतिगत आवश्यकता: जब से जाति जनगणना का फैसला केंद्र सरकार ने लिया है तबसे बीजेपी के सहित पूरा आईटी सेल इसके फायदे गिनाने लगे हैं. सरकार का तर्क है कि जाति जनगणना से सरकार को विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सटीक डेटा मिलेगा, जिससे शिक्षा, रोजगार और आरक्षण जैसी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। सरकार ने इसे सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के लिए जरूरी बताया है.
जाति जनगणना के संभावित जोखिम और आलोचना:
- भाजपा के हिंदुत्व की रणनीति पर असर: भाजपा का हमेशा से सवर्ण समाज खासकर बनिया और ब्राह्मण कोर वोटर रहा है. लेकिन, सरकार के इस फैसले से पार्टी के कोर वोटर नाराज हो सकता है. कुछ राजनितिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे भाजपा की हिंदू एकता की रणनीति कमजोर हो सकती है, क्योंकि जाति आधारित वोटिंग बढ़ सकती है.
- शहरी मध्यम वर्ग का असंतोष: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला भाजपा के शहरी और मध्यम वर्गीय वोटरों को भी निराश कर सकता है,क्योकि वे इसे मंडल युग की राजनीति की वापसी मान सकते हैं.
- सामाजिक एकता और सौहार्दय: जाति जनगणनाके आंकड़े आने के बाद अधिक जनसंख्या वाली जातियों में जातीय अकड़ भी आ सकती है जो सामाजिक एकता और सामाजिक तानेबाने को बिगाड़ सकती है.
अंत में
मोदी सरकार का यह फैसला आपको अचानक लग सकता है, लेकिन यह विपक्ष के दबाव, आगामी चुनावों, और सामाजिक-आर्थिक नीतियों की जरूरतों का अहम् हिस्सा भी हो सकता है। हलाकि, सरकार ने इसे एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम बताया है, लेकिन इसका असर भारतीय राजनीति और समाज पर लंबे समय तक देखा जाएगा.
नोट: यह विश्लेषण तीसरा पक्ष टीम द्वारा उपलब्ध जानकारी और विभिन्न स्रोतों पर आधारित है। अगर आप किसी विशेष पहलू पर सुझाव या संदेश देना चाहते हैं, तो कृपया Message Box में कमेंट कर बताएं!

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